उड़द खरीफ के मौसम में ली जाने वाली दलहनी फसलों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है. उड़द को मुख्य रूप से दाल और बड़ा के रूप में खाया जाता है, जो कि शाकाहारियों के लिए प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. उड़द में प्रोटीन 25-26 फीसदी तक पाया जाता है.

उड़द की फसल का प्रयोग पशु आहार हरी खाद और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए  भी किया जाता है. उड़द फसल की जड़ों से 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन स्थापित होती है.

भूमि का चयन

उड़द फसल के लिए अच्छी जल निकास वाली मटासी दोमट या डोरसा भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों में उड़द की खेती बलुई डोरसा व मैदानी क्षेत्रों में मटासी भूमि का उपयोग किया जाता है.

भूमि की तैयारी

इस फसल का अच्छा उत्पादन लेने के लिए 2-3 बार खेत की हलकी जुताई कर घासफूस और कचरा साफ करना चाहिए. दीमक के बचाव के लिए क्लोरोपायरीफास 1.5 फीसदी चूर्ण 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिए. अंतिम जुताई के बाद पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिए.

बीज दर

उड़द को छिटकवां विधि से बोने के लिए 20-25 किलोग्राम/हेक्टेयर व कतार विधि से बोने के लिए 15-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता?है. मिश्रित फसल के लिए 5-7 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.

उड़द की उन्नत किस्में

मोजक रोग निरोधक-शेखर 1, टीयू-94-2 मोजक एवं भभूतिया रोग निरोधक-इंदिरा उड़द प्रथम.

बीज उपचार

बोआई करने के पहले बीज को सर्वप्रथम फफूंदनाशक थायरम या कार्बंडाजिम 2.5 ग्राम दवा/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. फिर उस के बाद राइजोबियम व पीएसबी कल्चर से 5-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें.

बोआई की विधि

उड़द फसल को पौधे से पौधे 8-10 सैंटीमीटर रखना चाहिए व कतार की दूरी 30 सैंटीमीटर में बोना अच्छा रहता है.

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

खेत की अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद या कंपोस्ट 4-5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिलाएं. इस के बाद बीज की बोआई के समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन,

40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम, पोटाश और 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालना चाहिए. उर्वरक की सही मात्रा का निर्धारण मृदा परीक्षण के बाद अधिक लाभदायक है.

नींदा नियंत्रण

फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि बोआई के 25-30 दिनों तक रहती है. इस अवधि में खरपतवार को निराईगुड़ाई कर नियंत्रण कर लेना चाहिए.

सिंचाई

खरीफ के सीजन में उड़द फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है, बल्कि अधिक वर्षा की स्थिति में जल निकास की उचित व्यवस्था करें.

कीट प्रबंधन

सफेद मक्खी-121, चित्तीदार फलीभेदक कीट.

* ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें व फसल के अवशेष को नष्ट करें.

* समय पर बोआई का काम करें, जिस से कीटों द्वारा नुमसान कम हो.

* प्रकाश प्रपंच या फैरोमौन ट्रैप का उपयोग करें. क्लोरोपायरीफास 50 फीसदी, साइपर मेथ्रिन 5 फीसदी का 1.0 लिटर प्रति हेक्टेयर का स्प्रे करना चाहिए.

रोग प्रबंधन

पीला मोजक : रोगवाहक सफेद

मक्खी के नियंत्रण के लिए मैटासिस्टौक्स रोगर 1 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी के हिसाब से डालें.

भभूतिया : इस रोग के कारण पत्तियों में सफेद पाउडर जमा हो जाता है. इस के निदान के लिए सल्फेक्स 3 ग्राम प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

कटाई

सही समय पर कटाई करें. उड़द की फसल में 80-90 फीसदी फलियां पकने पर ही कटाई करनी चाहिए. फसल अधिक सूख जाने पर खेत में ही चटकने लगती है. कटाई के पश्चात दानों को अच्छी तरह सुखा कर भंडारित करें.

उपज

12-14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज उचित काश्त क्रिया अपना कर ले सकते हैं. साथ ही, 15-20 क्विंटल पौष्टिक भूसा भी मिलता है. भंडारण के समय दानों में नमी की मात्रा 10-12 फीसदी रखते हैं.

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