हिसार : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश द्वारा विकसित इंडोब्लाइटकास्ट पैन इंडिया मौडल से पिछेती झुलसा बीमारी का पूर्वानुमान लगाया गया है.
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कांबोज ने कहा कि वैज्ञानिक फसलों में आने वाली समस्याओं के बारे में समय से पहले किसानों को लगातार सलाह दे रहे हैं. इसी कड़ी में आलू से संबंधित किसानों को सलाह दी जा रही है कि भविष्य में हिसार जिले में आलू की फसल में पिछेती झुलसा बीमारी आने की संभावना है.
करें फफूदीनाशक का छिड़काव
जिन किसानों ने आलू की फसल में अभी तक फफूंदनाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है या जिन की आलू की फसल में पिछेती झुलसा बीमारी प्रकट नहीं हुई है, वे किसान भी मैन्कोजेब इंडोफील एन-45 या मैनजेब दवा 600 से 800 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से फसल में छिड़काव करें. साथ ही, 10 दिन के अंतराल पर किसान आलू की फसल से जल निकासी का उचित प्रबंध करें और खेतों को खरपतवार रहित रखें.
कृषि महाविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर एसके तेहलान ने कहा कि पिछेती झुलसा बीमारी फाइटोपथोरा इन्फेसटाइंस फफूंद के कारण होता है, जिस का प्रभाव पौधों के सभी भागों जैसे पत्तियों, तने व कंदों पर दिखाई पड़ता है. पिछेती झुलसा बीमारी का प्रांरभिक लक्षण आलू के पौधों की पत्तियों पर धब्बों के रूप में दिखाई देता है जो बाद में गहरे भूरे तथा बैगनी रंग में बदल जाता है.
उन्होंने आगे कहा कि किसानों को आलू की फसल को पिछेती झुलसा बीमारी से बचाने के लिए समयसमय पर फफूंदनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए. साथ ही, फसल की निगरानी हर 10 दिन के अंदर करते रहना चाहिए.
वैज्ञानिक डाक्टर राकेश चुघ ने किसानों को आलू की फसल में पिछेती झुलसा बीमारी के लक्षण और रोकथाम की विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए बताया कि आलू के पौधों की पत्तियों पर यदि धब्बे दिखाई देते हैं तो उस के चारों तरफ हलके पीले रंग का घेरा भी बन जाता है. साथ ही, मौसम में बदलाव होने पर तापमान में अधिक नमी का होना और बादल छाए रहते हैं तो धब्बे बड़े होने लग जाते हैं, जिस से पत्तियों की निचली सतह पर फफूंद की परत जमने लगती है, इसलिए आलू किसान समय रहते फसल सुरक्षा का ध्यान रखें.