धान की रोप में काफी लागत और मजदूरों की कमी के चलते किसानों को तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फायदा कम ले पाते हैं. लागत कम करने के लिए ड्रम सीडर का प्रयोग काफी उपयोगी है.
प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि धान की सीधी बोआई वाली एक मशीन वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई है, जिसे पैडी ड्रम सीडर कहते हैं. जो किसान किसी वजह से धान की नर्सरी नहीं डाल पाए हैं, वे धान की कम अवधि की प्रजाति की बोआई सीधे ड्रम सीडर से कर सकते हैं. यह बहुत ही सस्ती और आसान तकनीक है. इस की बनावट बिलकुल आसान है.
उन्होंने कहा कि यह मशीन मानवचालित है. 6 किलोग्राम वजन व 170 सैंटीमीटर लंबी यह मशीन है. बीज भरने के लिए 4 से 6 प्लास्टिक के खोखले ड्रम लगे रहते हैं, जो एक बेलन पर बंधे रहते हैं. ड्रम में 2 पंक्तियों पर 9 मिलीमीटर व्यास के छेद बने होते हैं.
ड्रम की एक परिधि में बराबर की दूरी पर कुल 15 छेद होते हैं. 50 फीसदी छेद बंद रहते हैं. बीज का गिराव गुरुत्वाकर्षण के कारण इन्हीं छेदों के द्वारा होता है. बेलन के दोनों किनारों पर पहिए लगे होते हैं. इन का व्यास 60 सैंटीमीटर होता है, ताकि ड्रम पर्याप्त ऊंचाई पर रहे.
मशीन को खींचने के लिए एक हत्था लगा रहता है. आधे छेद बंद रहने पर मशीन द्वारा सूखा बीज दर 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग किया जाता है. पूरे छेद खुले होने पर 55 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है.
प्रत्येक ड्रम के लिए अलगअलग ढक्कन बना होता है, जिस में बीज भरा जाता है. मशीन में पूर्व अंकुरित धान का बीज प्रयोग में लाते हैं. बोआई के समय लेव लगे हुए समतल खेत में 2 से 2.5 इंच पानी होना आवश्यक है.
एक दिन में ड्रम सीडर से 1 से 1.40 हेक्टेयर खेत में बोआई की जाती है. ड्रम सीडर की उपयोगिता धान की रोपाई न करने से बढ़ जाती है. इस में नर्सरी तैयार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. 20 सैंटीमीटर की दूरी पर पंक्तिबद्ध बीज का जमाव होता है, जिस से फसल का विकास अच्छा होता है और निराई व अन्य क्रियाओं में सुगमता होती है. वहीं फसल सुरक्षा पर कम खर्च आता है.
फसल 10 से 15 दिन पहले पक जाती है, जिस से अगली फसल गेहूं की बोआई समय पर संभव होती है और उस का उत्पादन अच्छा मिलता है. पहली सिंचाई 3-4 दिन बाद हलकी व धीरेधीरे शाम के समय करें.