गांवदेहात व शहरी इलाकों में दूध की जरूरत की सप्लाई के लिए आमतौर पर किसान गायभैंस पर ही निर्भर रहते हैं. कई बार अच्छी भैंस खरीद कर लाने के बाद भी हमें अच्छा दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है या कई बार भैंस दूध में रहने के बाद भी समय से गरम नहीं होती. इस के चलते किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है.
सब से पहले भैंसपालन के लिए अच्छी नस्ल की भैंस का होना बेहद जरूरी है. पशुपालकों को भैंसपालन संबंधी जानकारी होने के साथ ही उस की अलगअलग प्रजातियों की जानकारी होनी चाहिए. इस के लिए आप मुर्रा भैंस को चुन सकते हैं. मुर्रा भैंस को पालने के लिए उसे संतुलित आहार देना भी बेहद जरूरी है. इस की पूरी और सटीक जानकारी होनी चाहिए.
पशुपालकों को चाहिए कि वे पशुओं के लिए एक बेहतर चारा तैयार करें. इस में दाने की तकरीबन 35 फीसदी मात्रा होनी चाहिए. इस के अलावा खली (सरसों की खली, मूंगफली की खली, अलसी की खली, बिनौला की खली) की मात्रा तकरीबन 30 किलोग्राम होनी चाहिए. इन में से कोई भी खली आप मिला सकते हैं.
इस के अलावा गेहूं का चोकर या चावल की पालिका भी 30 किलोग्राम प्रयोग करें.
2 किलोग्राम खाने वाला नमक और 3 किलोग्राम खनिज मिश्रण पाउडर मिला कर राशन की मात्रा को 100 किलोग्राम बना लें.
अब इस राशन को दूध के मुताबिक प्रति 2.5 लिटर दूध पर 1 किलोग्राम राशन जानवर को उपलब्ध कराएं. इस के अलावा एक से डेढ़ किलोग्राम राशन पशु के स्वास्थ्य के लिए दें. इस प्रकार आप का पशु दूध व स्वास्थ्य दोनों ही हिसाब से अच्छा हो जाएगा.
भैंस हर साल बच्चा दे
अगर भैंस ने हर साल बच्चा नहीं दिया, तो भैंस पर आने वाला रोजाना सवा सौ रुपए का खर्चा आप नहीं निकाल सकते हैं, इसीलिए भैंसपालक इस बात को ध्यान में रखें और अगर जरूरत पड़ती है, तो भैंस का इलाज भी नियमित रूप से पशु डाक्टर से करवाएं.
भैंसों के लिए आरामदायक बाड़ा
भैंसपालन के लिए सब से जरूरी बात है कि उन का रखरखाव साफसुथरा हो. उन के लिए आरामदायक बाड़ा बनाया जाना चाहिए. बाड़ा ऐसा हो, जो भैंस को सर्दी, गरमी व बरसात से बचा सके. बाड़े में कच्चा फर्श हो, लेकिन वह फिसलन भरा नहीं होना चाहिए. बाड़े में सीलन न हो और वह हवादार हो.
पशुओं के लिए साफ पानी पीने के लिए रखना चाहिए. अगर पशुओं को आराम मिलेगा, तो उन का दूध उत्पादन उतना ही बेहतर होगा.
भैंस की नस्लें
भैंस प्रमुख दुधारू पशु है. इस की अपनी भी कई तरह की प्रजातियां हैं. तो आइए जानते हैं कि ये नस्लें कौनकौन सी हैं :
मुर्रा भैंस
यह दूध देने वाली सब से उत्तम भैंस होती है. भारत और अन्य देशों में भी इस के बीज का कृत्रिम गर्भाधान में उपयोग किया जाता है.
यह भैंस प्रतिदिन 10-20 लिटर दूध दे देती है. इस के दूध में चिकनाई की मात्रा गाय के दूध से दोगुनी होती है. इस के दूध का इस्तेमाल दही, दूध, मट्ठा, लस्सी आदि में होता है.
भदावरी भैंस
यह ज्यादातर उत्तर भारत के कई इलाकों में देखी जा सकती है. इस के अलावा यह मथुरा, आगरा, इटावा आदि जगह पर आप को देखने को मिल सकती है. इस के दूध में 14 से 18 फीसदी तक फैट शामिल होता है.
मेहसाना भैंस
यह भैंस एक ब्यांत में 1,200 से 1,500 लिटर दूध देती है. यह गुजरात के मेहसाणा जिले में पाई जाती है.
यह भैंस काफी बेहतर होती है. इस में प्रजनन की कोई भी समस्या नहीं होती है. इस को मुर्रा भैंस से क्रौस करवा कर दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है.
जाफराबादी भैंस
यह भैंस मुख्य रूप से गुजरात राज्य में मिलती है. इस भैंस का सिर काफी भारी होता है. इस के सींग नीचे की ओर झुके हुए होते हैं. यह शरीर में भी काफी भारी होती है. इस भैंस के दूध में काफी मात्रा में वसा पाई जाती है.
भैंसपालन के लिए आहार की विशेषताएं
* भैंस के लिए आहार बेहद ही संतुलित होना चाहिए. इस के लिए दाना मिश्रण में प्रोटीन और ऊर्जा के स्रोतों व खनिज लवणों का पूरी तरह से समावेश होना चाहिए.
* आहार पूरी तरह से पौष्टिक और स्वादिष्ठ होना चाहिए और इस में कोई बदबू नहीं आनी चाहिए.
* दाना मिश्रण में ज्यादा से ज्यादा प्रकार के दाने और खलों को मिलाना चाहिए.
* आहार पूरी तरह से सुपाच्य होना चाहिए. किसी भी रूप में कब्ज करने वाले या दस्त करने वाले चारे को पशु को नहीं खिलाना चाहिए.
* भैंस को भरपेट खाना खिलाना चाहिए. उस का पेट काफी बड़ा होता है. उस को पूरा पेट भरने पर ही संतुष्टि मिलती है. अगर भैंस का पेट खाली रह जाता है, तो वह मिट्टी, चिथड़े और गंदी चीजें खाना शुरू कर देती है.
* भैंस के चारे में हरा चारा ज्यादा मात्रा में होना चाहिए, ताकि वह पौष्टिक रहे.
* भैंस के चारे में अचानक बदलाव न करें. यदि कोई भी बदलाव करना है, तो पहले वाले आहार के साथ मिला कर उस में धीरेधीरे बदलाव करें.
* भैंस को ऐसे समय पर खाना खिलाएं, जिस से कि वह लंबे समय तक भूखी न रहे यानी उस के खाने का एक नियत समय रखें और आहार में बारबार बदलाव न करें.
भैंस के लिए उपयुक्त चारा
भैंस के लिए हम 2 तरह से आहार को बांट सकते हैं, जो कि काफी फायदेमंद होता है.
चारा और दाना : चारे में रेशेयुक्त तत्त्वों की मात्रा शुष्क भार के आधार पर 18 फीसदी से ज्यादा होती है. पचनीय तत्त्वों की मात्रा 60 फीसदी से कम होती है.
सूखा चारा : चारे में नमी की मात्रा यदि 10-12 फीसदी से कम है, तो यह सूखे चारे की श्रेणी में आता है. इस में गेहूं का भूसा, धान का पुआल, ज्वार, बाजरा और मक्का, कड़वी आदि है. इन की गणना घटिया चारे के रूप में होती है, जो कि केवल पेट भरने का काम करता है.
हरा चारा : यदि हरे चारे में पानी की मात्रा 80 फीसदी हो, तो इसे हरा व रसीला चारा कहते हैं. पशुओं के लिए यह हरा चारा 2 प्रकार का होता है, दलहनी और बिना दाल वाला.
दलहनी चारे में बरसीम, रिजका, ग्वार, लोबिया आदि आते हैं. इन में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है. ये अत्यधिक पौष्टिक व उत्तम गुणवत्ता वाले होते हैं, वहीं बिना दाल वाले चारे में ज्वार, बाजरा, मक्का, जई, अगोला और हरी घास आदि आते हैं. दलहनी चारे की अपेक्षा इन में प्रोटीन की मात्रा कम होती है.
अगर इस प्रकार से पशुपालक भैंसपालन करेंगे, तो निश्चित ही अपने पशु से लाभ पा सकते हैं.