इनसान की एक अनोखी ईजाद सैटेलाइट से भेजी गई तसवीरों में भले ही कहने को धरती के तीनचौथाई हिस्से में नीले रंग का पानी अपनी मौजूदगी दिखाता है, पर एक कड़वा सच यह भी है कि पूरी दुनिया में मौजूद कुल पानी में से महज 0.6 फीसदी पानी ही पीने लायक है, जो नदियों, तालाबों, झीलों आदि में ही मौजूद है. 8 अरब लोगों और धरती के दूसरे प्राणियों व वनस्पति के लिए यह आने वाले महासंकट का संकेत है.
शहरों, कसबों और उन के आसपास के देहाती इलाकों में तो लोग आरओ जैसी करामाती मशीन ने अपने हलक में उतारने लायक पानी जमा कर ही लेते हैं, पर दूरदराज के इलाकों और गरीब बस्तियों में हालात हमारी सोच से भी ज्यादा खराब हैं.
औद्योगिक कचरे ने तो नाक में दम कर रखा है. भारत के केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, गंभीर प्रदूषण फैलाने वाली तकरीबन 11 फीसदी औद्योगिक इकाइयां नियमों का पालन भी नहीं कर रही हैं. झारखंड में 87 फीसदी और पंजाब में 60 फीसदी गंभीर प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयां बिना किसी शोधन के अपना कचरा नदियों में गिरा रही हैं.
देश में गंभीर प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों की संख्या 2,497 है. इन में से 11 फीसदी इकाइयां नियमों का पालन नहीं कर रही हैं, वहीं 84 फीसदी औद्योगिक इकाइयां अकेले 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और गुजरात में मौजूद हैं.
अगर इनसानी गलतियों की वजह से पीने के पानी का यह संकट विकराल हो रहा है, तो इस का हल भी इसी प्रजाति को सोचना होगा. इस दिशा में छोटे प्रयास भी बड़े कमाल दिखाने की उम्मीद जता रहे हैं.
प्रदूषित पानी को साफ करना ही आज की जरूरत है. इसी कड़ी में स्कूली बच्चे भी अपना हुनर दिखा रहे हैं. वे ऐसे प्रोजैक्ट पर काम कर रहे हैं, जिन से प्रदूषित पानी को पीने लायक बनाया जा सके.
श्रीराम मिलेनियम स्कूल, नोएडा के एक छात्र ईशान अवी गुप्ता इसी तरह के एक प्रोजैक्ट से जुड़े हैं, जिस में ऐसा क्लोरक्षार वाटर प्यूरीफायर बनाया गया है, जो सोलर पावर से काम करता है. यह वाटर प्यूरीफायर उन दूरदराज के इलाकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है, जहां प्रदूषित पानी तो छोडि़ए, पानी की ही बड़ी किल्लत है.
अपने इस प्रोजैक्ट के बारे में छात्र ईशान अवी गुप्ता ने बताया, ‘‘यह सिस्टम इस्तेमाल करने में बड़ा आसान है. मेरी डिवाइस में सोलर पैनल का इस्तेमाल होता है, जिस से बिजली पैदा होती है और फिर इलैक्ट्रोलसिस प्रक्रिया पानी में मौजूद नमक को सोडियम और क्लोरीन 2 हिस्सों में बांट देती है. इसी सोडियम का इस्तेमाल उस पानी में मौजूद नुकसानदायक जीवाणुओं, कीटाणुओं, विषाणुओं और दूसरे गैरजरूरी तत्त्वों को खत्म करने में किया जाता है, जिस से वह पानी पीने लायक हो जाता है.
‘‘मेरा ऐसा ही एक वाटर प्यूरीफायर उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद इलाके में लगा हुआ है. इस से उन लोगों को अपनी घरेलू जरूरतों के लिए पीने का साफ पानी मिल रहा है, जो प्रवासी मजदूर हैं और कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते हैं.
‘‘इसी तरह ‘मानव मंदिर मिशन ट्रस्ट’ के सहयोग से एक वाटर प्यूरीफायर दिल्ली के सराय काले खां इलाके में बने एक स्कूल में लगा हुआ है और दूसरा दिल्ली के ही मजनू का टीला इलाके में लगाया गया है, जो प्रवासी रिफ्यूजियों को पीने का साफ पानी मुहैया कराता है.’’
ईशान अवी गुप्ता जैसे छात्रों के ऐसे प्रोजैक्ट साफ पानी की समस्या को हल करने में मददगार साबित हो सकते हैं और यह आज की जरूरत भी है.