हमारे देश में तिलहनी फसलों का उत्पादन उतना नहीं है, जितना होना चाहिए. तिलहनी फसलें ही ऐसी फसल हुआ करती हैं, जिन में लागत कम व शुद्ध लाभ दोगुनातिगुना मिलने की संभावना रहती है. ऐसे में सूरजमुखी एक बड़ी ही महत्त्वपूर्ण फसल है. इस में 40 से 45 फीसदी शुद्ध तेल निकलता है. इस की खली में प्रोटीन बहुत अधिक मात्रा में होता है, जो मुरगियों और पशुओं को आहार दे कर उन के स्वास्थ्य को उत्तम बनाता है.

इस का तेल हृदय रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है.  सूरजमुखी के तेल की भी मांग बहुत है. सूरजमुखी का उत्पादन यदि समूहों में किया जाए, तो उत्पादन मूल्य बहुत बढि़या मिलने की संभावना रहती है.

भूमि

सूरजमुखी की खेती के लिए गहरी दोमट भूमि अच्छी मानी गई है. बीज के जमाव के लिए उचित नमी होना आवश्यक है. सिंचाई का उचित प्रबंध होना चाहिए और जल निकास की अच्छी एवं उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए.

बोने का समय व बीज दर

वैसे तो इस फसल को खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में आसानी से बोया जा सकता है और अच्छा उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है, परंतु जायद में ज्यादातर खेत खाली छोड़े जाते हैं, तो उस समय यह फसल और भी लाभकारी साबित होगी.

यह फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. जायद में मार्च का प्रथम पखवारा बोआई के लिए अच्छा होता है. प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है. बोने से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 से 3 ग्राम थीरम अथवा कार्बंडाजिम से शोधित कर लेना चाहिए. इसे 60-20 सैंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए. बीज को 3 से 4 सैंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए, जिस से पौधों में आपस की दूरी 20 सैंटीमीटर हो जाए.

उन्नत किस्में

मौडर्न ड्वार्फ के केबीएसएस-1 सनराइज सेलैक्शन, संजीव-95, आईसीआई-36, एसएच-3332 इत्यादि.

उर्वरक

60 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 150 से 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए.

सिंचाई

अच्छी पैदावार के लिए 6 से 8 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. पहली सिंचाई बोआई के 15 से 20 दिन बाद करनी चाहिए. बाकी सिंचाइयां 10 से 12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. दाना बनते समय हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण और मिट्टी चढ़ाना

बोआई के 15 से 20 दिन बाद और पहली सिंचाई से पूर्व खेत में से खरपतवार को निकाल देना चाहिए. जब पौधों की ऊंचाई घुटनों के बराबर हो जाए, तब लाइनों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. एक बार में 10 से 15 सैंटीमीटर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. खरपतवारों को पेंडीमेथलिन 30 फीसदी 3.30 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से बीज जमाव से पहले और बोआई के 2-3 दिन बाद 800 से 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है.

परसेंचन क्रिया

अच्छी पैदावार व अच्छी गुणवत्ता के लिए अच्छी तरह से फूल आ जाने पर हाथ में दस्ताने पहन कर फल के मुंडक पर चारों ओर धीरे से पहले किनारे वाले भाग में उस के बाद बीच के भाग में प्रात:काल घुमाना चाहिए.

बीज उत्पादन 

(मुक्त परागित)

खेत का चयन : बीज उत्पादन के लिए उगाई जाने वाली फसल में खेत का चयन काफी महत्त्व रखता है, इसलिए सुरजमुखी के बीज उत्पादन के लिए ऐसे खेत का चुनाव करना चाहिए, जिस में पिछले मौसम में इस की फसल न ली गई हो. खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. इस की खेती के लिए मृदा गहरी, उपजाऊ और उदासीन पीएच वाली होनी चाहिए. वैसे, चिकनी मिट्टी में भी उत्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है.

पृथक्करण-1 : यह अंशत: स्व एवं संकर परागित फसल है. संकर परागण की मात्रा कीट सक्रियता के अनुसार 18-60 तक भिन्नभिन्न हो सकती है. इस के बीज खेतों को चारों ओर से 400 मीटर, आधार बीज के लिए और 200 मीटर की दूरी प्रमाणित बीज फसल के लिए होनी चाहिए.

सस्य क्रियाएं : खेत की तैयारी के समय इस के उत्पादन के लिए मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए. इस के लिए एक गहरी जुताई हल से कर के 2-3 जुताई हैरो से करनी चाहिए.

सूरजमुखी के बीज का छिलका मोटा होता है और पानी को धीरेधीरे सोखता है, इसलिए खासकर सर्दियों व गरमियों की बोआई के लिए बोने से पूर्व सिंचाई की विशेष आवश्यकता होती है.

बीज एवं बोआई : आधार बीज उत्पादन के लिए प्रजनक अथवा आधार बीज और प्रमाणित बीज के लिए आधार बीज प्रयोग करना चाहिए. बीज किसी मान्य स्रोत से ही लेना चाहिए.

सूरजमुखी को किसी ऋतु विशेष में नहीं उगाया जाता है. उस के लिए सिर्फ हिमांक तापमान ही हानिकारक होता है, इसलिए इस समय को छोड़ कर किसी भी समय भूमि की तैयारी के अनुसार इस की बोआई की जा सकती है.

उदाहरण के लिए, देश के पूर्वी भागों में आर्मवार्ट्स जाति की बोआई जल्दी पकने वाली गेहूं के बाद फरवरी मार्च में की जाती है. रबी के लिए नवंबर और वसंत ऋतु के लिए जनवरी के बाद के सप्ताहों तक व खरीफ में मानसून के बाद यदि सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं, तो पौधे लगाने का समय उपयुक्त है.

बीज दर : एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 10 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. बीज को बोआई से पहले मेंकोजेब से या फिर केप्टान की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.

पौधों में दूरी : खेत में पौधे लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि 2 पंक्तियों के बीच की दूरी 60-80 सैंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 20-25 सैंटीमीटर रहनी चाहिए. बीज 2-4 सैंटीमीटर से ज्यादा गहराई पर नहीं डालना चाहिए.

उर्वरक : अच्छी पैदावार लेने के लिए सूरजमुखी की फसल को 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है. पोटाश और फास्फोरस देने से पहले मिट्टी की जांच करवा कर आवश्यकतानुसार मात्रा देनी चाहिए.

सामान्यत: सूरजमुखी की फसल को 40 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के समय ही खेत में बिखेर कर या हैरो के पीछे मिट्टी में मिला देना चाहिए. नाइट्रोजन की 50 किलोग्राम मात्रा बोआई के समय और शेष मात्रा को 40-45 दिनों के पश्चात जब पौधों के तनों के पास मिट्टी चढ़ाते समय देनी चाहिए.

सिंचाई : सूरजमुखी की फसल अन्य तिलहनी फसलों की अपेक्षा कम सिंचाई में ही अधिक उपज देती है. वसंत से ग्रीष्म ऋतु तक की बोआई के लिए बोने से पूर्व सिंचाई करना आवश्यक है. रबी की फसल के लिए भी सिंचाई आवश्यक है. इस से जमाव एक सा होता है और फसल एक सी होती है.

खरीफ की फसल में आवश्यकतानुसार ही सिंचाई करनी चाहिए. इस फसल में फूल आने की अवस्था और फली बनने के समय सिंचाई बहुत जरूरी होती है.

खरपतवार एवं निराईगुड़ाई : बोआई के पहले 6 सप्ताहों में फसल नाजुक होती है, इसलिए समयसमय पर खरपतवारों को निकालते रहना चाहिए. इस के बाद इन का प्रभाव फसल पर बहुत जल्दी हो जाता है. बड़े पौधे जमीन से उखड़ कर गिर जाते हैं, क्योंकि उन का सिर भारी होता है, इसलिए 10-15 सैंटीमीटर मिट्टी जड़ों पर चढ़ानी आवश्यक होती है.

फसल सुरक्षा

बीमारियां : वर्षा ऋतु में आल्टरनेरिया अंगमारी से भारी क्षति होती है. काले भूरे रंग एवं काले रंग के धब्बे किसी भी पौधे में देखे जा सकते हैं. उन के उपचार के लिए मेंकोजेब व जिनेब के 0.25 घोल का छिड़काव 1-2 सप्ताह के अंतर पर करते रहना चाहिए.

अन्य बीमारियों का फसल पर इतना प्रभाव नहीं पड़ता है. मार्च की बोआई में स्केलेरोटिनिया म्लानी जड़ों में व चारकोल विगलन का प्रकोप हो जाता है, इसलिए रोगग्रसित पौधों को उखाड़ कर जला देना चाहिए.

मुंडक सड़न रोग : कवकों के संक्रमण से मुंडक में सड़न पैदा हो जाती है. रोग ज्यादा फैलने पर मुंडक सड़ कर काले रंग में परिवर्तित हो जाता है और दाना बनना रुक जाता है. इसे मेंकोजेब 2.5 किलोग्राम या कार्बंडाजिम 2.0 किलोग्राम की मात्रा 800-1,000 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

दीमक/गुजिया कीट : दीमक सफेद मटमैले रंग का होता है. गुजिया भूरे मटमैले रंग का कीट होता है. यह नए पौधों की सतह के नीचे से नुकसान पहुंचाता है.

इसे क्लोरोपायरीफास 20 ईसी 3.75 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव कर के नियंत्रित किया जा सकता है.

कटाई : जब मुंडक का निचला भाग पीले भूरे रंग में बदल जाए, तब कटाई करनी चाहिए. सभी मुंडक एकसाथ तैयार नहीं होते, इसलिए इन की कटाई 2-3 चरणों में की जाती है. कटाई के बाद मुंडक को पूर्ण रूप से सुखा कर डंडे से पीट कर दानों को अलग कर लिया जाता हैं.

कीट : सामान्यत: इस फसल में विशेष कीटों का प्रभाव नहीं देखा जाता, परंतु कृंतक कृमि व जैसिड कभीकभी नुकसान करते हैं. इसलिए कृंतक कृमि के नियंत्रण के लिए 15 किलोग्राम हेप्टाक्लोर प्रति हेक्टेयर व जैसिड के लिए 1-2 स्प्रे 0.025 फीसदी औक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ईसी का छिड़काव करना चाहिए.

चिडि़या द्वारा नुकसान : सूरजमुखी की फसल पकती है, उस समय कोई दूसरी फसल तैयार नहीं होती है, इसलिए चिडि़या द्वारा इसे काफी नुकसान होता है. चिडि़या को उड़ाने के लिए बच्चों या महिलाओं की सहायता लेनी चाहिए.

अवांछित पौधों को निकालना : रोगिंग (अवांछित पौधों को निकालना) 2 बार की जाती है :

* फूल आने से पहले.

* पकने के समय पर.

लंबे पौधे निकालना : जो पौधे अन्य पौधों से अधिक लंबे होते हैं, उन्हें निकाल देना चाहिए, क्योंकि ये बाध्य निषेचन या एक ही जाति के विभिन्न ऊंचाई के पौधों के निषेचन से पैदा होते हैं.

* शीघ्र व देर से पकने वाले पौधों को भी निकाल देना चाहिए, क्योंकि ये बीज की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.

* रोगग्रस्त पौधों की भी छंटाई कर देनी चाहिए.

जंगली जाति के पौधे : इन पौधों को निकालना आवश्यक होता है, अन्यथा बीज की गुणवत्ता खत्म हो जाती है. साथ ही, रोगग्रस्त पौधों की भी छंटाई कर देनी चाहिए.

उपज : औसतन उपज 15 से 20 क्विंटल दाना प्रति हेक्टेयर मिलने की संभावना रहती है.

कटाई एवं मंड़ाई : जब सूरजमुखी का फूल पक जाता है, तो उस का छिलका भूरे रंग का हो जाता है. सिरों को तोड़ कर धूप में सुखा लेना चाहिए और छड़ी से पीट कर दाने निकाल देने चाहिए.

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