मधुमक्खीपालन से किसानों को दोहरा फायदा होगा. एक तो मधुमक्खीपालन से तैयार होने वाले शहद और मोम की बिक्री से अतिरिक्त आमदनी होगी और दूसरी फसल का उत्पादन भी बेहतर होगा.

मधुमक्खीपालन से शहद, मोम, रौयल जैली में दूसरे कई उत्पाद किसान हासिल कर सकते हैं जो उन की आमदनी बढ़ाने के लिए मददगार साबित होते हैं.

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाक्टर आनंद सिंह का कहना है कि पारंपरिक फसलों में प्राकृतिक मार के चलते कई बार फसल खराब होने से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है.

ऐसे में मधुमक्खीपालन के जरीए किसान अपनी पैदावार और आमदनी को बढ़ा सकते हैं. किसान एपीकल्चर यानी मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ले कर और इसे अपना कर दोहरा फायदा ले सकते हैं.

Honeyदुनिया में मधुमक्खियों के तकरीबन 20,000 प्रकार हैं. इन में से केवल 3 प्रकार की मधुमक्खी ही शहद बना पाती हैं. आमतौर पर मधुमक्खी का जो छत्ता होता है, उस में एक रानी मक्खी होती है. इस रानी मक्खी के अलावा छत्ते में कई हजार श्रमिक मक्खी और कुछ नर मधुमक्खी भी होती हैं. मधुमक्खी श्रमिक मधुमक्खियों की मोम ग्रंथि से निकलने वाले मोम से अपना घर बनाती हैं, जिसे आम भाषा में शहद का छत्ता कहा जाता है.

मधुमक्खीपालन में रखें खास ध्यान

विशेषज्ञों के मुताबिक, मधुमक्खियां अपने कोष्ठक का इस्तेमाल अंडे सेने और भोजन इकट्ठा करने के लिए करती हैं, इसलिए किसानों को मधुमक्खीपालन के समय कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत है.

दरअसल, मधुमक्खी छत्ते के ऊपरी भाग का इस्तेमाल शहद जमा करने के लिए करती हैं. ऐसे में किसानों को यह चाहिए कि छत्ते के अंदर परागण इकट्ठा करने, श्रमिक मधुमक्खी, डंक मारने वाली मधुमक्खियों के अंडे सेने के कोष्ठक बने होने चाहिए. कुछ मधुमक्खियां खुले में अकेले छत्ते बनाती हैं, जबकि कुछ अन्य मधुमक्खियां अंधेरी जगहों पर कई छत्ते बनाती हैं. मधुमक्खीपालन में उपकरणों की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐसे में किसानों को एपीकल्चर के विशेषज्ञ या फिर ऐसे किसान से टे्रनिंग ले कर मधुमक्खीपालन को अपनाना चाहिए जो इस की अच्छी जानकारी रखता हो.

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