अगर सब्जी फसल की ठीक तरह से देखभाल न की जाए, तो उस में अनेक कीट और बीमारी आने में समय नहीं लगता. इसलिए फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए उसे कीट व बीमारी से बचाना भी बहुत जरूरी है.
यहां आप को टमाटर की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट और बीमारियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही है :
सफेद मक्खी कीट
इस कीट के शिशु और वयस्क दोनों ही पौधों की पत्तियों से रस चूसते हैं और गुर्चा रोग के विषाणु से पौधे को ग्रसित कर देते हैं. इस से पौधे की बढ़वार रुक जाती है. फल देने की क्षमता घट जाती है और कभीकभी रोग ग्रसित पौधे फलविहीन हो जाते हैं और पूरी की पूरी फसल बरबाद हो जाती है.
प्रबंधन
* पौधशाला ज्यादा घनी नहीं होनी चाहिए.
* पौधशाला को एग्रोनेट की जाली से ढकना चाहिए, जिस से सफेद मक्खी उस में घुस न पाए.
* इमिडा क्लोप्रिड रसायन से बीज उपचार 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करने से इस का नियंत्रण लाभकारी है. यह 40 से 45 दिन तक पौधे को इस मक्खी से सुरक्षित रखने में सक्षम है.
* यदि फसल में कीट नहीं आया है, तो नीम तेल 1,500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.
* यदि खेत में कीट आ गया है तो इमिडा क्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.
पर्ण सुरंग कीट
पौध अवस्था में यह कीट ज्यादा हानिकारक होता है. मादा कीट पत्तियों के तंतु में रंगहीन अंडा देती है, जिस से 2 से 3 दिनों बाद मैगट निकल कर पत्तियों में टेढ़ीमेढ़ी सुरंग बना कर पत्तियों के हरे भाग को खा कर खत्म कर देता है. इन के प्रकोप से पत्तियां मुरझा कर सूख जाती हैं और पौधा उपयुक्त रूप से फूल और फल नहीं दे पाता है.
प्रबंधन
* नाइट्रोजन का समुचित प्रयोग करना चाहिए.
* पौध के निचले भाग पर कीड़ों से प्रभावित पत्तियों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए.
* इस कीट के नियंत्रण के लिए क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
फल छेदक कीट
इस कीट की सूंड़ी टमाटर के कच्चे फलों को छेद कर नुकसान पहुंचाती है और अंदर से गूदा खाती है. जिस फल पर यह कीट सुराख कर देता है, उस में आसानी से फफूंदी का प्रकोप हो जाता है और फल पूर्ण रूप से सड़ जाता है.
प्रबंधन
* गरमी में खेत की गहरी जुताई करें.
* क्षतिग्रस्त फलों को तोड़ कर खत्म करते रहें.
* फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर में 12 से 15 की दर से खेत में लगाएं.
* ट्राई कार्ड 50,000 प्रति हेक्टेयर की दर से 7 से 10 दिन के अंतराल पर 6 बार छोड़ना लाभकारी सिद्ध होता है.
* एचएनपीवी 250 लार्वी समतुल्य 1 किलोग्राम के साथ मिला कर 300 लिटर पानी में घोल बना कर 10 दिन के अंतराल पर 3 बार छिड़काव करने से फल छेदक कीट की कमी होती है.
* रोपाई के समय 16 लाइन टमाटर के साथ एक लाइन गेंदा की लगाने से टमाटर की फसल काफी हद तक बच सकती है.
* यदि खेत में कीट नहीं आया है, तो नीम तेल 1500 पीपीएम की 3 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.
* यदि खेत में कीट आ गया है, तो प्रोफेनोफास की 1.5 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर तुरंत छिड़काव करें.
अगेती झुलसा रोग
इस रोग का लक्षण पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई पड़ता है. प्रभावित पत्तियों पर छोटेछोटे गोल व भूरे या काले रंग के धब्बे बनते हैं. यह धब्बे छल्लेदार होते हैं. कई धब्बों के एकसाथ मिलने से पत्तियां पीले रंग की हो कर मुरझा जाती हैं. फलों पर भी ऐसे लक्षण आ जाते हैं. तनों पर धब्बे लंबवत बनते हैं.
प्रबंधन
* बीज रोगमुक्त बोना चाहिए.
* पौधों पर 8 से 10 दिन के अंतराल पर मैंकोजेब 45 की 3 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करते रहें.
पछेती झुलसा रोग
इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों, टहनियों और फलों पर विभिन्न प्रकार के बड़े हलके रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं. थोड़े ही समय में यह बीमारी बहुत तेजी से पूरी फसल में फैल जाती है.
प्रबंधन
* सेहतमंद और प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करें.
* लक्षण दिखाई देते ही रिडोमिल एमजैड 78 की 2.5 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर कम से कम 2 बार 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
आर्द्र गलन रोग
अंकुरण के बाद शुरुआती लक्षण भूमिगत बीजांकुरों के भूमि से बाहर निकलने पर पौध गलन होने के रूप में दिखाई देते हैं. भूमि की सतह पर पौधे का अचानक गिर पड़ना और पौधे का गलन इस रोग का मुख्य लक्षण है.
प्रबंधन
* इस रोग के नियंत्रण के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड की 2 ग्राम दवा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहें.
पर्ण कुंचन रोग
यह एक विषाणुजनित रोग है. प्रभावित पत्तियों में विशेष तरह के मोजेक नमूने बनते हैं. पत्तियों का हरापन खत्म या कम हो जाता है. पत्तियां नीचे की ओर किनारों से मुड़ने लगती हैं और साधारण पत्ती की अपेक्षा मोटी हो जाती हैं.
पत्तियों का अगला हिस्सा तंतु जैसा हो सकता है. रोग ज्यादा होने की अवस्था में पौधा बौना रह जाता है और रोग ग्रस्त पौधों में फूल देर से आता है. फल छोटे और कच्चे रह जाते हैं. यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है.
प्रबंधन
* रोग प्रतिरोधी किस्में लगाएं.
* रोग को पनपने में बढ़ावा देने वाले खरपतवार जैसे धतूरा, मकोय वगैरह को खेत में न रहने दें.
* इस रोग के नियंत्रण के लिए 15 से 20 दिन के अंतराल पर इमिडा क्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करते रहें.
धूप से फलों का सफेद होना (सन बर्न)
मई के महीने में टमाटर के फल सूरज की रोशनी से सीधे संपर्क में आने से सफेद पड़ने लगते हैं. इस से न सिर्फ बाजार भाव ही कम हो जाता है, बल्कि उपज में भी गिरावट आती है.
प्रबंधन
* ऐसी प्रजातियों का चयन करें, जिन में पत्तियां ज्यादा निकलती हों.
* सिंचाई की अच्छी व्यवस्था रखें.
* टमाटर की 2-3 पंक्तियों के बीच में सनई या ढेंचा लगाएं, ताकि छाया से फल खराब न हों.
अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से संपर्क करें.