किसानों को काबिल बनाने में जुटे हैं डा. आरएस सेंगर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथसाथ राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके डा. आरएस सेंगर ने किसानों को प्रशिक्षित कर उन को और्गैनिक केला उत्पादन की तरफ मोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया है.
तकरीबन 27 साल से शिक्षा शोध और प्रसार के काम में लगे डा. आरएस सेंगर ने अनेक लेख लिखे, लघुकथाएं, विज्ञान के चमत्कार को रोचक हिंदी भाषा में लिख कर और विज्ञान साहित्य को सरल और सुबोध भाषा हिंदी में लिख कर आम जनता तक पहुंचाने का काम किया है.
डा. आरएस सेंगर औरैया जिले के एक छोटे से गांव आयाना में पैदा हुए. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव से ही हासिल की, जहां पर खेती को पास से देखा, खेती की समस्याओं को सम झा और उन को करीब से महसूस किया.
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, पंतनगर, ऊधम सिंह नगर, उत्तराखंड से साल 1993 में अपनी नौकरी की शुरुआत की थी, जहां पर रह कर उन्होंने पाया कि किसानों के खेतखलिहान और उन के द्वार तक किसानों को तकनीकी जानकारी पहुंचाने के लिए काफी काम किया. किसानों के बीच जा कर उन को मुफ्त प्रशिक्षण देने का काम भी उन्होंने किया.
उन्होंने टिशु कल्चर विधि से केले के रोगरहित पौधों को बना कर न्यूनतम दाम पर किसानों को उपलब्ध कराने का प्रयास किया. साथ ही, छात्रों व किसानों को प्रशिक्षित किया, ताकि वे अपने खेतों पर अधिक से अधिक केले की खेती कर सकें.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान गन्ने की खेती करते थे. इस के अलावा वह कोई अन्य खेती नहीं करना चाहते थे, लेकिन डा. आरएस सेंगर के प्रयासों के बाद किसानों ने केले
की खेती का महत्त्व सम झा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी केले की खेती शुरू की. उसी का नतीजा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब लगभग 200 से 300 किसान केले की खेती कर रहे हैं.
केले की खेती के फायदे
केले की खेती काफी फायदेमंद है, क्योंकि केला हमेशा बाजार में उपलब्ध रहता है और 12 महीने इस की अच्छी कीमत मिल जाती है. केले में पोषक तत्त्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में बीमारी व नुकसान होने का डर भी कम रहता है.
एक एकड़ में तकरीबन 1,300 से 1,400 पौधे लगाए जाते हैं और एक एकड़ में हर वर्ष तकरीबन 3 से साढ़े 3 लाख रुपए की आमदनी आसानी से हासिल की जा सकती है.
मिले हैं कई पुरस्कार
डा. आरएस सेंगर ने भारत में ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी है. साल 1993 से ले कर आज तक कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सोसाइटियों के द्वारा सराहनीय काम करने के लिए तकरीबन 30 पुरस्कारों से भी अधिक बार सम्मानित किया जा चुका है.
शुरू की टैली एग्रीकल्चर
कोरोना महामारी के दौरान पूरा देश परेशान था. ऐसी हालत में भारतीय खेती भी काफी प्रभावित हुई थी. किसानों के सामने तकनीकी जानकारी को पहुंचाने की दिक्कत थी, तो उसी बीच टैली एग्रीकल्चर की शुरुआत डा. आरएस सेंगर द्वारा की गई.
किसानों को ह्वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से जोड़ा और पौधों पर लगने वाली विभिन्न बीमारियों, कीटों और फसलों में आने वाली कई और समस्याओं के अलावा कैसे सुरक्षित रखें फसल को और कटाई के उपरांत अनाज को सुरक्षित भंडारण के लिए जैसी तमाम समस्याओं की जानकारी टैली एग्रीकल्चर के माध्यम से किसानों को पहुंचाई गईं, जिस से खेती पर दुष्प्रभाव कम पड़े और लोगों की तकनीकी जानकारी के प्रति जागरूकता बढ़े.
काफी किसान टैली एग्रीकल्चर से जुड़े और आगे आए. साथ ही, लौकडाउन के दौरान अपनी खेती से संबंधित समस्याओं को भेज कर उन का समाधान तुरंत हासिल किया, जिस से उन के समय और पैसे की बचत हुई.
तकनीकी जानकारी से किसानों की आमदनी बढ़ी
तकनीकी जानकारी पहुंचाने के लिए
डा. आरएस सेंगर के 1,000 से अधिक लेख हिंदी पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, जिस से देश के किसानों को फायदा हुआ.
उन्होंने अनेक कृषि पत्रिकाओं का संपादन कर किसानों को कृषि की तकनीकी जानकारी पहुंचाने का काम किया है. इस के अलावा आकाशवाणी, दूरदर्शन के साथ ही कई अन्य चैनलों के माध्यम से कृषि की जानकारी, केले की खेती की जानकारी पहुंचाने का काम किया है. इन दिनों वे किसानों को ड्रोन तकनीकी उपयोगिता के बारे में प्रशिक्षित कर रहे हैं.