हरित क्रांति के बाद उत्पादन बढ़ाने के लिए कैमिकल खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया. इस से उत्पादन तो बढ़ा, पर प्राकृतिक असंतुलन भी बढ़ता चला गया. पेड़पौधों के साथसाथ इनसानों में भी तरहतरह की बीमारियां पनपने लगी हैं, मिट्टी ऊसर होती जा रही है और खेती से उपजने वाली चीजों की क्वालिटी भी खराब हो रही है. ऐसी स्थिति में जैविक खेती का महत्त्व और भी बढ़ जाता है.

खेती की ऐसी प्रक्रिया जिस में उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले निवेशों के आधार पर जीव अंश से उत्पादित हो और पशु, इनसान और जमीन की सेहत को टिकाऊ बनाते हुए स्वच्छता के साथ पर्यावरण को भी पोषित करे, जैविक खेती कही जाएगी.

यानी जैविक खेती एक ऐसा तरीका है, जिस में कैमिकल खादों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशियों के बजाय जीवांश खाद पोषक तत्त्वों (गोबर की खाद, कंपोस्ट, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद वगैरह) जैवनाशियों (बायोपैस्टीसाइड) व बायोएजेंट जैसे क्राईसोपा वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है, जिस से न केवल जमीन की उपजाऊ कूवत लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता. साथ ही, खेती की लागत घटने व उत्पाद की क्वालिटी बढ़ने से किसानों को ज्यादा फायदा भी मिलता है.

जैविक खेती को अपनाने के लिए पशुपालन को बढ़ावा देना होगा. अगर हमारा पशुधन अच्छा, स्वस्थ और अधिक नहीं है तो जैविक खेती संभव नहीं है. जैविक खेती में देशी खादें जैसे गोबर की खाद, नाडेप कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट व हरी खादों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए.

जैविक खेती की प्रक्रिया :

जैविक खेती के लिए हमेशा गरमी में जुताई करना, उस के बाद उस में हरी खाद की बोआई करना जरूरी रहता है. खेत की तैयारी पशुओं द्वारा पशुचालित यंत्रों से करनी चाहिए.

जैविक उर्वरक प्रयोग विधि

बीज का उपचार : 200 ग्राम नाइट्रोजन स्थरीकरण के लिए (एजोटोबैक्टर/ राइजोबियम) जैव उर्वरक और 200 ग्राम पीएसबी जैव उर्वरक 300 से 400 मिलीलिटर पानी में अच्छी तरह मिला लें. इस?घोल में 50 ग्राम गुड़ भी घोल लेते हैं, ताकि बीजों पर घोल अच्छी तरह से चिपक जाए.

इस घोल को 10-12 किलोग्राम बीज पर डाल कर हाथ से तब तक मिलाएं, जब तक कि सभी बीजों पर एकसमान परत न चढ़ जाए. अब इन बीजों को छायादार और हवादार जगह पर सूखने के लिए रख दें.

अम्लीय या क्षारीय मिट्टी वाली जमीन के लिए किसानों को यह सलाह दी जाती है कि जैव आधारित बीजों को 1 किलोग्राम बुझा चूना अम्लीय मिट्टी में या जिप्सम पाउडर क्षारीय मिट्टी द्वारा उपचारित करें.

जड़ का उपचार :

1 किलोग्राम से 2 किलोग्राम नाइट्रोजन स्थरीकरण जैव उर्वरक (एजोटोबैक्टर/एजोस्पाइरिलम) और पीएसबी जैव उर्वरक को सही पानी (5-10 लिटर या 1 एकड़ में लगाई जाने वाली पौध की मात्रानुसार) का घोल बनाएं. बाद में रोपाई की जाने वाली पौध की जड़ों को इस घोल में 20-30 मिनट तक रोपाई करने से पहले डुबो कर रखें.

धान की रोपाई के लिए खेत में एक क्यारी (2 मीटर×1.5 मीटर×0.15 मीटर) बनाएं. इस क्यारी को 5 सैंटीमीटर तक पानी से भर दें और इस में 2 किलोग्राम एजोस्पाइरिलम और 2 किलोग्राम पीएसबी डाल कर धीरेधीरे मिलाएं. इस के बाद रोपे जाने वाले पौधों की जड़ों को 8-10 घंटे के लिए डुबो कर रख दें और रोपाई करें.

मिट्टी का उपचार :

2-4 किलोग्राम एजोटोबैक्टर या एजोस्पाइरिलम और 2-4 किलोग्राम पीएसबी 1 एकड़ के लिए सही है. इन दोनों तरह के जैव उर्वरकों को 2-4 लिटर पानी में अलगअलग मिला कर 50-100 किलोग्राम कंपोस्ट के अलगअलग ढेर बना कर उन पर छिड़काव करें और दोनो ढेरों को अलगअलग मिला कर पूरी रात के लिए छोड़ दें. 12 घंटे बाद दोनों ढेरों को आपस में अच्छी तरह मिला लें.

अम्लीय मिट्टी के लिए 25 किलोग्राम बुझा चूना इस ढेर के साथ मिला लें. फल वृक्षों के लिए हर जड़ के पास खुरपी की मदद से इस मिश्रण को पेड़ के चारों ओर डाल दें. बोई जाने वाली फसलों के लिए पूरे खेत में बोआई से पहले इस मिश्रण को अच्छी तरह छिड़क दें और यह काम शाम के समय जब गरमी कम हो, तब करें.

बोआई के लिए यथासंभव जैविक बीज का इस्तेमाल करते हुए जैविक विधि या जैव उर्वरकों से बीज शोधन कर के बीज की बोआई पशुचालित यंत्र जैसे बैलचालित सीड ड्रिल या नाई चोंगा वगैरह से करना चाहिए. गोमूत्र, बीजामृत, दही वगैरह से भी बीज शोधन कर सकते हैं.

खाद :

जैविक खेती अपनाने के लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. गोबर की खाद सड़ी होनी चाहिए. यदि खेत में कच्चा गोबर डाल देते हैं तो उस से फायदे की अपेक्षा नुकसान हो जाता है. इस से खेतों में दीमक का प्रकोप बढ़ जाता . गोबर की सड़ी खाद को फसल बोने से पहले आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

पोषक तत्त्वों की पूर्ति के लिए जीवांशों से बनी खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे मलमूत्र, खून, हड्डी, चमड़ा, सींग, फसल अवशेष, खरपतवार से बनने वाली खादें या वर्मी कंपोस्ट, नाडेप कंपोस्ट, काउपैट पिट कंपोस्ट वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए और जैव उर्वरकों से जमीन का शोधन जरूर करना चाहिए.

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण :

पशुचालित यंत्रों जैसे बैलचालित सैंट्रीफ्यूगल पंप, सोलर पंप, नहर वगैरह से सिंचाई करनी चाहिए. खरपतवार पर नियंत्रण हाथ से निराईगुड़ाई कर के या पशु या इनसान से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कर के करनी चाहिए.

कीटों से हिफाजत :

कीटों से हिफाजत के लिए गोमूत्र, नीम, धतूरा, लहसुन, मदार, मिर्च, अदरक वगैरह से बनने वाले कीटनाशकों या जैविक कीटनाशियों जैसे ट्राइकोग्राम कार्ड, बावेरिया बेसियाना, बीटी, एनपीवी वायरस, मित्र कीट, फैरोमौन ट्रैप व पक्षियों को बुलाने वगैरह एकीकृतनाशी जीव प्रबंधन की विधियां अपना कर करनी चाहिए.

रोगों से रक्षा :

रोगों से रक्षा के लिए ट्राइकोडर्मा द्वारा जैविक बीज शोधन करना चाहिए. जमीन शोधन के लिए माइकोराजा, वैसिलस, स्यूडोमोनास वगैरह जैविक रोग नियंत्रकों का इस्तेमाल करना चाहिए और नियमित निगरानी के साथ खेत की मेंड़ों को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए.

कटाई, मड़ाई और भंडारण :

फसल की कटाई, मड़ाई इनसान या बैलचालित यंत्रों का इस्तेमाल कर के करनी चाहिए और इन्हीं का इस्तेमाल कर के उत्पादों को खलिहान तक लाने व ले जाने के लिए और दूसरे परिवहन के लिए करना चाहिए.

भंडारण के लिए अनाज को खूब अच्छी तरह सुखा कर नीम की पत्ती या नमक या राख वगैरह मिला कर साफ जगह पर या भूसा वगैरह में भंडारित करना चाहिए.

फसलचक्र और बहुफसल प्रणाली :

फसल चक्र सिद्धांत का इस्तेमाल करने से फसलों में रोग व कीड़े कम लगते हैं और जमीन की उर्वरता बनी रहती है. साथ ही, पोषक तत्त्वों का सही प्रबंधन और उपयोग होता है.

जैसे उथली जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलें मटर, गेहूं के बाद अरहर, सरसों वगैरह.

अधिक खाद के बाद कम खाद लेने वाली फसलें जैसे आलू के बाद प्याज, गन्ना के बाद जौ वगैरह.

फलदार के बाद बिना फलीदार फसलें जैसे मूंग के बाद गेहूं, मटर के बाद धान वगैरह.

अधिक निराईगुड़ाई करने के बाद कम निराईगुड़ाई वाली फसलें जैसे मक्का के बाद जौ, चना वगैरह.

मिश्रित फसलोत्पादन जैविक खेती का मूल आधार है. इस में कई तरह की फसलों को एकसाथ मिश्रित रूप में या अलगअलग समय पर एक ही जमीन पर बोया जाता है.

हर मौसम में ध्यान रखना होगा कि दलहनी फसलें तकरीबन 40 फीसदी में बोई जाएं. मिश्रित फसलोत्पादन से न केवल बेहतर प्रकाश संश्लेषण होता है, बल्कि विभिन्न पौधों के बीच पोषक तत्त्वों के लिए होने वाली मांग को भी नियंत्रित किया जा सकता है.

नोट : उपरोक्त विधियां जैविक खेती की वास्तविक प्रक्रिया हैं, लेकिन किसान को तुरंत इस तरह से जैविक खेती करने में समस्या आ सकती है. इसलिए जुताई, बोआई, सिंचाई, परिवहन, कटाई, मड़ाई वगैरह में पशुचालित यंत्रों की जगह किसान डीजल से चलने वाले यंत्र या बिजली से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन किसी भी तरह कैमिकल दवा का सीधा इस्तेमाल फसल पर या उत्पादित उत्पाद पर नहीं करना चाहिए. जैविक खेती टिकाऊ खेती का आधार है, पर यह पशुपालन पर आश्रित है.

जैविक खेती से लाभ

*           जमीन की सेहत सुधरती है.

*           पशु, इनसान और लाभदायक सूक्ष्म जीवों की सेहत सुधरती है.

*           पर्यावरण प्रदूषण कम होता है.

*           पशुपालन को बढ़ावा मिलता है.

*           टिकाऊ खेती का आधार बनता है.

*           गांव, कृषि और किसान की पराधीनता कम होती है, जिस से वे स्वावलंबी बनते हैं.

*           उत्पादों का स्वाद और गुणवत्ता बढ़ती है

*           पानी की खपत कम होती है.

*           रोजगार में बढ़ोतरी होती है और पशु और इनसानी मेहनत का उपयोग बढ़ता है.

*           रसायनों का दुष्प्रभाव पशु, पक्षी, इनसान, जमीन, जल, हवा वगैरह पर कम होता है.

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