सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस मनिला के 2 सदस्य दल डाक्टर अमिलिया हेनरी और डाक्टर जसवंत विश्वविद्यालय पहुंचे. इन्होंने फसल अनुसंधान केंद्र पर पहुंच कर परियोजना के अंतर्गत लगाए गए परीक्षणों की जांच की और वहां पर मृदा के परीक्षण और फील्ड की जांच की.

फिलीपींस से आए प्रतिनिधिमंडल ने कुलपति प्रो. केके सिंह से मुलाकात की और भविष्य में दोनों देशों के सहयोग से किए जाने वाले शोध कार्यों के बारे में चर्चा की.

कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर केके सिंह ने कहा कि चावल उत्पादन के लिए सही विधि का चयन करना चाहे सीधी बीजारोपण विधि हो या नर्सरी विधि एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जो कई कारकों पर निर्भर करता है. सीधी बीजारोपण विधि में लागत की बचत होती है और ट्रांसप्लांटिंग और अंकुर प्रबंधन के लिए कम श्रम प्रविष्टियां आवश्यक होती हैं.

कृषि विश्वविद्यालय ने फिलीपींस के बीच एक अनुबंध किया है, जिस में धान उत्पादन की तकनीकी एवं उस के विकास के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य किए जाएंगे.

परियोजना की मुख्य अन्वेषण डाक्टर शालिनी गुप्ता ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रयास से अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के बीच इस बार एक अनुबंध हुआ है, जिस में शिक्षा शोध एवं प्रसार के कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा.

इस अंतर्राष्ट्रीय परियोजना की प्रधान अन्वेषक डाक्टर शालिनी गुप्ता ने यह भी बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए यह पहली परियोजना है, जिस के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलिपींस मनिला और यह कृषि विश्वविद्यालय मिल कर धान की स्क्रीनिंग और उन की उपयोगिता की जांच के लिए कार्य किया जाएगा. इस से यह पता चलाया जा सकेगा कि कौन से जर्म प्लाज्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए लाभकारी है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि कृषि विश्वविद्यालय में किए जा रहे इस प्रकार के अनुसंधान से सीधी बोआई की उपयोगिता का पता आसानी से लगाया जा सकेगा. उस के उपरांत उपयुक्त विधि का चयन करने से उत्पादन की संभावना को अधिकतम किया जा सकेगा.

उन्होंने कहा कि किसी दवाई से खरपतवार नियंत्रण में दिक्कतें आती हैं. खरपतवार खेत में अधिक हो जाता है. उस के नियंत्रण के लिए भी तकनीक विकसित करने पर विचार किया जाएगा. साथ ही साथ इस विधि से बोआई करने पर जल संरक्षण हो सकेगा.

उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकार के अनुसंधान से चावल की उत्पादकता और उत्पादन को और भी अधिक बढ़ाया जा सकेगा.

डाक्टर शालिनी गुप्ता ने बताया कि इस परियोजना के अंतर्गत प्राप्त विभिन्न जर्म प्लाज्म की खेत में सीधी बोआई की गई है. इस परियोजना के अंतर्गत लगभग आधा एकड़ क्षेत्रफल में धान की विभिन्न प्रजातियों की सीधी बोआई की गई है. यहां पर जो जर्म प्लाज्म लगाया गया है, उस की गुणवत्ता की जांच की जाएगी. साथ ही, देखा जाएगा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के वातावरण में कौन सा जर्म प्लाज्म अच्छा उत्पादन देता है.

इस दौरान विश्वविद्यालय के निदेशक शोध प्रोफैसर अनिल सिरोही, निदेशक, ट्रेनिंग और प्लेसमेंट और विभागाध्यक्ष प्रोफैसर आरएस सेंगर, परियोजना के सहअन्वेषक डाक्टर आदेश कुमार और एमएससी और पीएचडी के शोध छात्र भी मौजूद रहे.

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