की वर्ड : फार्म एन फूड आर्टिकल, गन्ना नकदी का प्रमुख स्रोत है, क्योंकि दुनियाभर में 80 फीसदी चीनी गन्ने से ही बनती है. गन्ना उत्पादन में दुनियाभर में भारत का दूसरा स्थान है.
यदि पूरे देश में गन्ने की खेती में उत्तर भारत की हिस्सेदारी देखी जाए, तो यह कुल क्षेत्रफल का 55 फीसदी है. उत्तर प्रदेश की बात की जाए, तो वहां 40 से 45 दिनों में गन्ने की खेती होती है. तकरीबन 40,00,000 किसान सीधेतौर पर गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं.
गन्ने के साथ लें अंत:फसल
शरदकालीन में फसली खेती के लिए गेहूं, मटर, आलू, लाही, राई, प्याज, मसूर, धनिया, लहसुन, मूली, गोभी, शलजम, चुकंदर की खेती आज भी की जा सकती है. अब स्थिति ऐसी आ गई है कि नई किस्मों से उपज दक्षिण भारत की तरह और चीनी की रिकवरी महाराष्ट्र की तरह हो रही है.
किसानों को बेहतर ट्रेनिंग देने के साथसाथ बेहतर किस्म के बीज के उपयोग से गन्ने की पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती. इस के लिए कुछ और बातों का भी ध्यान रखना पड़ता है, जैसे उस की बोआई कैसे की जाए, पौधों से पौधों की दूरी कितनी होनी चाहिए, खादपानी, निराईगुड़ाई, खरपतवार नियंत्रण, गन्ने की बधाई वगैरह की जानकारी होना भी बेहद जरूरी है. इस के लिए जिला एवं कृषि विज्ञान केंद्रों के कृषि वैज्ञानिकों की मदद से किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है.
किसानों को ट्रेनिंग देने के साथसाथ उन की देखरेख में कृषि विश्वविद्यालय भी काम कर रहा है.
गन्ने के साथ सहफसल खेती के लिए कम समय में पकने वाली फसलों को चुना जाना चाहिए, जो इलाके की जलवायु, मिट्टी की उपजाऊ कूवत और स्थानीय मौसम भी अनुकूल हो, जिन में बढ़वार प्रतिस्पर्धा न हो और जिस की छाया से गन्न्ना फसल पर उलटा असर न पड़े.
बसंतकालीन गन्ने की खेती के साथ सहफसल खेती करनी है, तो उस के साथ उड़द, मूंग, भिंडी, लोबिया व हरी खाद वाली फसलों को लिया जा सकता है.
नर्सरी में तैयार गन्ने से बढ़ेगी कमाई
गन्ने की एक आंख की गोटी काट लें. गन्ना बीज को शोधित करने के लिए थायो सीनेट मिथाइल अथवा विश टीन की निर्धारित मात्रा के घोल में गन्ने के इन टुकड़ों को बरतनों में डुबो दिया जाता है. आधे घंटे तक डुबोने के बाद इन गन्ने के टुकड़ों को बाहर निकाल लिया जाता है. 18 से 20 वर्गमीटर समतल जमीन पर उर्वरक की बोरियां या प्लास्टिक शीट बिछा कर गोबर की सड़ी खाद एक से डेढ़ सैंटीमीटर मोटी बिछा दें. इस मिट्टी के ऊपर गन्ने के टुकड़ों को सीधी कतार में रख कर कम मात्रा में मिट्टी उन के ऊपर डाल दें.
जरूरत पड़ने पर पानी का छिड़काव कर दें. 20 से 30 दिन में पौधे निकलने शुरू हो जाएंगे. इन पौधों को सीधे खेत में लगाया जा सकेगा. इस से खेत में पौधों की तादाद समान रूप से होगी, जिस से उत्पादन भी अच्छा मिलेगा.
दक्षिण भारत के किसान गन्ने की प्रति हेक्टेयर 80 से 85 टन पैदावार करते हैं, जबकि उत्तर भारत के किसानों की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार महज 70 टन ही होती है. यही नहीं, गन्ने से चीनी की रिकवरी में उत्तर भारत के किसान महाराष्ट्र के किसानों से पिछड़ जाते हैं. महाराष्ट्र में उपज करने की चीनी की रिकवरी जहां 12 से 13 फीसदी है, वहीं उत्तर भारत में काफी कम थी, लेकिन प्रजाति 238 आने के बाद यहां की रिकवरी भी तकरीबन 13 फीसदी के करीब पहुंच गई है. इस प्रजाति ने किसानों के बीच गन्ने की खेती को और अधिक करने की ओर आकर्षित किया है.
लेकिन अब उत्तर भारत के किसानों के हालात में सुधार आने वाला है, क्योंकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने ऐसे उन्नत बीजों का विकास किया है, जो न केवल भरपूर फसल देने में सक्षम है, बल्कि इस से चीनी की रिकवरी भी पहले की तुलना में ज्यादा हो सकेगी.
इन बीजों की उपलब्धता सभी किसानों को मुहैया कराने व खेती की तकनीकी और तरीकों से किसानों को अवगत कराने के लिए कृषि विश्वविद्यालय के टिशू कल्चर लैब के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को ट्रेंड किया जा रहा है.
डाक्टर आरएस सेंगर की अगुआई में उत्तर भारत के लिए विशेष रूप से विकसित कुछ किस्मों में सुधार का काम लगातार चल रहा है. सालों के अनुसंधान के बाद ऐसी किस्में तैयार की गई हैं, जिस से न केवल बेहतर उत्पादन मिल सकेगा, बल्कि इस में चीनी की रिकवरी भी काफी अच्छी हो सकेगी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रजाति 238 से अधिक पैदावार लेने के लिए सब से पहले नर्सरी तैयार की जा रही है.
गन्ने की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें
* जहां पानी रुकता हो, वहां पानी के निकलने का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए.
* खाली जगहोंमें पहले से अंकुरित गन्ने के पेड़ों से गैस फिलिंग करनी चाहिए.
* अंत:फसल काटने के बाद जल्दी ही गन्ने में सिंचाई व नाइट्रोजन की टौप ड्रैसिंग कर के गुड़ाई कर देनी चाहिए.
* अंत:फसल के लिए अलग से संस्तुत की गई मात्रा के मुताबिक उर्वरकों को दिया जाना चाहिए.