भूमि समतलीकरण फसल, मिट्टी एवं जल के उचित प्रबंधन की पहली जरूरत है. अगर भूमि के समतलीकरण पर ध्यान दिया जाए, तो उन्नत कृषि तकनीकें और ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती हैं. इसलिए किसान अपने खेतों को समतल करने के लिए उपलब्ध साधनों का पर्याप्त रूप से उपयोग
करते हैं.
इतना ही नहीं, भूमि के समतलीकरण की पारंपरिक विधियां बहुत ही कठिन और अधिक समय लेने वाली हैं. धान की खेती करने वाले किसान अपने खेतों में पानी भर कर समतल करते हैं. लगभग 20-25 फीसदी पानी का नुकसान खेतों के असमतल होने के चलते ही होता है.
असमतल होने की वजह से धान के खेतों में इस वजह से भी ज्यादा नुकसान होता है. असमतलीकरण से सिंचाई जल के नुकसान के अलावा जुताई और अन्य फसल उत्पादन प्रक्रियाओं में देरी होती है.
असमतल खेतों में फसल एकसमान नहीं होती है. उन का फसल घनत्व अलगअलग होता है. फसल एक समय में नहीं पकती है. इन सभी वजहों से फसल की उपज पर काफी बुरा असर पड़ता है और उन की क्वीलिटी भी गिर जाती है. साथ ही साथ किसानों को अपनी फसल के दाम भी बहुत कम मिलते हैं.
भूमि समतलीकरण के काम समतल भूमि में फसल प्रबंधन का काम कम हो जाता है. साथ ही, पानी की बचत होती है. फसल के उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है. भूमि समतलीकरण के निम्न फायदे हैं :
अधिक फसल उत्पादन
भूमि समतलीकरण से 20 फीसदी तक उपज में बढ़ोतरी संभव है. भूमि जितनी अधिक समतल होगी, उतनी ही उत्पादन में अधिक वृद्धि होगी.
खरपतवार पर नियंत्रण
समतल भूमि में खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से किया जा सकता है. धान के खेतों में अधिक भूमि क्षेत्रों में पानी भरा होने से खरपतवार 40 फीसदी तक कम हो जाते हैं. साथ ही साथ निराई में कम मजदूर लगते हैं और लागत भी कम हो जाती है.
उत्पादन में वृद्धि
अच्छी तरह समतल भूमि में पानी का समान वितरण होता है, जिस से पोषक तत्त्वों का नुकसान नहीं होता है. जड़ सड़न और तना सड़न जैसे रोग कम लगते हैं और लगभग 10 से
15 फीसदी तक उत्पादन बढ़ जाता है.
समय और पैसों की बचत
समतल भूमि में सिंचाई करने में कम समय लगता है और क्यारियां और बरहें 50 से 60 फीसदी कम बनाने पड़ते है, जिस से समय व पैसों की बचत होती है
सिंचाई में पानी की बचत
समतल भूमि में 10 से 15 फीसदी पानी की बचत होती है, जिस से जल संरक्षण में मदद मिलती है और मिट्टी की सेहत में सुधार होता है.
भूमि समतलीकरण की विधियां
भूमि समतलीकरण पशुचालित, ट्रैक्टरचालित और बुलडोजर के द्वारा भिन्नभिन्न समतलन (लैवलर) यंत्रों के उपयोग के द्वारा किया जा सकता है. पहले हल व हैरो द्वारा जुताई और फिर पटेला चला कर समतल किया जाता है. समतल किए खेतों में पूरी तरह से पानी भर कर (5 सैंटीमीटर या उस से अधिक) भी किया जाता है.
ट्रैक्टर द्वारा लैवलिंग ब्लेड या डग बकेट यंत्रों का उपयोग कर के भूमि को समतल किया जाता है. इस काम में 4 से 8 घंटे लगते हैं, जो ट्रैक्टर यंत्र व हटाए जाने वाले भूमि के आयतन और भरने वाले स्थान की दूरी पर निर्भर करता है. लेजर पद्धति में ट्रैक्टर द्वारा बकेट या लैवलर ब्लेड का उपयोग कर के भूमि को समतल किया जाता है. इस में भूमि का तल बिलकुल समतल या एकजैसी ढाल देने के लिए लेजर किरण का उपयोग किया जाता है. लेजर पद्धति द्वारा भूमि 50 फीसदी तक अधिक समतल होती है.
लेजर पद्धति द्वारा भूमि समतलीकरण से लाभ
लेजर पद्धति का उपयाग उन्नत देशों जैसे जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि में भूमि समतलीकरण के लिए किया जाता है. हमारे देश में इस पद्धति का उपयोग सीमित तौर पर शुरू हो रहा है. इस का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो, इस के लिए किसानों को इस का महत्त्व समझाना जरूरी है. इस के मुख्य लाभ निम्न हैं :
* अधिक समतल एवं चिकनी भूमि सतह.
* खेतों की सिंचाई में लगने वाले पानी की मात्रा एवं समय में कमी.
* सिंचाई में पानी का समान वितरण.
* भूमि में नमी का समान वितरण.
* अधिक अच्छा अंकुरण व फसल की बढ़वार.
* बीज, खाद, रसायन व डीजल और बिजली की बचत.
* यंत्रों सहित खेतों में चलनाफिरना आसान.
लेजर लैवलर की कार्य प्रणाली
लेजर लैवलर समतलीकरण की एक ऐसी मशीन है, जो ट्रैक्टर की मदद से ऊंचेनीचे खेतों को एक समतल सतह में बराबर करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. इस मशीन के द्वारा किरणों के निर्देशन से चलने वाली स्वचालित धातु का बग ब्लेड होता है, जो हाइड्रोलिक पंप के दबाव से काम करता है और ऊंचे स्थानों से खुद मिट्टी काट कर निचले स्थान पर गिरा देता है, जिस से खेत बराबर हो जाता है.
लेजर संप्रेषण
लेजर संप्रेषण बैटरी से चलने वाला एक किरण निकालने वाला छोटा यंत्र होता है, जिस को खेत के बाहर एक स्थान पर निर्धारित कर रख दिया जाता है, जो चालू करने पर एक सीधी रेखा में चारों तरफ किरणें निकालता है. किरणों के स्तर पर खेत समतल होता है.
लेजर ग्राही
लेजर ग्राही ब्लेड के ऊपर लगाया जाता है, जो लेजर संप्रेषण द्वारा भेजी गई किरणों को प्राप्त कर नियंत्रण बौक्स को सूचना देता है, जिस से नियंत्रण बौक्स काम करता है.
नियंत्रण बौक्स
नियंत्रण बौक्स एक छोटे से डब्बे जैसा यंत्र है जिस से छोटेछोटे बल्ब लगे होते हैं. ट्रैक्टर ड्राइवर के पास इस को लगाया जाता है, जिस से ड्राइवर की नजर उस पर पड़ती रहे. यह पूरी तरह से स्वसंचालित होता है. खेत को जिस सतह पर समतल करना होता है, उस की सूचना नियंत्रण बौक्स में निर्धारित कर दी जाती है. यह हाइड्रोलिक यूनिट को चलाता है.
हाइड्रोलिक यूनिट
हाइड्रोलिक यूनिट ट्रैक्टर के हाइड्रोलिक से जुड़ी रहती है, जो नियंत्रण बौक्स के सूचना देने पर ब्लेड को ऊपरनीचे करने में सहयोग करते हुए संचालित करती है, जिस से मिट्टी काटी या गिराई जाती है और खेत समतल होता है.
लेजर लैवलर का संचालन
इस मशीन को संचालित करने के लिए कम से कम 50-60 हौर्सपावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है. इस मशीन से खेत को समतल करने के लिए सब से पहले उसे किस लैवल पर समतल करना है, इस के लिए इस मशीन के विशेष फोल्डिंग मीटर एवं लेजर संप्रेषक की मदद से खेत में सर्वे कर लैवलिंग सतह का निर्धारण कर लिया जाता है.
यही निर्धारण सतह लेजर लैवलर नियंत्रण बौक्स में निर्धारण कर देते हैं और इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड़ कर खेत में एक तरफ से चलना शुरू कर देते हैं, जो लेजर संप्रेषक द्वारा भेजी जा रही किरण को प्राप्त कर नियंत्रण बौक्स के माध्यम से हाइड्रोलिक यूनिट द्वारा दबाव से चलने वाले ब्लेड के द्वारा मिट्टी काट कर या गिरा कर खेत को समतल कर देता है.