देश में ऐसे तमाम फलफूल और पौध हैं, जो अपने औषधीय गुणों और लजीज स्वाद के लिए जाने जाते हैं. लेकिन इन में से कुछ ऐसे पौधे भी हैं, जो क्षेत्र विशेष में उगने या पाए जाने के चलते आज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं. इन्हीं में एक विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके फलदार औषधीय पौध पनियाला के फल का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ कर बोलता है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर क्षेत्र में पाया जाने वाला पनियाला का फल अपनी विशेषता और स्वाद के चलते खूब जाना जाता है. कभी यह गोरखपुर, महराजगंज और कुशीनगर के जंगलों के अलावा सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीर नगर जिलों में बहुतायत में पाया जाता था. लेकिन बीते दशकों में पौधों की कटाई ने इसे विलुप्त होने के स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है.
बचाने की शुरू हुई पहल
जामुन की तरह दिखने वाले और खट्टेमीठे स्वाद वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश में कभी इस फल के कई बगीचे हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ बढ़ी आबादी ने अपने रहने के लिए घर बनवाने के चक्कर में पनियाला के पेड़ को काट दिया और वहां अपना घर बना लिया.
ऐसे में इस की पौधे अब केवल गोरखपुर क्षेत्र के जंगली इलाके में ही सिमट कर रह गए हैं. दुर्लभ पौध को बचाने के लिए योगी सरकार ने खास पहल करते हुए इस के जीआई टैगिंग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन कराने का काम किया है. इस से इस पौधे और इस के फल को विशेष पहचान और दर्जा मिलने से एक एग्रोक्लाईमेट जोन वाले गोरखपुर सहित महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीर नगर, बहराइच, गोंडा और श्रावस्ती के लाखों किसानों और बागबानों को लाभ भी मिलेगा. साथ ही, इस पौध को संरक्षित कर इस के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा भी मिलेगा.
क्या है जीआई टैग
भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उस के मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है. जीआई टैग बताता है कि विशेष उत्पाद किस जगह पैदा होता है. जीआई टैग उन उत्पादों को ही दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र की विशेषता रखते हैं, पनियाला उन्हीं में से एक है.
भारत द्वारा संसद में साल 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटैक्शन ऐक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस औफ गुड्स’ लागू किया था. इस के तहत ही जीआई टैगिंग की जाती है.
औषधीय गुणों से भरपूर है पनियाला
पनियाला पर किए गए शोध में यह बात निकल कर आई कि इस के पत्तों, जड़, छाल, और फलों में एंटीबैक्टिरियल गुणों की प्रचुरता होती है, जिस से यह सेहत के लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है.
गोरखपुर विश्वविद्यालय में साल 2011 से 2018 के बीच बौटनी विभाग में शोध करने पर पता चला कि पनियाला का फल गुणों से भरा हुआ है.
शोध के अनुसार, इस के पत्ते, छाल, जड़ों और फलों में बैक्टीरिया से लड़ने की प्रतिरोधात्मक क्षमता होती है. पेट से जुड़े रोगों में पनियाला काफी लाभकारी होता है, लेकिन आज गोरखपुर का यह पनियाला कम होता नजर आ रहा है.
इस के औषधीय गुणों को ले कर साल 2010 में अमेरिकन यूरेशियन जर्नल औफ साइंटिफिक रिसर्च में में एक शोध प्रकाशित हुआ था, जिस में यह बताया गया था कि पनियाला के पत्तों में बड़ी मात्रा में एंटीऔक्सिडेंट मौजूद है, जो बुढ़ापे की निशानी को कम करने के साथ ही तनाव को भी कम करता है.
एक और जर्नल औफ एथनोफारमाकोलोजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, पनियाला के पत्तों में मलेरिया रोधी तत्व पाए जाते हैं. साल 2011 में इंटरनेशनल जर्नल औफ ड्रग डेवलपमेंट एंड रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया कि पनियाला के पत्तों में सूक्ष्म जीवरोधी और बैक्टीरियारोधी गुण भी पाए जाते हैं.
अफ्रीकन जर्नल औफ बेसिक एंड अप्लाइड साइंसेस में प्रकाशित एक शोध पनियाला के दमारोधी होने की भी पुष्टि करता है.
इस के फल का उपयोग पेट के कई रोगों, दांतों एवं मसूढ़ों में दर्द, इन से खून आने, कफ, निमोनिया और खरास आदि से बचाव में भी किया जाता है. इस के फलों को लिवर के रोगों में भी उपयोगी पाया गया है. इस के फलों को जैम, जैली और जूस के रूप में संरक्षित कर लंबे समय तक रखा जा सकता है.
कैसे करें पनियाला की पहचान
पनियाला का वैज्ञानिक नाम ‘फ्लाकोर्टिया इंडिका’ है. इस का फल जामुनी रंग का खट्टेमीठे स्वाद वाला होता है. इस पेड़ की औसत ऊंचाई लगभग 20-30 फुट तक होती है और इस में सफेद रंग का फूल आता है. इस में मईजून माह में फूल आता है और इस के फल सितंबरअक्तूबर में पक कर तैयार होते हैं. इस के नए पौधे बीज, कटिंग और कलम विधि से तैयार किए जा सकते हैं. लेकिन उद्यान से जुड़े माहिरों का मानना है कि पनियाला के बीज से तैयार पौधों की तुलना में कलम या कटिंग से तैयार पौधों में मूल गुण ज्यादा सुरक्षित रहते हैं.
रोपाई का मुफीद समय
भारत में ज्यादातर पौधों की रोपाई मानसून सीजन में की जाती है. पनियाला भी उन्हीं में से एक है. इस के पौधों की रोपाई का मुफीद समय जुलाई से अक्तूबर महीने तक का होता है.
पनियाला के पौध विलुप्त होने कगार पर भले ही हों, लेकिन इस के पौधे आज भी गोरखपुर क्षेत्र से सटे पीपीगंज और उस के आसपास के जंगली इलाकों में स्थानीय लेवल पर ग्रामीणों ने संरक्षित कर रखा है.
ऐसे में अगर आप इस बेहद लजीज स्वाद वाले विलुप्तप्राय औषधीय पौधे को रोप कर अपनी बगिया की शोभा बढ़ाना चाहते हैं, तो आप गोरखपुर इलाके में स्थानीय लेवल पर संपर्क कर पौधे प्राप्त कर सकते हैं.
किसानों की बढ़ाएगा आमदनी
पहले पनियाला के फलों की डिमांड जानकारी न होने से स्थानीय लेवल पर ही हुआ करती थी, लेकिन इस को जीआई टैग मिल जाने से इस की मांग और कीमत में उछाल देखा गया है. कुछ साल पहले गोरखपुर जिले के करमहिया गांव सभा के करमहा गांव में पारस निषाद के घर यूपी स्टेट बायोडायवरसिटी बोर्ड के आर. दूबे गए थे. उस समय उन के पास पनियाला के 9 पेड़ थे. उस समय अक्तूबर में पकने वाले पनियाला के फल का दाम 60-90 रुपया प्रति किलोग्राम हुआ करता था, जो इस समय 200 से 300 रुपया प्रति किलोग्राम तक हो गया है.