साल का सब से ठंडा महीना जनवरी का होता है. इस महीने लोहड़ी व मकर संक्रांति जैसे पारंपरिक तीजत्योहार भी होते हैं. जनवरी के महीने में तापमान बहुत ज्यादा गिर जाने की वजह से पाला पड़ने लगता है, जिस का असर फसलों पर भी पड़ता है. पाले के नुकसान से बचने के लिए शाम के समय खेतों के आसपास आग जला कर धुआं करें. इस से तापमान बढ़ जाता है और पाले का असर कम पड़ता है.
* गेहूं इस मौसम की खास फसल है. उस का खास ध्यान रखना होता है. 25 से 30 दिन के अंतर पर गेहूं में सिंचाई करते रहें. इस समय सिंचाई अच्छी पैदावार के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि इस माह गेहूं के पौधों में शिखर जड़े और कल्ले फूटते हैं. जनवरी के आखिरी सप्ताह तक हलकी मिट्टी वाली जमीन में यूरिया भी दे सकते हैं.
* दीमक का प्रकोप बारानी इलाकों में होने की संभावना बनी रहती है. ऐसी स्थिति में क्लोरोपाइरीफास को 2 लिटर पानी में 20 किलोग्राम रेत के साथ मिलाएं और गेहूं की खड़ी फसल में बुरकाव कर के सिंचाई कर दें. जौ में भी दीमक और पाले से बचाव के लिए गेहूं की तरह ही उपाय करें.
* इस माह सरसों की फसल में फलियां बनने लगती हैं, इसलिए खेत में नमी जरूरी है. नमी बनाए रखने के लिए एक सिंचाई जरूर करें. इस से दाने मोटे और ज्यादा लगेंगे. सरसों की फसल में इस समय चेंपा का भी प्रकोप होता है. इस की उचित तरीके से रोकथाम करें.
* चने की फसल में भी इस माह फूल आने की अवस्था होती है, इसलिए समय पर एक सिंचाई देने से अच्छा मोटा दाना बनेगा और पैदावार में बढ़ोतरी होगी. कईर् दफा जस्ते की कमी होने पर फसल में पुरानी पत्तियां पीली और बाद में जली सी हो जाती हैं. जिंक सल्फेट का स्प्रे से उपचार करें. कटवा सूंड़ी उगते पौधों के तनों को या शाखाओं को काट कर नुकसान पहुंचाते हैं. उस की रोकथाम करें. पत्तों, फूलों व फलियों को खा जाने वाली सूंड़ी से रोकथाम के लिए 400 मिलीलिटर इंडोसल्फान 35 ईसी को 100 लिटर पानी में घोल कर छिड़कें और 15 दिन बाद फिर छिड़काव करें. अगर फसल बोने से पहले बीजोपचार किया है, तो बहुत सी बीमारियों की रोकथाम अपनेआप हो जाती है.
* मटर में भी सिंचाई जरूरत के मुताबिक देते रहें. वहीं मसूर की खेती में निराईगुड़ाई करें. मुमकिन हो तो ह्वील हैंड हो से खोद कर खरपतवार निकाल दें. इस से फसल पैदावार में बढ़ोतरी होगी. जरूरत के मुताबिक सिंचाई भी करें.
* चारा फसल बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें. इस से बढ़वार अच्छी होगी और उम्दा किस्म का चारा मिलता रहेगा. जई में कटाई के बाद आधा बोरा यूरिया भी डालें.
* तिलहनी फसल सूरजमुखी की बीजाई जनवरी माह में भी हो सकती है. दिसंबर माह में बोई गई सूरजमुखी की फसल में नाइट्रोजन की दूसरी व अंतिम किस्त डालें व एक बोरा यूरिया बीजाई के महीनेभर बाद दें और पहली सिंचाई भी करें. फसल उगने के 15 से 20 दिन बाद गुड़ाई कर के खरपतवार निकाल दें.
* शरदकालीन गन्ने में एकतिहाई नाइट्रोजन की तीसरी किस्त दें व आखिरी बार यूरिया डाल दें. जस्ते की कमी नजर आए, तो 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट और 2.5 फीसदी यूरिया का घोल छिड़कें. खरपतवार की स्थिति में गुड़ाई व सिंचाई करें. दीमक लगने पर 2.5 लिटर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी 600 लिटर पानी में घोल कर स्प्रे करें.
* नवंबर माह में लगाई टमाटर की नर्सरी जनवरी माह में रोपी जा सकती है. टमाटर के खेत में खरपतवार बिलकुल नहीं होने चाहिए. इन्हें समयसमय पर निकालते रहें. पुरानी फसल में अगर फली छेदक कीट का हमला हो जाए, तो खराब फलों को तुरंत तोड़ कर नष्ट कर दें.
* अगर आम के पास पहले लगाई मिर्च की पौध तैयार है, तो मिर्च की नर्सरी जनवरी माह में रोपी जा सकती है. लाइनों व पौधों में 18 इंच का फासला रखें. फैलने वाली किस्मों में पौधों से पौधों के बीच की दूरी अधिक रखें.
* मटर में हलकी सिंचाई 10-15 दिन बाद करते रहें. इस से फूल, फलियां और कोंपलें भी पाले से बची रहेंगी. कीट नियंत्रण के लिए 0.1 फीसदी मैलाथियान या 0.1 फीसदी इंडोसल्फान का स्पे्र 15 दिन बाद करते रहें. पाउडरी मिल्ड्यू के लिए 0.3 फीसदी यानी 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में घुलनशील सल्फर का स्प्रे 7 दिन के अंतर पर करें.
* मैदानी इलाकों में जनवरी माह के अंत तक फै्रचबीन बोई जा सकती है. झाड़ीनुमा किस्म जैसे पूसा सरवती के 35 किलोग्राम बीज को 2 फुट लाइनों में और 8 इंच पौधों में दूरी पर लगाएं. लंबी ऊंची किस्म हेमलता के 15 किलोग्राम बीज को 3 फुट लाइनों में और 1 फुट पौधे में दूरी पर लगाएं. बेल चढ़ने के लिए लकड़ी या लोहे के खंभे लगाएं. बीजाई से पहले खेत में उचित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करें.
* पालक व मैथी की हर 15-20 दिन बाद कटाई करते रहें. इस तरह पत्तेदार सब्जियों की फसल में कीट नियंत्रण के लिए दवा का प्रयोग कम से कम करें.
* आलू की फसल में जब पत्तियां व तने पीले पड़ने लगें तो समझ लें कि आलू की फसल तैयार हो गई है. उस की खुदाई कर सकते हैं. कुछ दिन बाद मिट्टी खोद कर आलू निकाल लें. यह काम आप मजदूरों द्वारा भी करा सकते हैं. इस के अलावा आलू खुदाई मशीन पौटेटो डिगर से भी आलू की खुदाई कर सकते हैं. इस के बाद आलू की ग्रेडिंग भी कर सकते हैं. आलू के ढेर को पुआल वगैरह से ढक कर रखना चाहिए, वरना हवापानी के संपर्क में आने पर आलू हरा हो जाता है.
* बागों में साफसफाई का खास ध्यान रखें. गुड़ाई, काटछांट, खाद वगैरह देने का काम जनवरी माह में कर सकते हैं. कटाईछंटाई में पुरानी बीमार व सूखी टहनियां निकाल दें और फफूंदनाशक दवा 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड का स्पे्र करें. पौधों के थालों यानी थमलों की भी साफसफाई व मरम्मत करें.
* जनवरी माह में अंगूर, आड़ू, अलुचा, अनार व नाशपाती के पेड़ लगाने के लिए अच्छा समय है. पेड़ लगाने के समय दीमक नियंत्रण जरूर करें.
* फूलगोभी, पत्तागोभी व गांठगोभी इस समय तैयार हो चुकी होती है, अच्छी तरह से कटाईछंटाई कर के मंडी में भेजें व आगे के लिए बीज बनाने के लिए सेहतमंद पौधों का चुनाव करें. इन के आसपास से खरपतवार हटा दें.
* इस समय प्याज रोपाई का भी अच्छा समय है. प्याज रोपने के बाद उस की सिंचाई करें. लहसुन की फसल की भी उचित निराईगुड़ाई व सिंचाई करें.
* जनवरी माह में अधिक ठंड होने के चलते पशुओं की भी देखभाल जरूरी है. उन्हें सूखी जगह पर रखें और ठंड से बचाव करें व नियमित रूप से संतुलित आहार दें. पशुओं को कृमिनाशक दवाएं देना न भूलें. इस मौसम में पशुओं को गुड़ भी खिलाते रहें.
* मुरगियों को ठंड से बचाने के लिए खास ध्यान दें. मुरगीघरों में बिछावन को गीला न होने दें. अधिक ठंड के समय बिजली के बल्बों को जला कर रखें.
* इस के अलावा अगर पशुओं में कोई समस्या दिखे तो पशु विशेषज्ञ डाक्टर से उचित सलाह लें.
* वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए उचित तापमान 28 डिगरी सैंटीग्रेड है, लेकिन इसे पूरे साल बनाए रखा जा सकता है. सर्दियों में जब खेत पर काम कम होता है और पशुशाला का कूड़ाकरकट व गोबर काफी मात्रा में उपलब्ध रहता है, तो केंचुओं की मदद से उच्च गुणवत्ता का वर्मी कंपोस्ट बना सकते हैं. इस से मिट्टी की सेहत सुधरेगी व पैदावार में बढ़ोतरी होगी.