अल्पान केला (चीनिया केला) बिहार की लोकप्रिय किस्म है. केले की खेती के लिए सब से अच्छी बात यह है कि इसे सालभर में कभी भी लगाया जा सकता है.
अल्पान केले को विभिन्न प्रदेशों में चंपा, चीनी चंपा, चीनिया, डोरा वाज्हाई, कारपुरा चाक्काराकेली इत्यादि नामों से जानते हैं. ये सभी प्रजातियां मैसूर समूह में आती हैं.
स्वाद और सुगंध से भरपूर यह प्रजाति किसानों के लिए फायदे की फसल होती है.
यह बिहार, तमिलनाडु, बंगाल व असम की एक मुख्य व प्रचलित किस्म है. इस का पौधा लंबा और पतला होता है. फल छोटे, उन की छाल पीली और पतली, कड़े गूदेदार, मीठा, कुछकुछ खट्टा व स्वादिष्ठ होता है.
फलों का घौंद 20-25 किलोग्राम का होता है. प्रति घौंद 20-22 हत्था और प्रति हत्था 20-22 फिंगर्स (केला) होता है. इस प्रकार से कुल फलों की संख्या 250-450 हो सकती है. प्रकंद से लगाने पर फसल चक्र 16-17 महीने का होता है.
केले की खेती के लिए 6 से 7.5 पीएच मान की अम्लीय मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती है. खेतों की मिट्टी की जांच कराने के बाद उस का सही इलाज कर के किसी भी खेत में केले की खेती की जा सकती है.
केले की खेती के लिए सब से अच्छी बात यह है कि इसे सालभर में कभी भी लगाया जा सकता है. इस के पौधों को मजबूत बनाने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम की जरूरत होती है. प्रति हेक्टेयर केले के 3,630 पौधे ही लगाने चाहिए और पौधों के बीच तकरीबन 1.82 मीटर की दूरी रखनी चाहिए.
चीनिया केला बिहार की लोकप्रिय किस्म है. इस के पौधे केले की दूसरी प्रजातियों की तुलना में ज्यादा कोमल, पतले और कम बढ़वार वाले होते हैं. वैशाली जिले में चीनिया केले की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. इस के अलावा समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिलों में भी इस की बहुतायत खेती होती है. चीनिया केले का तना लंबा, पतला और हलके रंग का होता है. इस के पत्ते चौड़े और लंबे होते हैं. इस केले की घौंद काफी कसी हुई होती है.
पके हुए चीनिया केले के छिलके का रंग चमकीला पीला होता है. इस के फलों की भंडारण कूवत बाकी किस्म के केलों से बेहतर होती है. पके हुए फलों को कमरे के सामान्य तापमान पर 3-4 दिनों के लिए भंडारित किया जा सकता है.
इस का पौधा पनामा रोग के प्रति कुछ हद तक अवरोधी होता है. इस में केवल धारीदार विषाणु रोग का प्रकोप ज्यादा होता है. लेकिन बिहार के वैशाली इलाके में यह प्रजाति पर पनामा बिल्ट, अंत:विगलन रोग व शीर्ष गुच्छ रोग भी ज्यादा लगता है. भारत में इस प्रजाति के केलों की खेती मुख्यत: बहुवर्षीय पद्धति के आधार पर हो रही है.
अल्पान केले की खूबी यह है कि पकने के बाद इस में सुगंध आने लगती है. यह खाने में स्वादिष्ठ और मीठा होता है.
वैशाली जिले में उत्पादित अल्पान प्रजाति के केले की आपूर्ति देशप्रदेश के विभिन्न भागों में बड़े पैमाने पर की जाती है. यहां से केला नेपाल तक जाता है.
बिहार के कई हिस्सों में इस प्रजाति के केले की खेती होती है. इस प्रजाति के केले उत्तर प्रदेश के बलिया, गोरखपुर, वाराणसी, झारखंड, के देवघर, रांची, हजारीबाग, कोडरमा सहित बिहार के पटना, बिहारशरीफ, जहानाबाद, गया, छपरा, मुंगेर, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, दरभंगा, मधुबनी, मोतिहारी जिले के कारोबारी यहां से केला ले जाते हैं.
पनामा बिल्ट रोग लगने के कारण भी केले के उत्पादन पर काफी असर पड़ रहा है. इस रोग के प्रबंधन की तकनीक डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के पास उपलब्ध है. केवल जरूरत इस बात की है कि इस रोग के प्रति केला उत्पादक किसानों को जागरूक किया जाए.