मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड से सटे इलाकों में पानी की भारी किल्लत रहती है, चाहे वह पीने के पानी का मसला हो या खेत की सिंचाई में पानी की कमी का मसला हो. लेकिन इन्हीं उलट हालात के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो वर्षा की एकएक बूंद को जाया नहीं जाने देते हैं और वर्षा के पानी को मेंड़बंदी से संरक्षित कर उसी पानी से अपने खेतों में फसलों की भरपूर उपज लेते हैं. ऐसे लोग न केवल खुद की माली हालत सुधारने में कामयाब रहे हैं, बल्कि आसपास के दूसरे किसानों के लिए भी प्रेरणा बने हुए हैं.
ऐसे ही किसानों को सम्मानित कर उन का हौसला बढ़ाने के लिए पहली बार मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के पुरातात्विक महत्त्व वाली जगह खजुराहो के होटल ‘कासा द विलियम’ में ‘राज्य स्तरीय फार्म एन फूड अवार्ड 2021’ का आयोजन किया गया. इस के सफल आयोजन की जिम्मेदारी देशभर में पानी बचाने के लिए ‘जल योद्धा’ के नाम से विख्यात जखनी जलग्राम और ‘खेत पर मेंड़ व मेंड पर पेड़’ अभियान के प्रणेता उमाशंकर पांडेय द्वारा निभाई गई.
इस मौके पर अतिथि रामविशाल बाजपेई, ब्लौक प्रमुख, गौरिहार, छतरपुर, मध्य प्रदेश ने कहा, ‘‘मैं दिल्ली प्रैस का आभारी हूं, जिन्होंने जमीन पर काम करने वाले किसानों को सम्मानित किया है. यह एक अच्छी पहल है. किसान देश का अन्नदाता है. वह पूरे समाज को पोषित करता है.’’
अप्रवासी भारतीय खजुराहो विकास फोरम के अध्यक्ष सुधीर शर्मा ने कहा कि किसानों का सम्मान ही देश का सम्मान है. भारत की आत्मा गांवों में बसती है. गांव गणराज्य हैं. किसान समाज का पालन करता है, पोषण करता है.
शिक्षाविद रजनीश सोनी ने कहा कि ऐसे आयोजन से युवा किसानों को प्रोत्साहन मिलता है. पानी और पलायन को केवल किसान ही रोक सकता है.
‘जल योद्धा’ उमाशंकर पांडेय ने पानी बचाने के अपने अनुभवों को साँझा किया. भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय से ‘जल योद्धा’ का अवार्ड हासिल कर चुके उमाशंकर पांडेय ने बताया कि उन्होंने जब होश संभाला, तभी से बुंदेलखंड को पानी के संकट से जूझते हुए पाया. इस वजह से बुंदेलखंड के जिलों से पलायन और अपराध दोनों चरम पर था. बुंदेलखंड में जल संकट इतना बढ़ गया था कि दिल्ली से ट्रेन द्वारा पानी भेजा जाने लगा.
उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड में दर्जनों बड़ी नदियां, नाले, कुएं और तालाब हैं. इस के बावजूद पानी का संकट बना हुआ था.
उन्होंने बुंदेलखंड के जल के इन स्रोतों में फिर से पानी लाने के लिए 27 बरस पहले विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ कर बिना किसी सरकारी या गैरसरकारी अनुदान के समुदाय को आगे आ कर पानी बचाने का निर्णय लिया. इस के लिए उन्हें काफी माथापच्ची करनी पड़ी.
इसी बीच उन्हें पहले के लोगों द्वारा पानी बचाने के लिए अपनाए जाने वाले पारंपरिक विधि से खेत पर मेंड़बंदी के बारे में पता चला. उन्होंने पुरखों की इसी विधि से बुंदेलखंड में फिर से पानी बचाने की पहल शुरू करने का निर्णय लिया. इस की शुरुआत उन्होंने बांदा जिले के अपने पैतृक गांव जखनी से शुरू करने का फैसला लिया.
उन्होंने गांव से पलायन कर चुके लोगों को फिर से वापस बुलाया और उन से अपने खेतों में मेंड़बंदी का आह्वान किया, जिस पर आपसी सहमति के बाद गांव वाले तैयार हुए. फिर सभी खेतों में मेंड़बंदी हुई. इस का नतीजा रहा कि उस साल गांव के सभी तालाब, कुएं, पोखर वगैरह पानी से भरे रहे.
पानी बचाने की इस सफलता की बात जब आसपास के गांव के लोगों को पता चली, तो उन्होंने भी जखनी मौडल को अपनाना शुरू किया. देखते ही देखते यह अभियान पहले पूरे बांदा और उस के बाद बुंदेलखंड के झाँसी , महोबा, चित्रकूट सहित अन्य जिलों में फैल गया. आज इसी का नतीजा है कि बुंदेलखंड के इतिहास में बांदा, चित्रकूट में बासमती जैसे सुगंधित धान की खेती होती है. इस की खरीदारी के लिए पंजाब, हरियाणा से खरीदार यहां आते हैं. सामान्य धान खरीदने के लिए सरकार द्वारा सैकड़ों क्रय केंद्र भी खोले गए हैं. पिछले साल 184 करोड़ रुपए का धान सरकार ने खरीदा था.
उन्होंने बताया कि सरकार के भूगर्भ जल विभाग, नीति आयोग, जलशक्ति मंत्रालय सहित कई विभागों ने बुंदेलखंड में भूमिगत जल स्तर बढ़ने की बात मानी है.
उन्होंने आगे बताया कि उन के जखनी मौडल और ‘खेत पर मेंड़ व मेंड़ पर पेड़’ अभियान की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं. ‘अटल भूजल योजना’ भी जखनी मौडल पर बनी है, जिस के आधार पर उन्होंने देश कर सभी पंचायतों के मुखिया को पत्र भी लिखा.
आज उन के जखनी मौडल को अपना कर देश के कई गांवों में पानी बचाने का सफल प्रयास किया जा चुका है. इस के लिए सरकारी और गैरसरकारी मंचों पर उन्हें अपने अनुभवों को साँझा करने के लिए बुलाया भी जाता है और कई सम्मानों से नवाजा भी गया है.
उन्होंने बताया कि देशभर में 1,150 जल ग्राम जखनी मौडल पर बनाने के लिए चुने गए हैं. जलशक्ति मंत्रालय द्वारा सर्वप्रथम जखनी मौडल को 470 ग्राम पंचायतों में तत्कालीन जिलाधिकारी ने लागू किया. वहीं, कृषि उत्पादन आयुक्त ने उत्तर प्रदेश के 58,000 ग्राम पंचायतों में जखनी मौडल को लागू करने के लिए उपयुक्त माना है.
मनरेगा के तहत मजदूरी का भुगतान सर्वप्रथम जखनी गांव के मजदूरों के बैंक खातों में किया गया था. बगैर सरकार की सहायता के समुदाय के आधार पर परंपरागत तरीके से पानी बचाने वाले इस मंत्र ‘खेत पर मेंड़ व मेंड़ पर पेड़’ को आज राज, समाज और सरकार पूरे देश में स्वीकार कर रही है. एक छोटी सोच समाज के सहयोग से राष्ट्रव्यापी बनी.
किसानों ने साँझा किए अपने अनुभव
खेती में नवाचार करने वाले किसानों ने आपस में अपने अनुभवों को साँझा किया, जिस में सरकारी नौकारी छोड़ कर मध्य प्रदेश में जैविक खेती करने वाले प्रगतिशील जैविक किसान राहुल अवस्थी ने बताया कि उन्होंने एग्रीकल्चर में मास्टर डिगरी लेने के बाद मध्य प्रदेश सरकार में सरकारी नौकरी की, लेकिन नौकरी में मन नहीं लगा. इस वजह से उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
इस के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ कर जैविक खेती करने का फैसला किया. लेकिन इस के लिए पानी की किल्लत एक बड़ी समस्या थी. इसी बीच उन की मुलाकात ‘जल योद्धा’ उमाशंकर पांडेय से हुई.
इस मुलाकात में उन्होंने पारंपरिक विधियों से पानी बचाने की जानकारी दी, जिस में उन की पारंपरिक विधि से ‘खेत पर मेंड़ व मेंड़ पर पेड़’ के जरीए न केवल पानी बचाया, बल्कि उसी पानी से जैविक खेती की शुरुआत की, जिस का नतीजा अच्छा रहा. पहले साल ही उन्हें जैविक खेती से भरपूर उपज मिली.
राहुल अवस्थी ने बताया कि खेती में मिली इस कामयाबी के बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और आज उसी का नतीजा है कि जैविक खेती में मध्य प्रदेश में उन का बड़ा नाम है.
इस के अलावा मध्य प्रदेश के दुर्गम इलाकों में बागबानी, सब्जी, मत्स्यपालन, औषधीय खेती, दलहन, तिलहन जैसी फसलों की खेती करने वाले किसानों ने भी खेती में अपनी कामयाबी के अनुभवों को साँझा किया.
इस मौके पर संगीत विधा के माहिर डा. शिवपूजन अवस्थी ने किसानों को खेतीबारी से जुड़े गीतसंगीत पर जानकारी दी.
उत्तर प्रदेश के किसानों ने काला नमक धान की खेती का साँझा किया अनुभव
दुनियाभर में अपनी खुशबू के लिए विख्यात काला नमक धान की खेती करने वाले उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के किसान राममूर्ति मिश्र, विजेंद्र बहादुर पाल व अमित विक्रम त्रिपाठी ने जैविक विधि से काला नमक धान की खेती से आमदनी बढ़ाने के उपायों की जानकारी दी. इस मौके पर इन्हें भी ‘राज्य स्तरीय फार्म एन फूड अवार्ड’ से नवाजा गया.
इन किसानों का हुआ सम्मान
पानी बचाने और खेती को आमदनी का जरीया बनाने वाले किसानों को अंगवस्त्र, प्रमाणपत्र व मोमेंटो दे कर ‘राज्य स्तरीय फार्म एन फूड अवार्ड 2021’ प्रदान किया गया, जिस में ‘जल योद्धा’ उमाशंकर पांडेय, वीरेंद्र सर्राफ, रजनीश सोनी, रवि शंकर पांडेय, डा. शिवपूजन अवस्थी, नीरज द्विवेदी, गोरेलाल पाल, चेतराम शिवहरे, गणेश सिंह परिहार, राज बहादुर शर्मा, आशाराम यादव, राम यादव, वीर सिंह राजपूत, पप्पू यादव, तारा देवी, सोनी, राजीव शुक्ला, सुधीर शर्मा, लाल बंसल, नरेंद्र कुमार पटेल, वेद प्रकाश पाठक, राजा राम अहिरवार, नोने लाल अनुरागी, संतराम नामदेव, मनीराम आदिवासी, अनिल शुक्ला, प्रगतिशील जैविक किसान राहुल अवस्थी व सुनील पांडे का नाम शामिल रहा.