किसानों के लिए सब्जी की खेती नकदी का सब से अच्छा जरीया माना जाता है. अगर सब्जियों की खेती वैज्ञानिक तरीकों से की जाए तो आमदनी और भी बढ़ जाती है. कुछ ऐसी विदेशी सब्जियां भी हैं, जिन्हें भारत की जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है. इन सब्जियों का बाजार रेट दूसरी भारतीय सब्जियों से अच्छा मिलता है. इस का एक कारण इन सब्जियों में शरीर की सेहत के लिए जरूरी कई तत्वों का मौजूद होना भी है, जो हमें बीमारियों से भी बचाती है.

ऐसी ही एक सब्जी का नाम है, ब्रुसेल्स स्प्राउट, जो पत्तागोभी के नाम से मिलती है. इसे बेबी पत्तागोभी के नाम से भी जाना जाता है. इस के एक पौधे में तनों पर पत्तागोभी की तरह ही 50 से 100 ग्राम के वजन की पत्तियों की गांठे बनती हैं, जिसे सब्जी के लिए प्रयोग किया जाता है.

ब्रुसेल्स स्प्राउट को सलाद में भी प्रयोग किया जाता है. ब्रुसेल्स स्प्राउट की सब्जी में सेहत के लिए खास माने जाने वाले प्रोटीन, विटामिन ए, सी, कैल्शियम, आयरन फास्फोरस, खनिज लवण व कार्बोहाइड्रेट्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

ब्रुसेल्स स्प्राउट को सेहत के नजरिए से अगर देखा जाए, तो खाने में इसे शामिल करनें से वजन को कम किया जा सकता है. यह टाइप 2 डाय‍बिटीज, हृदय रोग, कैंसर, आंखों की रोशनी, पाचन में और हड्डियों को मजबूत करने में भी मदद करता है.

ब्रुसेल्स स्प्राउट की खेती

भारत में इस की खेती हिमाचल प्रदेश सहित उत्तरी भारत के मैदानी व पहाड़ी क्षेत्र में की जाती है. अभी देश में व्यापक लेवल पर इस की खेती नहीं शुरू की जा सकी है. अगर किसान इस की खेती करते हैं, तो अपनी माली हालत को आसानी से सुधार सकते हैं.

मिट्टी और खेत की तैयारी

ब्रुसेल्स स्प्राउट की खेती भारत के किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है. इस की खेती के लिए सब से अच्छी हलकी दोमट मिट्टी होती है.

इस के अलावा बलुई दोमट और हलकी चिकनी मिट्टी में भी इस की खेती की जा सकती है. कार्बांशयुक्त जल निकास वाली हलकी दोमट मिट्टी से ब्रुसेल्स स्प्राउट की अच्छी उपज मिलती है.

ब्रुसेल्स स्प्राउट की खेत की तैयारी हम उसी तरह से करते हैं, जैसे गोभी की वैराइटियों के लिए खेत की तैयारी करते हैं. सब से पहले हमें खेत 2-3 जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर कर मिट्टी को भुरभुरा बना कर पाटा लगा देना चाहिए. इस से खेत की नमी बनी रहती है.

उन्नत प्रजातियां : ब्रुसेल्स स्प्राउट की किस्मों को लंबा, मध्यम लंबा और बौना श्रेणी में बांटा गया है. लंबी किस्में लगभग 75 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक और मध्यम ऊंची किस्में लगभग 55 से 60 सैंटीमीटर तक की लंबाई वाली होती हैं, वहीं बौनी किस्में 40 से 50 सैंटीमीटर तक लंबाई वाली होती हैं, जिस में बौनी किस्म में अर्ली इंप्रूव्ड, अर्ली ड्वार्फ, ड्वार्फ इंप्रूव्ड, अर्ली मोर्न प्रमुख हैं. इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 50 सैंटीमीटर तक होती है और इस में जो गोभी यानी स्प्राउट्स आती है, वह मीडियम साइज की होती है, जबकि मीडियम ऊंचाई वाली किस्मों में लांग ए आइसलैंड, हाफ ड्वार्फ प्रमुख हैं, जबकि ऊंची किस्मों में वेड शायर और ऐवासम प्रमुख हैं.

बोआई का समय व नर्सरी डालना

ब्रुसेल्स स्प्राउट के नर्सरी के लिए सब से अच्छा समय सितंबर से नवंबर महीने का होता है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में इस की नर्सरी मार्चअप्रैल माह में डाली जाती है. इस की एक हेक्टेयर खेत के लिए नर्सरी डालने के लिए लगभग 500-600 ग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.

ब्रुसेल्स स्प्राउट के बीज को नर्सरी में डालनें के लिए सब से पहले मिट्टी को खूब भुरभुरा बना लेते हैं. इस के बाद मिट्टी में कंपोस्ट या केचुआ खाद मिला कर क्यारियां बना लेते हैं.

यह ध्यान रखें कि नर्सरी डालने के लिए जो क्यारियां बनाई जा रहीं हैं, उन की चौड़ाई एक मीटर और लंबाई 5 मीटर हों.

एक हेक्टेयर खेत के लिए बीज की मात्रा के हिसाब से 4-5 क्यारियां बनाई जानी उपयुक्त होती हैं. जब क्यारियां पूरी तरह से तैयार हो जाएं, तो क्यारियों में बीज बो दें.

यह ध्यान दें कि पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी लगभग 3-4 सैंटीमीट हो, जबकि बीज की दूरी 1-2 मिलीमीटर पर होने से पौधों का विकास अच्छा होता है. नर्सरी में बीज डालनें के बाद मिट्टी में जरूरी नमी के लिए क्यारियों को 6 से 8 दिन के लिए पत्तियों से ढक देते हैं और जरूरत के मुताबिक सिंचाई करते रहते हैं.

नर्सरी में जब पौधे 25 से 30 दिन के हो जाएं, तो पौधों को नर्सरी से निकाल कर तैयार किए गए खेत में रोप देते हैं.

पौधों की रोपाई व देखभाल

नर्सरी में डाले ब्रुसेल्स स्प्राउट्स के पौधों की लंबाई जब 8–10 सैंटीमीटर के आसपास हो जाए, तो यह पौधे खेत में रोपाई के योग्य तैयार माने जाते हैं.

पौधों की रोपाई पहले से तैयार किए गए खेत में पौध से पौध की दूरी 45 सैंटीमीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सैंटीमीटर रखते हुए रोपाई करें.

यह ध्यान रखें की पौधों की रोपाई शाम के समय ही करें, क्योंकि धूप में रोपाई करने से पौधे मुरझा कर मर जाते हैं. पौधों को खेत में रोपनें के तुरंत बाद सिंचाई कर दें.

खाद व उर्वरक

किसी भी फसल में संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरक का प्रयोग किया जाना फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों को बढ़ा देता है. ऐसे में ब्रुसेल्स स्प्राउट से अच्छा उत्पादन लेने के लिए खाद और उर्वरक का सही मात्रा और समय पर दिया जाना जरूरी हो जाता है.

फसल से अच्छा उत्पादन मिले, इस के लिए 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद खेत की जुताई के समय ही मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

इस के अलावा पौधरोपण के समय प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन 80 से 100 किलोग्राम, फास्फोरस 60 से 80 किलोग्राम व पोटाश की 50 से 60 किलोग्राम की मात्रा का प्रयोग करें.

जब पौधों को खेत में रोपे गए 20 दिन बीत जाएं, तो नाइट्रोजन की 40 से 50 किलोग्राम मात्रा का प्रयोग फिर करें.

कीट व रोग नियंत्रण

ब्रुसेल्स स्प्राउट की फसल में अगर किसी तरह का कीट या रोग दिखाई पड़ता है, तो किसान प्रभावित पौधे का हिस्सा ले कर अपने स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र पर विशेषज्ञ फसल सुरक्षा से संपर्क करें. वहां किसानों को न केवल उचित सलाह मिलती है, बल्कि कीटनाशकों के संतुलित मात्रा के प्रयोग व प्रयोग विधि की भी जानकारी दी जाती है.

फसल की सिंचाई

ब्रुसेल्स स्प्राउट के फसल की पहली सिंचाई पौध रोपने के फौरन बाद ही की जाती है. इस के अलावा 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. इस प्रकार पूरी फसल के दौरान 6-7 सिंचाई पर्याप्त रहती हैं.

खरपतवार नियंत्रण व पौधों को मिट्टी चढ़ाना

ब्रुसेल्स स्प्राउट्स के खेत में रोपाई के 20 दिन बाद खरपतवारों को निराईगुड़ाई कर के निकाल दें. इस के साथ ही पौधों की जड़ों पर मिट्टी भी इसी समय चढ़ा दें. चूंकि फसल में खरपतवार पौधों की बढ़वार में नुकसानदायक होते हैं, ऐसे में फसल तैयार होने तक 3-4 बार निराईगुड़ाई करें, जिस से खरपतवार नष्ट होते रहते हैं.

फसल की कटाई और उत्पादन

ब्रुसेल्स स्प्राउट्स की फसल की कटाई फसल अवधि के दौरान कई बार की जाती है. जब स्प्राउट का 3-4 सैंटीमीटर की मोटाई अथवा गोलाई के हो जाएं, इन्हें काट लेना चाहिए. स्प्राउट्स की कटाई के बाद इस में फिर से स्प्राउटिंग आने लगती हैं.

इस प्रकार अगर स्प्राउट्स की फसल अच्छी आई है, तो इस से एक से डेढ़ किलोग्राम तक स्प्राउट्स प्राप्त होता है. इस तरह प्रति हेक्टेयर 1,500 से 2,000 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त होता है.

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