बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लौक के कोइलपुरा गांव के पकडियहवा पुरवे के रहने वाले 28 वर्षीय दीनानाथ एक हाथ से विकलांग हैं. उन के पास खेती की जमीन न के बराबर है. 15 वर्ष पहले उन के परिवार में कुल जमापूजी के नाम पर महज 2 बकरियां थीं, जिस से दीनानाथ के परिवार का खर्चा मुश्किल से ही चल पाता था.
एक हाथ से विकलांग होने की वजह से दीनानाथ मेहनतमजदूरी भी नहीं कर सकते थे. इसलिए घर की महिलाएं मेहनतमजदूरी कर के परिवार चला रही थीं. एक दिन उन्होंने सोचा कि क्यों न बकरियों की संस्था बना कर बकरीपालन का व्यवसाय शुरू किया जाए. इस के लिए उन्हें जरूरत थी सही जानकारी की. ऐसे में उन्होंने गांव से 3 किलोमीटर दूर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया से संपर्क किया, जहां उन्हें कृषि वैज्ञानिकों ने बरबरी नस्ल के बकरीपालन की सलाह दी, क्योंकि बरबरी नस्ल की बकरियों को कम जगह, कम श्रम, कम पूंजी में पाला जा सकता है.
दीनानाथ को वैज्ञानिकों की बात जम गई. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से 2 बकरियां खरीद लीं और उन्हें घर ले आए. जब इन बकरियों के प्रजनन का समय आया, तो दीनानाथ ने पुनः बकरियों को कृषि विज्ञान केंद्र ले जा कर बकरियों का प्रजनन कराया. आखिर दीनानाथ की बकरियों ने सालभर में 2 बार 2-2 बच्चे दिए. इस तरह सालभर में दीनानाथ के पास 10 बकरियां हो गईं. अब पूरे जोश के साथ दीनानाथ ने बकरियों की देखरेख शुरू कर दी थी.
दीनानाथ की बकरियों के वजन में जहां तेजी से वृद्धि हो रही थी, वहीं इन बकरियों को देशी प्रजाति की अपेक्षा चारा व दाना भी कम देना पड़ रहा था.
आखिर दूसरा साल बीतने के बाद दीनानाथ के पास 10 बकरियों से 40 बकरियां हो गईं और चौथा साल बीततेबीतते 160 बकरियां हो चुकी थीं.
दीनानाथ ने इन बकरियों को 1,000 रुपए से ले कर 3,000 रुपए की दर से 80 बकरियों को बेच कर 2 लाख, 40 हजार रुपए प्राप्त किए, जिस से उन्होंने बकरियों के रहने के लिए सुरक्षित बाड़े का निर्माण कराया. साथ ही, अपने कच्चे घर को पक्का बनवा लिया.
दीनानाथ का कहना है कि देशी प्रजाति की अपेक्षा बरबरी नस्ल की बकरी का पालन लाभ का सौदा है, क्योंकि दूसरी प्रजातियों की अपेक्षा इन के शरीर से बदबू नहीं आती है. इसलिए बाजार में इस नस्ल की प्रजातियों की मांग ज्यादा होती है. बरबरी नस्ल की खासियत ही है कि एक बकरी से सालभर में 4 बच्चे मिलते हैं, जो कम समय में ही प्रौढ़ हो जाते हैं.
दीनानाथ का कहना है कि क्या हुआ मैं एक हाथ से अक्षम हूं. मेरी इस कमी को इन बकरियों ने दूर कर दिया. मेरे पास सालभर पहले 2 देशी बकरियां हुआ करती थीं, लेकिन मैं ने सही समय पर बरबरी बकरियों के नस्ल को पालने के लिए चुना. मेरे पास भले ही खेती की जमीन नहीं है, लेकिन इन बकरियों के पालने से मेरे पास खाने, पहनने व रहने की कोई कमी नहीं है.
दीनानाथ ने साबित कर दिया कि थोड़ी सी पूंजी लगा कर अगर बकरीपालन का व्यवसाय शुरू किया जाए, तो यह अच्छी आय का स्रोत साबित हो सकती है.