उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय की अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान परियोजना के तहत गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन 16 अगस्त से ले कर 22 अगस्त, 2023 तक राजस्थान कृषि महाविद्यालय में किया जा रहा है.
कार्यक्रम के पहले दिन यानी 16 अगस्त, 2023 को मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में बताया कि गाजरघास एक अत्यंत ही दुष्प्रभावी पादप है एवं देश की एक ज्वलंत समस्या है. इस के लिए जनजागृति की आवश्यकता है. पूर्व में यह हमारे देश में नही था, परंतु विगत कुछ वर्षों में खाद्यान्न के आयात के माध्यम से ये हमारे देश में आ गया और वर्तमान में एक विकट समस्या के रूप में जड़ें जमा चुका है.
उन्होंने आगे कहा कि गाजरघास से पर्यावरण व सभी तरह की फसलों को नुकसान है. इस की रोकथाम के लिए जनसाधारण को जागरूक करना एवं इस के प्रभावी नियंत्रण के लिए योजनागत निरंतर प्रयास अत्यंत जरूरी है.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. ज्ञानेंद्र सिंह, निदेशक, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने कहा कि गाजरघास बहुत ही तेज गति से कृषि को प्रभावित कर रहा है. इस की रोकथाम के लिए बहुत अधिक मात्रा में खर्चे, महंगे शाकनाशी व इस के खात्मे के लिए काफी मेहनत भी करनी होती है.
उन्होंने आगे बताया कि गाजरघास से कई प्रकार के रोग होते हैं, जिस में त्वचा एवं सांस संबंधी एलर्जी प्रमुख है. गाजरघास की बढ़वार बहुत तीव्र गति से होती है, जिस के चलते अन्य प्रकार के पौधे, वनस्पति उत्पन्न नहीं हो पाते हैं, जिस से जैव विविधता को बहुत बड़ी हानि होती है.
कार्यक्रम में अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान परियोजना प्रभारी एवं निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने गाजरघास के हानिकारक प्रभावों का विस्तृत वर्णन किया एवं गाजरघास के नियंत्रण के लिए कई प्रकार के यांत्रिक रासायनिक नियंत्रण के बारे में जानकारी दी.
इस अवसर पर उन्होंने कृषि छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि गाजरघास उन्मूलन के लिए पूरे साल क्रियाशील रहने का आवाह्न किया और कहा कि गाजरघास जागरूकता सप्ताह की जगह अब समय आ गया है, इस के उन्मूलन को अभियान के रूप में लेना चाहिए. साथ ही, उन्होंने बताया कि अल्पकाल में ही गाजरघास पूरे देश में एक भीषण प्रकोप की तरह लगभग 35-40 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैल चुकी है.
गाजरघास से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक रहने का स्पष्ट संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि विगत वर्षों से इस कार्यक्रम को संचालित किया जाता रहा है, जिस के फलस्वरूप महाविद्यालय परिसर में गाजरघास के संक्रमण में सार्थक कमी आई है, पर इस कार्यक्रम की सार्थकता व्यापक क्षेत्र के परिपेक्ष्य में देखी जानी चाहिए. अतः इस दिशा में हमें निरंतर अथक प्रयास करने होंगे.
इस अवसर पर राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के अधिष्ठाता डा. एसएस शर्मा, निदेशक प्रसार शिक्षा, डा. आरए कौशिक, सीडीएफटी के अधिष्ठाता डा. लोकेश गुप्ता, डीआरआई डा. बीएल बाहेती, भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान परियोजना, करनाल के परियोजना समन्वयक डा. रतन तिवारी, विशेषाधिकारी डा. विरेंद्र नेपालिया, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डा. अमित त्रिवेदी एवं उपनिदेशक अनुसंधान डा. रवि कांत शर्मा, महाविद्यालय के समस्त विभागाध्यक्ष, समस्त शिक्षकगण एवं 120 विद्यार्थियों ने भाग लिया.
इस अवसर पर डा. अरविंद वर्मा, परियोजना प्रभारी द्वारा लिखित गाजरघास उन्मूलन एक फोल्डर का विमोचन किया गया. तदनुपरांत प्रसार शिक्षा विभाग व पुस्तकालय के आसपास के क्षेत्र में समस्त उपस्थित अधिकारियों एवं छात्रछात्राओं द्वारा गाजरघास उखाड़ कर श्रमदान किया.