समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र में एक सफलता के साथ भाकृअनुप-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) के शोधकर्ताओं ने सीर मछली की 2 और प्रजातियों की पहचान की है, जो सब से अधिक मांग और उच्च मूल्य वाली समुद्री मछली है. उन्होंने अरेबियन स्पैरो सीर मछली (स्कोम्बरोमोरस एविरोस्ट्रस) नाम की एक प्रजाति की खोज की, जो विज्ञान के लिए पूरी तरह से नई थी और दूसरी, रसेल स्पौटेड सीर मछली (स्कोम्बरोमोरस लेपड्र्स) को पुनर्जीवित किया, जो पहले स्पौटेड सीर मछली का पर्याय थी.
भाकृअनुप-सीएमएफआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डा. ईएम अब्दुस्समद के नेतृत्व में वर्गीकरण से जुड़े वैज्ञानिकों की एक टीम के निष्कर्षों के अनुसार, चित्तीदार दिखने वाली मछली (स्कोम्बेरोमोरस गुट्टाटस), जिसे कभी एक ही प्रजाति का माना जाता था, 3 अलगअलग प्रजातियों का एक जटिल समूह है. इन में नई खोजी गई द्रष्टा मछली, पुनर्जीवित द्रष्टा मछली और मौजूदा चित्तीदार द्रष्टा मछली शामिल हैं. इस खोज के साथ भारतीय जल में सब से अधिक मांग वाली सीर मछली प्रजातियों की कुल संख्या मौजूदा 4 प्रजातियों से बढ़ कर 6 हो गई है.
अरेबियन स्पैरो सीयर मछली (नई प्रजाति) है और रसेल की चित्तीदार द्रष्टा मछली (पुनर्जीवित प्रजाति) हैं. यह खोज भारतीय तट के किनारे पाई जाने वाली चित्तीदार मछली पर एक व्यापक वर्गीकरण अध्ययन से सामने आई है. अध्ययन में तट के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र की गई इन मछलियों की आकृति विज्ञान और आनुवंशिक संरचना में काफी भिन्नता पर जानकारी दी गई.
नई प्रजाति को इस की विशिष्ट पक्षी चोंच जैसी थूथन के कारण भाकृअनुप-सीएमएफआरआई टीम द्वारा अरेबियन स्पैरो सीर मछली का सामान्य नाम दिया गया था. यह मैंगलोर के उत्तर में अरब सागर तट पर निवास करता है और उपलब्ध वैज्ञानिक जानकारी के आधार पर इस का वितरण अरब की खाड़ी तक फैला हुआ है. अन्य 2 का वितरण नागपट्टिनम के उत्तर में बंगाल की खाड़ी के तट पर था, जिस में अंडमान सागर और चीन सागर शामिल थे.
ये 3 सीर मछली प्रजातियां आकार में छोटी हैं और ज्यादातर निकटवर्ती पानी में पाई जाती हैं. उन का स्वादिष्ठ स्वाद और उच्च बाजार मूल्य उन्हें एक बेशकीमती मछली बनाते हैं.
इस खोज से समुद्री मत्स्यपालन की संभावना बढ़ेगी. साथ ही, मछलीपालकों की आमदनी में भी इजाफा होगा.
डा. अब्दुस्समद ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो समुद्री जैव विविधता के बारे में हमारी समझ को बढ़ाती है और देश के समुद्री मत्स्यपालन क्षेत्र में कई तरीकों से योगदान करने की क्षमता रखती है. उन्होंने आगे कहा कि यह उपलब्धि समुद्री वर्गीकरण और मत्स्यपालन अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर को दर्शाती है, जो भारतीय तट के साथ समृद्ध एवं विविध समुद्री जीवन पर भी जानकारी देती है.