परंपरागत रूप से हो रही खेती में हर साल लागत बढ़ती जा रही है, पर फसल के सही दाम न मिलने से मुनाफे में कमी आ रही है. सरकार द्वारा फसल का सही समर्थन मूल्य न मिलने व अनाज व्यापारियों द्वारा किसान की फसल औनेपौने दाम पर खरीदने से किसानों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. ऐसे में खेती करने के तरीकों में बदलाव की ओर किसानों ने ध्यान देना शुरू कर दिया है.
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक किसान राकेश शुक्ला ने परंपरागत खेती को छोड़ कर कुछ अलग करने की जिद ठान ली और अपने खेतों में केले की खेती कर के मुनाफे कमाने के साथ आसपास के दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं.
प्रयोगधर्मी किसान राकेश शुक्ला जानकारी देते हुए बताते हैं कि वे परंपरागत खेती में रबी और खरीफ की फसलों के अलावा गन्ने की खेती भी करते थे, पर एक एकड़ में गन्ने की फसल से जहां 300 क्विंटल की उपज बेचने पर मुश्किल से एक लाख रुपए की आमदनी हो पाती थी, केले की खेती से एक एकड़ में कम से कम 300 क्विंटल केले बेचने पर 3 लाख रुपए की आमदनी होती है.
राकेश शुक्ला वर्तमान में 18 एकड़ जमीन पर केले की फसल लगाए हुए हैं. उन्होंने अपने खेत में बाजार में टिश्यू कल्चर विधि से तैयार केले की नई किस्म जी-9 का प्लांटेशन किया था. उन्होंने प्रति एकड़ 1,500 पौधों के हिसाब से अपने खेतों में 18 एकड़ जमीन पर तकरीबन 25,000 से 28,000 पौधे लगाए हैं, जिन में फल आने शुरू हो गए हैं.
राकेश शुक्ला ने बताया कि वे प्रत्येक 2-3 दिन में केलों की तुड़ाई करते हैं और बिक्री के लिए भेज देते हैं. केले के खेतों से मार्चअप्रैल माह तक उन्हें उत्पादन मिलेगा.
वे कहते हैं कि परंपरागत खेती से कहीं ज्यादा बेहतर केला की खेती है. एक बार पौधा लगाने के बाद गन्ने की तरह अगले सालों में भी इस का उत्पादन लिया जा सकता है.
क्या है लागत और मुनाफे का गणित
केले की खेती में आमतौर पर प्रति एकड़ 20,000 से 22,000 रुपए पौधों की कीमत और प्रति एकड़ ड्रिप सिंचाई सिस्टम की अनुमानित लागत 25,000 रुपए और मजदूरी आदि के खर्चों को मिला कर पौधों के रोपने की अवधि से ले कर उत्पादन तक तकरीबन 10 माह की फसल में प्रति एकड़ की कुल लागत 70,000 से 80,000 रुपए आती है, जबकि एक एकड़ की फसल से कम से कम 300 क्विंटल का उत्पादन मिलता है, जिस से 1,000 रुपए प्रति क्विंटल के बाजार मूल्य के हिसाब से 3 लाख रुपए प्राप्त होते हैं.
लागत खर्च घटाने के बाद भी लगभग 2 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा केले की खेती से किसान को मिल रहा है, जबकि गन्ने की फसल से बमुश्किल एक लाख रुपए की आमदनी होती है.
राकेश शुक्ला बताते हैं कि केले की फसल को ठंड से बचाना सब से अहम काम है. इस के लिए सही तरीका फरवरीमार्च माह में इसे खेतों में लगाना चाहिए.
अंत:वर्ती फसल ले कर बढ़ा सकते हें मुनाफा
नरसिंहपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. आशुतोष शर्मा कहते हैं कि जिले में केले की खेती गन्ने का बेहतर विकल्प साबित हो सकती है, जो किसानों के मुनाफे को भी बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी, बशर्ते इसे पाले जैसी स्थिति से बचाया जा सके.
डा. आशुतोष शर्मा बताते हैं कि केले की खेती को अंत:वर्ती तरीके से टमाटर, शिमला मिर्च या पपीता लगा कर किया जाए, तो किसान की आमदनी और भी बढ़ाई जा सकती है.
वे बताते हैं कि चूंकि केले की खेती में पौधे एक निश्चित अंतराल पर रोपे जाते हैं, इसलिए इस में अंत:वर्ती फसलों का उत्पादन लेने की पर्याप्त संभावना रहती है और एकसाथ 2 फसलों के होने से इस का तापमान कंट्रोल में रहता है. इस में ठंड के मौसम में तुषार यानी पाला पड़ने के प्रकोप की संभावना को भी कम किया जा सकता है.
जिले के दूसरे किसान भी कर रहे हैं खेती
खुरसीपार गांव में केले की सफल खेती कर रहे राकेश शुक्ला के इस नवाचार को देखने के लिए रोजाना आसपास के गांव के किसान आते हैं. खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के लिए वे किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं. उन से प्रेरणा ले कर जिले के बारछी, घूरपुर वगैरह गांव के किसानों ने भी बुरहानपुर, जलगांव से केले के पौधे मंगा कर अपने खेतों में केले की खेती शुरू की है.
खुरसीपार गांव के ही युवा किसान शैलेंद्र कौरव ने अपने खेतों में केले की उन्नत खेती कर के रिकौर्ड उत्पादन कर अपनी आमदनी बढ़ाई है. इस की वजह से उन्हें जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर का 2020 का कृषक फैलो सम्मान भी मिला है.
प्रदेश में सर्वाधिक गन्ना उत्पादन करने वाले जिले में किसानों ने खेती में बढ़ती लागत से राहत पाने के लिए मुनाफे की खेती की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं. करेली ब्लौक के ग्राम मोहद में युवा किसान अविनाश शर्मा ने खेती में मुनाफे का नवाचार किया है.
उन्होंने तकरीबन आधा एकड़ रकबे में केले के 300 पेड़ लगाए हैं. हर 5 फुट की दूरी पर लगे केले के पेड़ों के बीच क्यारियों में प्याज भी लगाई. प्याज से उन्हें तकरीबन 25,000 रुपए का मुनाफा मिला, जिस ने कोरोना काल में उन्हें थोड़ी राहत दी.
इंदौर में एक नैटवर्किंग कंपनी में काम कर रहे अविनाश शुक्ल कहते हैं कि इसी साल फरवरी महीने में बीते माह फरवरी वह जबलपुर से तकरीबन 17 रुपए प्रति नग की दर पर टिश्यू कल्चर केले के 300 पौधे लाए थे. केले की खेती के इस प्रयोग में 8,000 से 10,000 रुपए का खर्चा आया है.
वे कहते हैं कि सीजन में गन्ने के दाम 300 रुपए प्रति क्विंटल तक ही जाते हैं, लेकिन कच्चा केला 10 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है. खास बात यह भी कि केले की फसल में बीमारी भी अधिक नहीं लगती और लागत भी कम है. इन दिनों कोरोना महामारी के समय में वे घर और खेतों में ज्यादा समय दे रहे हैं.
वे कहते हैं कि कोरोना संक्रमण काल में जो हालात हैं, उन में अब बाहर रह कर कोई जौब करना भी मुश्किल होगा. ऐसे में प्रायोगिक खेती से ही वे अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.
अविनाश शुक्ल बताते हैं कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित केले की नई किस्म ग्रांड 9 का रोपण उन्होंने किया है. फसल 10 महीने में पक कर तैयार हो जाएगी.