यह महीना खेतीबारी के नजरिए से बहुत खास होता है. इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान खेती, बागबानी, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन आदि से अच्छी पैदावार और लाभ लेने के लिए इन कामों को अक्तूबर महीने में समय से निबटाएं.
अगर आप ने अपने धान की फसल की कटाई कंबाइन से कराई है, तो पराली न जलाएं. इस से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्व व लाभदायक कीट नष्ट हो जाते हैं.
पराली प्रबंधन यानी फसल अवशेष प्रबंधन के लिए स्ट्रा चौपर, सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, स्ट्रा रीपर, रीपर कम बाइंडर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, कटर कम स्प्रैडर जैसे यंत्रों का इस्तेमाल किया जा सकता है.
यह ध्यान रखें कि अक्तूबर महीने में फसल की कटाई के बाद अधिकांश खेत खाली हो चुके होते हैं और किसान रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की बोआई की तैयारी कर रहे होते हैं. ऐसी अवस्था में मिट्टी में संतुलित उर्वरकों की मात्रा के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए खाली खेत से मिट्टी के नमूने ले कर मृदा जांच प्रयोगशाला अवश्य भेज दें. इस से मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, सल्फर, जिंक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की दी जाने वाली मात्रा का पता चल जाता है. खरीफ की फसलों की मड़ाई के उपरांत उचित भंडारण के लिए नई बोरियों का प्रयोग करें.
अक्तूबर महीने में खेतीबारी से जुड़े यंत्रों का उपयोग ज्यादा होता है. ऐसे में प्रतिदिन काम शुरू करने से पहले व बाद में यंत्रों की साफसफाई कर लेनी चाहिए. जरूरत पड़ने पर पानी से भी सफाई करें. काम करने से पहले व बाद में यंत्रों के नटबोल्ट की जांच जरूर करें. नटबोल्ट को तुरंत दुरुस्त कर दें. मशीन के बैयरिंग व दूसरे घूमने वाले भागों में मोबिल औयल व ग्रीस जरूर डालें. समयसमय पर यंत्रों की सर्विस का काम जरूर कराएं.
अक्तूबर महीने में धान की बालियों का रस चूसने वाले गंधीबग कीट का रस चूस लेने के कारण दाने नहीं बनते हैं, जिस से बालियां सफेद दिखाई देने लगती हैं. इस की रोकथाम के लिए ट्राइजोफास या मेथोमिल 1 लिटर मात्रा को 500 लिटर से 600 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से फूल आने के समय छिड़काव करें.
इस माह धान में भूरे फुदके का प्रकोप भी देखा गया है, जिस में पौधे से रस चूस लेने के कारण पौधे सूख कर गिर जाते हैं और फसल झुलस सी जाती है. ऐसे में इस की रोकथाम के लिए खेत से पानी निकाल दें व नीम औयल 2.5 लिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
चूहों के नियंत्रण के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्युमिनियम फास्फेट की गोली का प्रयोग करें.
धान की कटाई करने से एक हफ्ता पहले खेत से पानी निकाल दें. जब पौधे पीले पड़ने लगें व बालियां लगभग पक जाएं, तो समय से फसल की कटाई कर लें.
गेहूं की अगेती फसल लेने वाले किसान अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से बोआई शुरू कर सकते हैं. इस के लिए उपयुक्त किस्में एचयूडब्लू-533, के-8027, के-9351, एचडी-2888, के-8962, के-9465, के-1317 वगैरह हैं.
जौ की अगेती फसल लेने के लिए किसान 15 अक्तूबर के बाद से बोआई शुरू कर सकते हैं. इस के लिए उन्नत छिलके वाली प्रजातियों में ज्योति (के-572/10), आजाद (के-125), हरित (के-560), प्रीति, जाग्रति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जी-1 व 2 और 3, आरडी 2552 शामिल हैं, जबकि छिलकारहित प्रजातियों में गीतांजली (के-1149), नरेंद्र जौ 5 व उपासना व एनडीवी 934 जैसी प्रजातियां शामिल हैं. माल्ट के लिए के-508, ऋतंभरा (के-551), रेखा, डीएल-88, बीसीयू-3, डीडब्ल्यूआर-2 आदि प्रजातियां उपयुक्त पाई गई हैं.
शरदकालीन गन्ने की खेती के लिए अक्तूबर का महीना सही होता है. शरदकालीन गन्ने के बीज के पिछले साल शरद ऋतु में बोए गए गन्ने से बीज प्राप्त करें. शरदकालीन गन्ना बोआई में लाइनें 2 फुट दूर रखें. यदि लाइनों की दूरी 3 फुट रखते हैं, तो बीच में आलू की फसल भी ली जा सकती है.
गन्ने को खेत में बोने से पहले थिरम व कार्बोक्सिन दोनों 37.5 फीसदी डब्ल्यूपी 250 ग्राम मात्रा 100 लिटर पानी में घोल कर उस से 25 क्विंटल गन्ने के टुकड़े उपचारित किए जा सकते हैं.
जिन किसानों ने कपास की खेती की है, वे देशी कपास की चुनाई 8-10 दिन के अंतर पर करते रहें. अक्तूबर में अमेरिकन कपास भी चुनाई के लिए तैयार हो जाती है. चुनी हुई कपास को सूखे गोदामों में रखें.
जो किसान शीतकालीन मक्का की खेती करना चाहते हैं, वे उपयुक्त सिंचाई वाली जगहों पर अक्तूबर महीने के अंत तक बोआई जरूर कर लें. मक्के की संकर प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 18-20 किलोग्राम व अन्य प्रजातियों के लिए 20-25 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.
जो किसान चने की खेती करना चाहते हैं, वे चने की बोआई अक्तूबर महीने के दूसरे पखवारे से शुरू कर दें. चने की बोआई के लिए उन्नत प्रजातियों में पीडीजी-3 व 4, जीपीएफ-2, पीवीजी-1, जीएल-769, सी-235, एच-208, जी-24, हरियाणा चना 1 व 3 गौरव पूसा 256, राधे, के-850, पूसा-208, पूसा- 547, ऊसर क्षेत्र में बोआई के लिए करनाल चना-1 शामिल हैं.
इस के अलावा काबुली चना की एच-144, गोरा हिसारी, हरियाणा काबली-1, वीजी-1073, एल-771, एल-770, पूसा-1003, पूसा 5023, चमत्कार, शुभ्रा किस्मों की बोआई की जा सकती है. इस के लिए एक हेक्टेयर खेत में 70 किलोग्राम से 90 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है.
चने की फसल को उकठा रोग से बचाने के लिए ढाई किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिला कर कल्चर तैयार कर लें. इस तैयार कल्चर को एक हफ्ता पहले खेत में मिला दें. साथ ही, ट्राइकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचार करना चाहिए और फसल को बीमारयों से बचाने के लिए 1.7 ग्राम वाविस्टीन और 1.7 ग्राम थिरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें.
फसल को दीमक से बचाने के लिए ब्युवेरिया बैसियाना की ढाई किलोग्राम मात्रा को 50 किलोग्राम गोबर में मिला कर मिट्टी उपचारित करें. चने के बीजों को ढाई ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से राइजोबियम जैव खाद से उपचारित कर के ही बोआई करें.
जिन किसानों ने अरहर की अगेती फसल ले रखी है, वे फसल को फली छेदक कीट से बचाने के लिए इंडोक्साकार्ब 14.8 ईसी 325 मिलीलिटर 500-600 लिटर पानी में मिला कर 15-20 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करें. अरहर में 70 फीसदी फलियां लगने पर स्पाइनोसेड 5 फीसदी एससी की 750 मिलीलिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़कें. इस से फली छेदक कीट की रोकथाम हो सकेगी.
मसूर की बोआई अक्तूबर के अंत से नवंबर के दूसरे हफ्ते तक बो दें. इस की उन्नत किस्में एल-9-12, सपना, गरिमा, एलएल-699 व 147 है. इस के बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर के ही बोएं.
जो किसान दाल वाली मटर की किस्मों की खेती करना चाहते हैं, वे अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से इस की बोआई शुरू कर दें. इस की उन्नत किस्मों में फील्ड पी-48, पीजी-3, अपर्णा, जयंती, उत्तरा व टाइप-163 रचना, पंत मटर-5, मालवीय मटर-2, मालवीय मटर-15, शिखा व सपना प्रमुख हैं. बीमारियों से बचाव के लिए वाविस्टीन से बीजोपचार करें और मटर राइजोबियम जैव खाद से उपचारित करें.
अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले हफ्ते तक अलसी की बोआई का उचित समय होता है. इस फसल को चिकनी दोमट मिट्टी, अच्छे जल निकास वाली और धान की फसल के बाद उगाया जाता है.
अलसी की गरिमा, श्वेता, शुभ्रा, लक्ष्मी-27, पद्मिनी, शेखर, शारदा, मऊ आजाद, गौरव, शिखा, रश्मि, पार्वती, रुचि, के-2, एलसी-2023 व एलसी-74 किस्मों की बोआई की जा सकती है. इस के 20 किलोग्राम बीज को 50 ग्राम थिरम व कार्बाक्सिन मिश्रण से उपचारित करें.
मूंगफली की खेती करने वाले किसान फलियों की वृद्धि की अवस्था पर सिंचाई करें, इस से फसल खुदाई भी आसान हो जाती है. इस के अलावा इस पर विशेष ध्यान दें कि मानसून खत्म होने के बाद चेपा नाम का कीट मूंगफली के पौधों का रस चूसता है, जिस की रोकथाम के लिए 1 लिटर फिब्रोनिल 25 फीसदी ईसी को 500-600 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें.
अक्तूबर महीने का पहला पखवारा राई की बोआई के लिए सब से उपयुक्त माना जाता है. इस समय बोआई के लिए उन्नत प्रजातियों में वरुणा, नरेंद्र राई-8501, शिवानी, पूसा बोल्ड, कांति, पूसा महक, पूसा अग्रणी उपयुक्त होती हैं. अक्तूबर महीने में बोआई के लिए सरसों की पूसा तारक, पूसा विजय, पूसा सरसों 22, पूसा करिश्मा, पूसा बोल्ड, पूसा सरसों-27 उपयुक्त पाई गई हैं.
प्याज की नर्सरी अक्तूबर के दूसरे हफ्ते से नवंबर के दूसरे हफ्ते के बीच डालें. इस के लिए ऊंचा बैड बनाएं. इस की उन्नत किस्मों में भीमा सुपर, भीमा गहरा लाल, भीमा लाल, भीमा श्वेता, भीमा शुभ्रा, अलो ग्रनों, पूसा रैड, पूसा रतनार, पूसा ह्वाइट पलैट, पूसा ह्वाइट राउंड व पूसा माधवी शामिल हैं.
टमाटर की खेती के लिए अक्तूबर में नर्सरी डालें, जिस से उस के पौधों को नवंबर के दूसरे हफ्ते तक रोपा जा सके. इस की उन्नत किस्मों में नामधारी-4266 पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा-120, मारग्लोब, पंजाब छुआरा, सलैक्शन-120, पंत बहार, अर्का विकास, हिसार अरुणा (सलैक्शन-7), एचएस-101, सीओ-3, सलैक्शन-152, पंजाब केसरी, पंत टी-1, अर्का सौरभ, एस-32, डीटी-10. संकर किस्में कर्नाटक हाईब्रिड, रश्मि, सोनाली, पूसा हाईब्रिड-1, पूसा हाईब्रिड-2, एआरटीएच-1 या 2 या 3, एचओई-606, एनए-601, बीएसएस-20, अविनाश-2, एमटीएच-6 शामिल हैं.
अक्तूबर के महीने में फूलगोभी की पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल-16 व पूसा स्नोबाल के-1 किस्में नर्सरी में बोई जा सकती हैं. इन किस्मों को नर्सरी में डाले जाने के 4 हफ्ते बाद खेत में रोपा जा सकता है.
गांठगोभी की रोपाई पूरे महीने 30×20 सैंटीमीटर के अंतराल पर करें और रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट व 50 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें.
अक्तूबर का महीना पालक व मेथी की बोआई व सितंबर में बोई गई फसल की कटाई के लिए सब से उपयुक्त होता है. पालक पूसा भारती, मेथी-पूसा अर्ली बंचिंग अच्छी होती है. सितंबर में बोई गई फसल को बोआई के 30 दिन बाद काट सकते हैं.
मूलीगाजर अक्तूबर में बोई जा सकती हैं. मूली की ह्वाइट आइसकिल, रैपिड रैड ह्वाइट टिप्ड, स्कारलेट ग्लोब, पूसा हिमानी, गाजर की पूसा रुधिरा (लाल), पूसा वसुधा (संकर), पूसा आसिता (काली) की बोआई करें.
आलू की अगेती किस्मों में कुफरी अशोका, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर की बोआई 10 अक्तूबर तक और मध्य एवं पछेती फसल के लिए कुफरी बादशाह, कुफरी सतलज, कुफरी पुखराज, कुफरी लालिमा की बोआई 15-25 अक्तूबर तक करें.
लहसुन को अक्तूबर महीने में लगाएं. इस की उन्नत किस्में भीमा ओंकार, भीमा पर्पल, यमुना सफेद (जी-1), एग्रीफाउंड ह्वाइट (जी- 41), गोदावरी (सलैक्शन-2), टी- 56-4, एग्रीफाउंड पार्वती (जी- 313) हैं.
मटर की अगेती किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 120-150 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें. सब्जी मटर के लिए बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट और 40 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें.
अक्तूबर महीने में पपीता की रोपाई करें और पहले रोपे गए पपीते को तना गलन रोग से बचाने के लिए मैंकोजेब 65 फीसदी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपीसी की 1.2 किलोग्राम मात्रा को 600 लिटर पानी में घोल कर 2 छिड़काव.
आंवला में शूट गाल मेकर से ग्रस्त टहनियों को काट कर जला दें. केला प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया, 155 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 200 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश का प्रयोग कर खेत में मिला दें.
अक्तूबर महीने में लीची की मकड़ी यानी लीची माइट की रोकथाम के लिए समयसमय पर ग्रसित पत्तियों व टहनियों को काट कर जला देना चाहिए. नई कोंपलों के आने से पहले प्रोपारगाइट 57 फीसदी ईसी की 1 लिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल बना कर 7-10 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव लाभप्रद पाया गया है.
केला में पौधों के नीचे पुआल अथवा गन्ने की पत्ती की 8 सैंटीमीटर मोटी परत बिछा देनी चाहिए. इस से सिंचाई की संख्या में 40 फीसदी की कमी हो जाती है, खरपतवार नहीं उगते और उपज हुआ भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है.
काजू के पौधों को प्रारंभिक अवस्था में अच्छा ढांचा देने की जरूरत होती है. उपयुक्त काटछांट के द्वारा पौधों को अच्छा ढांचा देने के बाद फसल तोड़ाई के बाद सूखे, रोग एवं कीट ग्रसित शाखाओं को कैंची से काटते रहें.
अंगूर में मैंकोजेब 65 फीसदी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपीसी की 1.2 किलोग्राम मात्रा को 600 लिटर पानी में घोल कर एंथ्रेक्नोज की रोकथाम के लिए छिड़कें.
फूलों की खेती के लिए सब से अच्छा महीना अक्तूबर होता है. इस महीने कई तरह के फूलों की खेती की शुरुआत होती है, जो सर्दियों में अच्छी उपज देते हैं.
इस महीने में ग्लेडियोलस की पूसा शुभम, पूसा किरन, पूसा मनमोहक, पूसा विदुषी, पूसा सृजन व पूसा उन्नति किस्मों की बोआई करें. ग्लेडियोलस के लिए बीज दर 1.5 लाख कंद/ हेक्टेयर रखें. ग्लेडियोलस के कंदों को 2 ग्राम बाविस्टीन 1 लिटर पानी की दर से घोल बना कर 10-15 मिनट तक डुबो कर उपचारित करने के बाद 20-30×20 सैंटीमीटर पर 8-10 सैंटीमीटर की गहराई में रोपाई करें. रोपाई से पहले क्यारियों में प्रति वर्गमीटर 5 ग्राम कार्बोफ्यूरान जरूर मिलाएं.
गुलाब के पौधों की कटाईछंटाई कर कटे हुए भागों पर डाईथेन एम 45 का 2 ग्राम प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.
पशुपालन से जुड़े किसान अपने पशुओं को खुरपका व मुंहपका का टीका जरूर लगवाएं. पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाएं. समयसमय पर गर्भ परीक्षण और बांझपन चिकित्सा व जांच कराते रहें. स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के लिए पशुओं, स्वयं, वातावरण और बरतनों की स्वच्छता का खयाल जरूर रखें.
मुरगीपालन से जुड़े लोग मुरगियों व चूजों के लिए पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था करें. संतुलित आहार निर्धारित मात्रा में दें. कृमिनाशक दवा पिलवाएं और बिछावन को नियमित रूप से पलटते रहें.
पशुओं के लिए उत्तम हरे चारे के प्रबंध के लिए अक्तूबर महीने में जिन चारा फसलों की बोआई की जाती है, उस में रिजका घास प्रमुख मानी जाती है. रिजका की उन्नत किस्में लुसर्न-9, एलएल कंपोजिट-7 और लुसर्न-टी है. यह किस्म चारे की अहम दलहनी फसल है, जो जून महीने तक हरा चारा देती है. इसे बरसीम की अपेक्षा सिंचाई की जरूरत कम होती है. इसे अक्तूबर से नवंबर महीने के मध्य तक बोया जा सकता है.
बरसीम की बोआई 15 अक्तूबर से शुरू करें. बरसीम की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर में 25-30 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बोआई के पहले प्रति हेक्टेयर 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन व 80 किलोग्राम फास्फेट का प्रयोग करें.
किसान हरे चारे के लिए जई की बोआई अक्तूबर के पहले पखवारे से ले कर नवंबर महीने तक कर सकते हैं. उन्नत किस्मों में ओएल-9, कैंट व हरियाणा जई है. बीज की बोआई के समय खेत में उपयुक्त नमी रहना जरूरी है.
औषधीय फसल ईसबगोल की खेती करने वाले किसान 17 अक्तूबर से 7 नवंबर के बीच इस की बोआई कर सकते हैं. बोआई के पहले बीज उपचारित करना न भूलें. 3 किलोग्राम बीज को 9 ग्राम थिरम से उपचारित किया जाता है.
नोट- लेख में कीटनाशकों के नाम कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डा. प्रेम शंकर द्वारा सुझाए गए हैं, वहीं कृषि यंत्रों के रखरखाव से जुड़ी जानकारी विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र, सुलतानपुर के वैज्ञानिक कृषि अभियंत्रण इं. वरुण कुमार द्वारा सुझाए गए हैं. बागबानी व सब्जियों की खेती से जुड़ी जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र, चंदौली के उद्यान विशेषज्ञ डा. दिनेश यादव द्वारा सुझाई गई है.