सदियों से बकरियां ज्यादातर निर्बल, भूमिहीन, खेतिहर मजदूर, आर्थिक रूप से पिछड़े व सीमांत किसानों के लिए बहुत उपयोगी रही हैं. बकरीपालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे बड़ा, मध्यम, छोटा व भूमिहीन किसान कम लागत और कम जगह में आसानी से कर सकता है.
बकरियां हमें दूध, मांस, खाल व खाद प्रदान करती हैं, जिसे जब चाहे, जहां चाहे आसानी से बेच कर पैसा कमा सकते हैं, इसलिए बकरी को गरीबों की गाय कहा जाता हैं.
* बकरीपालन से अच्छा मुनाफा लेने के लिए 10 बकरियों और एक बकरे से बकरीपालन यूनिट की शुरुआत करें.
* बकरियां 10 से 12 माह में बच्चे देने योग्य हो जाती हैं और आमतौर पर एक से ज्यादा बच्चे देती हैं.
* बकरे 12-15 माह की उम्र के बाद ही प्रजनन करने योग्य हो जाते हैं.
* बकरा और बकरी के बीच नजदीकी संबंध न होने दें, इसलिए इन को अलगअलग रखना चाहिए.
* बकरियों को गरम होने (गरमी में आने) के 10-12 और 24-26 घंटों के बीच 2 बार पाल दिलाएं.
* बकरी को बच्चा देने के 35 से 40 दिनों के बाद ही गरम होने (गरमी में आने) पर गाभिन कराएं.
* गाभिन बकरियों को गर्भावस्था के आखिरी डेढ़ महीने में चारे के अलावा कम से कम 200 से 300 ग्राम तक संतुलित दाना मिश्रण जरूर खिलाएं.
* बकरियों को हमेशा ताजा व साफ पानी पिलाएं.
* हरे चारे के लिए मौसमी चारे जैसे लोबिया व सूडान चरी वगैरह की बोआई करें.
* बकरियों को कोमल पत्तियां खाना ज्यादा पसंद है, इसलिए पाकड़, पीपल, गूलर, सहजन, बबूल वगैरह पौधों का रोपण करें.
* खनिजों की कमी पूरी करने के लिए 20 ग्राम खनिज लवण मिश्रण प्रति पशु के हिसाब से रोजाना दें.