ट्राइकोडर्मा जैविक खेती में उपयोगी एक हरफनमौला मित्र कवक है. यह मिट्टी से उत्पन्न होने वाले रोगों विशेष रूप से विल्ट रोग, उकठा रोग, म्लानि रोग के लिए एक कुशल जैविक नियंत्रक के रूप में काम करता है. इस के साथ ही यह जैव उर्वरक के रूप में भी काम करता है, जिस से उत्कृष्ट पौधे की वृद्धि होती है. यह सभी तरह की फसलों, सब्जियों, फलों और फूलों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

प्रयोग की विधि

बीज उपचार : बीज उपचार के लिए प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को मिश्रित कर छाया में सुखा लें, फिर बोआई करें.

कंद उपचार : 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लिटर पानी में डाल कर घोल बना लें. इस घोल में कंद को 30 मिनट तक डुबा कर रखें, फिर उसे छाया में आधा घंटा रखने के बाद बोआई करें.

नर्सरी उपचार : 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा उत्पाद प्रति लिटर पानी में घोल कर नर्सरी बैड में प्रयोग करें.

पौधा उपचार : प्रति लिटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को घोल कर पौधे के जड़ क्षेत्र को भिगोएं.

पौधों पर छिड़काव : कुछ खास तरह के रोग जैसे पर्ण चित्ती, ?ालसा आदि की रोकथाम के लिए पौधे में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5 ग्राम से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

फलदार वृक्ष : पेड़ के छत्रक की बाहरी सीमा से लगभग एक फुट अंदर की तरफ मिट्टी में 100 ग्राम से 200 ग्राम प्रति पेड़ (उम्र के हिसाब से) ट्राइकोडर्मा को 3 किलोग्राम से 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट में मिला कर पेड़ के चारों तरफ 30 सैंटीमीटर की चौड़ाई में छिड़क दें और उसे कुदाल से मिलाएं.

मिट्टी में नमी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए. अगर नहीं हो, तो ट्राइकोडर्मा डालने के बाद हलकी सिंचाई कर दें.

मृदा शोधन : एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर एक हफ्ते तक छायादार जगह पर रख कर उसे गीले बोरे से ढकें, ताकि इस के बीजाणु अंकुरित हो जाएं.

इस कंपोस्ट को एक एकड़ क्षेत्र में फैला कर मिट्टी में मिला दें, फिर बोआई या रोपाई करें.

हरी खाद के लिए : अच्छी हरी खाद के लिए ढांचा को मिट्टी में पलटने के बाद 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति हेक्टेयर की दर से डाल कर जुताई कर दें.

ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से लाभ

* यह रोगकारक जीवों की वृद्धि को रोकता है या उन्हें मार कर पौधे को रोग मुक्त करता है या पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को बदलने के साथसाथ पौधों में रोग रोधी क्षमता को बढ़ाता है.

* यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की दर बढ़ाता है, इसलिए यह जैव उर्वरक की तरह काम करता है.

* यह पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है, क्योंकि यह फास्फेट और दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को घुलनशील बनाता है.

ट्राइकोडर्मा के प्रयोग में सावधानियां

* ट्राइकोडर्मा कल्चर 6 महीने से ज्यादा पुराना न हो.

* बीज या पौधों के उपचार का काम छायादार और सूखी जगह पर करें.

* ट्राइकोडर्मा के साथसाथ कवकनाशी रसायनों का प्रयोग न करें.

* ट्राइकोडर्मा के प्रयोग के 4 से 5 दिनों के बाद तक रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग न करें.

* ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को सूरज की सीधी किरणें न लगने दें.

* कार्बनिक खाद में मिलाने के बाद उसे लंबी अवधि के लिए न रखें.

नोट : ट्राइकोडर्मा की संगतता-ट्राइकोडर्मा रासायनिक कवकनाशी मेटैलैक्सिल और थीरम द्वारा उपचारित बीज के साथ प्रयोग किया जा सकता है, पर दूसरे किसी भी रासायनिक कवकनाशी के साथ नहीं.

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