खरीफ में धान की फसल की खास अहमियत है. धान की ज्यादा पैदावार लेने के लिए बहुत से कारक उत्तरदायी हैं, जिन में से अच्छे बीज का चुनाव, नर्सरी में पौध की देखरेख, रोपाई की विधि, पोषक तत्त्व प्रबंधन, पानी की उपलब्धता खास हैं. स्वस्थ व निरोगी पौध तैयार करने के लिए यह जरूरी है कि जरूरी उम्र की पौध की रोपाई की जाए इस से धान की फसल से भरपूर पैदावार मिल सकती है.
आमतौर पर संकर धान की नर्सरी 21 दिनों व दूसरी प्रजातियों की नर्सरी 25 दिनों में तैयार हो जाती है. तैयार नर्सरी की रोपाई अगर एक हफ्ते के अंदर हो जाए तो पौधों में कल्लों की तादाद ज्यादा निकलती है, जो पैदावार बढ़ाने में सहायक होती है.
खेत का चुनाव
धान की पौध ऐसे खेत में डालनी चाहिए जो सिंचाई के स्रोत के पास हो. धान की खेती के लिए पानी रोकने की क्षमता रखने वाली चिकनी या मटियार मिट्टी वाले इलाके ज्यादा सही रहते हैं. सिंचाई की सुविधा मुहैया होने पर धान हलकी भूमि में भी कामयाबी के साथ उगाया जा सकता है.
खेत की तैयारी
नर्सरी के लिए चुने हुए खेत की जुताई करने के बाद पाटा चला कर जमीन को समतल कर लेना चाहिए. पौध तैयार करने के लिए खेत में 2-3 सैंटीमीटर पानी भर कर 2-3 बार जुताई करें, ताकि मिट्टी लेह युक्त हो जाए और खरपतवार नष्ट हो जाएं.
आखिरी जुताई के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल करें, ताकि खेत में अच्छी तरह लेह बन जाए, जो पौध की रोपाई के लिए उखाड़ने में मदद मिले और जड़ों का नुकसान कम हो.
नर्सरी के लिए खाद
पौध तैयार करने के लिए 1.25 मीटर चौड़ी व 8 मीटर लंबी क्यारियां बना लें और प्रति क्यारी (10 वर्गमीटर) 225 ग्राम यूरिया, 400 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 65-70 ग्राम पोटाश मिलाएं. यह ध्यान रहे कि पौध जितनी स्वस्थ होगी, उतनी ही अच्छी उपज मिलेगी.
बोआई का समय
जून महीने के पहले हफ्ते से आखिरी हफ्ते तक बीज की बोआई करें, जबकि सुगंधित प्रजातियों की नर्सरी जून के तीसरे हफ्ते में डालें.
बीज की मात्रा
एक एकड़ क्षेत्रफल की रोपाई के लिए धान की महीन चावल वाली किस्मों का 12 किलोग्राम, मध्य दाने वाली किस्मों का 14 किलोग्राम और मोटे दाने वाली किस्मों का 16 किलोग्राम बीज सही होता है, जबकि संकर प्रजातियों के लिए प्रति एकड़ 7-8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.
बीजोपचार
जीवाणु झुलसा की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किलोग्राम बीज को 4 ग्राम स्टै्रप्टोसाइक्लीन दवा में मिला कर रातभर पानी में भिगोएं. दूसरे दिन बीज को छाया में सुखा कर नर्सरी डालें.
जहां इस रोग की समस्या न हो उस क्षेत्र में बीज को 12 घंटे तक पानी में भिगोएं और पौधशाला में बोआई से पहले बीज को कार्बेंडाजिम या थीरम की 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोगाम बीज की दर से उपचारित करें और उस के बाद बीज को समतल छायादार जगह पर फैला दें व भीगी जूट की बोरियों से ढक दें. बोरियों के ऊपर पानी का छिड़काव करें, जिस से नमी बनी रहे.
24 घंटे के बाद बीज अंकुरित हो जाएगा, फिर अंकुरित बीज की समान रूप से बोआई कर दें. ध्यान रखें कि बीज की बोआई शाम को करें, ताकि अगर तापमान ज्यादा हो तो अंकुरण नष्ट न होने पाए.
नर्सरी की देखरेख
अंकुरित बीज की बोआई के 2-3 दिनों के बाद पौधशाला में सिंचाई करें. खैरा रोग से बचाव के लिए एक सुरक्षात्मक छिड़काव 500 ग्राम जिंक सल्फेट को 2 किलोग्राम यूरिया या 250 ग्राम बु झे हुए चूने के साथ 100 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति 1000 वर्गमीटर क्षेत्रफल की दर से पहला छिड़काव बोआई के 10 दिन बाद और दूसरा छिड़काव 20 दिन बाद करना चाहिए.
सफेदा रोग के नियंत्रण के लिए 400 ग्राम फेरस सल्फेट को 2 किलोग्राम यूरिया के साथ 100 लिटर पानी में घोल बना कर 1,000 वर्गमीटर क्षेत्रफल में छिड़काव करें.