राजस्थान के जोधपुर जिले के वाइल्ड लाइफर शरद पुरोहित सांपों के व्यवहार के बारे में बताते हैं, ‘‘ मुझे बचपन से ही सांपों ने अपनी ओर आकर्षित किया. मैं ने हमेशा ही इन्हें असहाय पाया. सांपों के कहीं भी दिखाई दे जाने पर इन्हें मार दिए जाने की परंपरा ने मुझे भीतर तक झंझोर दियाहै. उन की इसी अनदेखी के चलते न जाने कब मेरा स्वाभाविक स्नेह इन्हें जिंदगी देने की वजह बन गया.’’
दुनियाभर में सांपों की 3,400 प्रजातियां हैं. इन में से तकरीबन 2,000 तो भारत में ही पाई जाती हैं. चूंकि मेरे काम का क्षेत्र पश्चिमी राजस्थान है, इसलिए मैं ने यहीं पाई जाने वाली प्रजातियों पर ज्यादा काम किया है. तकरीबन 25 ऐसी प्रजातियां हैं, जो राजस्थान में मिल जाती हैं. इन में से कुछ ही सांप जहरीले और घातक होते हैं.
आम लोगों की जिंदगी और किसानों के लिए सांपों का होना क्यों जरूरी है? जैव संतुलन में चूहे इनसानी जिंदगी में सब से बड़े घाटे का सौदा हैं. वे हमारे सब से बड़े दुश्मन हैं. ये चूहे हर साल खाद्यान्न का एक बड़ा हिस्सा चट कर जाते हैं. सांप इन चूहों के सब से बड़े दुश्मन हैं, इसलिए सांपों का सरंक्षण किया जाना बेहद जरूरी है.
सांपों की प्रजातियों में 3 सांप ऐसे भी हैं, जो हमारे लिए घातक हैं, वह भी मुठभेड़ हो जाने पर या छू लेने भर से, वरना खुद से हमला करना इन की फितरत नहीं.
मेरा अनुभव कहता है कि हमारी असावधानी से ही हमारी जानें जाती हैं. कोबरा, करैत, वाइपर ये कुछ ऐसे सांप हैं, जिन से हमारी जान जोखिम में पड़ सकती है.
कोबरा
यह सांप हमारे घरों के आसपास रहना ज्यादा पसंद करता है. यह बहुत ही समझदार होता है. पहले तो यह हमें सचेत करता है. एकदम हमला नहीं करता. हमारे द्वारा दूरी बनाए रहने तक हम से दूर जाने की कोशिश करता है.
करैत
यह सांप बहुत ही घातक है. अकसर रात को निकलने वाला यह सांप ठंडक से बचने के लिए इनसानी इलाकों के नजदीक चला आता है और नींद में सोए हुए बेकुसूर लोग इस का शिकार बनते हैं. इस के दंश यानी काटने के निशान बहुत सूक्ष्म होते हैं. इस वजह से इस की पहचान बड़ी मुश्किल से हो पाती है.
लोगों में एक गलतफहमी है कि एक पीवणा सांप भी होता है, उस का जिम्मेदार भी यही होता है, लेकिन यह भी बिना छेड़े, हम से दूर भागना पसंद करता है.
वाइपर
इस सांप को शुष्क इलाकों का राजा कहते हैं. यह घातक और विषैला सांप है. यह सांप छोटीछोटी झाड़ियों और मिट्टी में रहना ज्यादा पसंद करता है. करीब जाने पर यह फुंफकारता है. इस की फुंफकार बहुत डरावनी होती है. आम आदमी इसे सुनते ही दूर हट जाता है.
इस की खराबी या अवगुण यह है कि यह बिना छेड़े ही हम पर हमला कर सकता है. इस से दूर रहना ही बचाव है. आम भाषा में इसे ‘भांडी’ यानी ‘पूंछ कटी’ भी कहते हैं.
वाइपर चूहों का बड़ा शिकारी है. जैसलमेर और बाड़मेर जैसे सीमांत इलाकों में इस के डसने की सब से ज्यादा खबरें मिलती हैं.
शहरी इलाकों में है इन का राज
शहरी इलाकों या पुराने शहरी इलाकों में ‘सैंड बोआ’, ‘ग्लोसी बेलिड’, ‘अर्थ बोआ’, ‘वर्मस्नेक’, ‘कोबरा’ जैसे सांप सब से ज्यादा पाए जाते हैं, जो बरसात के दिनों में ज्यादा सक्रिय दिखते हैं.
गांवों और कसबों में बसे खेतों की बात करें, तो ‘सिंड अवल हैडेड’, ‘रैड स्पाटेड’, ‘ब्लैक हैडेड रौयल स्नेक’, ‘एफ्रो एशियन सैंड स्नेक’, ‘कैट स्नेक’, ‘रैट स्नेक’, ‘वुल्फ स्नेक’ जैसे सांप अधिक मिलते हैं.
तो बचाव किस तरह हो
सर्प व्यवहार विशेषज्ञ शरद पुरोहित बताते हैं कि हम क्या करें, जब ये हमारे सामने हों. ऐसे सवाल अकसर ही पूछे जाते हैं. मेरा जवाब होता है, बस अपनी नजरें उन पर जमाए रहें. अगर ये खुली जगह पर हैं तो खुद ही चले जाएंगे और यदि घर में निकल आए हैं तो आप का फर्ज बनता है, कि बिना कोई हलचल किए, बहादुरी दिखाने की कोशिश किए बगैर किसी माहिर सांप विशेषज्ञ की मदद ले कर इन का पुनर्वास सुनिश्चित किया जाए.
इन को भूल कर भी बिना पहचान किए छूने की कोशिश से बचें. लाठी, चिमटा, टोंग वगैरह से प्रहार इन के लिए घातक साबित हो सकता है, ये जितने ताकतवर दिखाई पड़ते हैं, उस से ज्यादा कमजोर इन की हड्डियां और सिर होते हैं. रैस्क्यू के बाद ये जी नहीं पाते, यथासंभव प्रबंधन होना चाहिए, हैंडलिंग बिलकुल भी न करें.
कुछ इलाकों में इन्हें देखते ही मार देने का रिवाज है. मेरा मानना है, चूंकि यह किसानों के परम मित्र हैं, इन्हें सम्मान दिया जाना जरूरी है. ये हमारे जीने की वजह हैं, हमारी जिंदगी में इन की उपयोगिता भी बराबर की है.
सांप को पलकें नहीं दीं, इन्हें सुनाई नहीं देता, इन के हाथपैर, सींग नहीं होते, महज मुंह और रेंगने के लिए पूरा शरीर धरती से चिपकाए रहते हैं. इन की फुंफकार या सर्र की आवाज ही एक हथियार है जो संकट में इन की हिफाजत करती है. अगर यह खुद को फंसा हुआ पाएंगे तो ही आक्रामक होंगे, मुठभेड़ करेंगे. ऐसे सांप जो घातक नहीं हैं, उन्हें खेतों, गोदामों वगैरह में घूमने दें. ये आप को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.
तकरीबन 3,000 से भी ज्यादा सांपों की जिंदगी बचा चुके शरद पुरोहित कहते हैं, ‘‘अकसर देखता हूं कि मेरे पहुंचने से पहले ही इन से कोई छेड़खानी हुई हो तो यह सांप आक्रामक नजर आते हैं. इस के उलट अगर माहौल शांत रहा हो तो ऐसा लगता है मानो सांप बहुत कहने में लगता है और खुद ही रैस्क्यू का हिस्सा बन हमारा सहयोगी हो जाता है.
‘‘मुझे ये सांप बेहद शरीफ, सुंदर और आकर्षक लगने के साथसाथ असहाय लगते हैं. रेस्क्यू करने के शुरुआती दिनों में पहलेपहल मेरा परिवार बहुत घबराता था, पर अब वे सहयोगी हैं. हर साल वन विभाग द्वारा इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है.
‘‘मैं जिज्ञासुओं को इन सांपों की पहचान, रैस्क्यू और बाइट प्रबंधन के तरीकों पर ट्रेनिंग देता हूं. शहर के कई नौजवानों को मैं ने अपने साथ वालंटियर की तरह तैयार कर रखा है. मैं इस काम को वैज्ञानिक तरीके से करने की बारीकियां इन नौजवानों को सिखला रहा हूं.
‘‘कालेज, स्कूल समेत कई विभागों को मैं ने अपनी इस जागरूकता मुहिम में शामिल किया है, पत्रपत्रिकाओं के जरीए भी मेरा प्रयास जारी है.
‘‘खुशी की बात है कि अब मुझे जैसे कुछ जागरूक नौजवानों की बात का असर रंग दिखा रहा है, खासकर जोधपुर में अब कोई इन सांपों को मारता नहीं है.
हर साल जुलाई से अक्तूबर माह तक हम नौजवानों की टीम ‘यूथ अरण्य’ दिनरात मुफ्त सेवा देती रहती है. पर, अफसोस इस बात का है कि प्रशासन इस विषय को कभी आपदा प्रबंधन का हिस्सा नहीं मानता, जबकि यह एक जरूरी काम है कि इनसान और जानवर दोनों बचे रहें, सुरक्षित रहें.
‘‘हमारी जैसी कोशिशें शायद पूरे देश में जारी हैं. सुझाव है कि सरकारी अस्पतालों में भी इस तरह की एक कार्यशाला रखी जाए और इन की पहचान संबंधी समझ को आम लोगों में गहरे उतारा जाए, को समझाया जाए. आपातकाल में इन के संबंधित चित्र डिसप्ले हों, ताकि इन के डसने से पीडि़तों को तुरंत इलाज मिल सके.’’