हमारे देश के कुल गन्ना क्षेत्रफल का तकरीबन 60 फीसदी हिस्सा उत्तर भारत के राज्यों में है, जबकि कुल गन्ना उत्पादन का महज 50 फीसदी हिस्सा ही इन राज्यों से मिलता है. इस की मुख्य वजह राष्ट्रीय गन्ना उत्पादकता स्तर 70 टन प्रति हेक्टेयर की अपेक्षा उत्तर भारतीय राज्यों में गन्ना उत्पादकता 55-60 टन प्रति हेक्टेयर से भी कम होना है, इसलिए यह जरूरी है कि इन राज्यों के लिए संस्तुत उन्नत गन्ना किस्में और उन्नत उत्पादन तकनीक अपना कर पेड़ी गन्ने की उत्पादकता को बढ़ाया जाए.
गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने में खेत की तैयारी, बीज की गुणवत्ता व इस की मात्रा और बोआई विधि का खास असर पड़ता है. अगर इन में से किसी एक पर भी उचित ध्यान न दिया जाए, तो उपज प्रभावित हो सकती है.
गन्ने की उपज में कमी के विभिन्न कारणों में गन्ने की उन्नत तकनीक के प्रति किसानों में जानकारी की कमी, बढ़ती हुई उत्पादन लागत, लाभांश में कमी और कमजोर बाजार है, जो किसानों के सामने मुख्य मुद्दे बन गए हैं.
बढ़ती हुई गन्ने व चीनी मांग की आपूर्ति के लिए प्रति इकाई उत्पादकता बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प होगा, क्योंकि अब गन्ने के तहत क्षेत्रफल बढ़ाने की संभावना नहीं है. पिछले सालों के आंकड़ों से साफ है कि गन्ना उत्पादन और उत्पादकता में उतारचढ़ाव रहा है.
गन्ना उत्पादन बढ़ाने की उन्नत कृषि तकनीकों को अपना कर गन्ना किसान अपने खेतों में उत्पादन बढ़ाने के साथ गन्ना खेती से अधिक लाभ कमा सकते हैं.
गन्ने की संस्तुत किस्में
उत्तर भारतीय राज्यों में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार और मध्य प्रदेश प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य हैं. इन राज्यों के लिए गन्ने की संस्तुत किस्में इस प्रकार हैं :
जल्दी पकने वाली किस्में : को.शा. 687, को.शा. 8436, को.शा. 88230, को.शा. 90265, को.शा. 95255. कोलख 94184, बी.ओ. 102 सी.ओ.एच. 92201, को.जे. 83, को. पंत 84211, को. 87263, को. 98014, को. 0238, को. 0118, को. 0124, को. 0239, को.शा. 96268, कोलख 9709.
मध्य व देर से पकने वाली किस्में : को.शा. 8432, को.शा. 92263, को.से. 92423, को.शा. 93278, को.शा. 91230, को.शा. 88216, को.शा. 96275, को.शा. 94257, बी.ओ. 110, बी.ओ. 91, बी.ओ. 128, कोजे 82, कोजे 84, को. 6304, को. 62175, को. पंत 90223, को.शा. 94270, कोह 119, को. पंत 97222, को.शा. 07250, को.से. 01434, यू.पी. 39, को. पंत 84212, यू.पी. 0097, को.शा. 97261, को.से. 96436.
खेत की तैयारी
जहां गन्ना बोया जाना है, उस खेत की पहली गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. उस के बाद 3-4 जुताई हैरो या कल्टीवेटर से करें. हर जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं, जिस से मिट्टी नम व भुरभुरी हो जाए.
भूमि में पर्याप्त नमी के लिए बोने से पहले सिंचाई करें, विशेष रूप से जब समतल विधि से बोते हैं. खेत की तैयारी के दौरान शुरू में केवल नालियां खोदनी चाहिए. अन्य सभी काम जैसे बीज की बोआई, गन्ना काटना, उर्वरक एवं कीटनाशकों का छिड़काव, कूंड़ों में मिट्टी भराई आदि. कटर प्लांटर से बोआई करें. ऐसा करने से मिट्टी में नमी का नुकसान कम होने के साथ ही समय की भी बचत होती है.
उन्नत बीज का चयन
फसल की उपज बढ़ाने में स्वस्थ बीजों की बोआई का खासा महत्त्व है. उन्नतशील किस्म होते हुए भी यदि बीज की क्वालिटी का ध्यान नहीं रखा गया, तो उस किस्म की उपज क्षमता होने के बावजूद भी अच्छी उपज नहीं मिल सकती है.
बीज बोने के लिए जहां तक हो सके, गन्ने के ऊपरी एकतिहाई से दोतिहाई भाग को ही चुनना चाहिए, क्योंकि इस का जमाव जल्दी व अधिक होता है. गन्ने की उन्नतशील किस्म के बीज को स्वस्थ बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि उन के बोने से पहले बीज की छंटाई तक विशेष ध्यान रखना चाहिए.
बोने के लिए गन्ने के बीजों की आयु 10-12 माह ही होनी चाहिए. पेड़ी या गिरे हुए गन्ने को बोने के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए. गन्ना कटाई के तुरंत बाद ही बो देना चाहिए. यदि हो सके, तो गन्ने को 10-12 घंटे तक पानी में भिगोने के बाद ही बोएं.
बीज व मिट्टी उपचार
गन्ने को बीजजनित रोगों से बचाने के लिए उष्मोपचारित बीज की बोआई करनी चाहिए. इस के लिए संस्थान द्वारा विकसित आर्द्र उष्ण वायु यंत्र में गन्ने को 54 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर ढाई घंटे तक उपचारित करते हैं. इस से बीजजनित रोगों जैसे लाल सड़न, उकठा, कंडुवा, पेड़ी कुठन व घासीय प्ररोह के प्रकोप की संभावना बहुत कम हो जाती है.
इस यंत्र की सुविधाएं सभी चीनी मिलों में उपलब्ध हैं. इस के बाद गन्ने की 3 आंख वाले टुकड़े को बावस्टीन की 200 ग्राम मात्रा को 100 लिटर पानी में घोल कर 15-20 मिनट तक उपचारित करना चाहिए. ऐसा करने से जमाव जल्दी व अधिक होता है और भूमि में गन्ने के टुकड़े सड़ने से बच जाते हैं.
बोआई का उचित समय व बीज की मात्रा
गन्ने के अच्छे जमाव के लिए बोते समय 20 से 30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान होना चाहिए. यह तापमान उत्तर प्रदेश व उत्तर भारत के अन्य राज्यों में 15 फरवरी से मार्च माह तक और
15 सितंबर से अक्तूबर माह तक रहता है, जिस में गन्ने की बोआई करने पर अधिकतम जमाव प्राप्त होता है. गन्ने की मोटाई के अनुसार 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.
गन्ने की बोआई विधि
समतल विधि : समतल विधि में बोने से पहले खेत की पहली गहरी जुताई करते हैं और 3-4 जुताई कल्टीवेटर से कर के खेत की अच्छी तैयारी के बाद देशी हल अथवा रिजर द्वारा कूंड़ बना लेना चाहिए.
इस विधि में शरदकालीन गन्ने में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 90 सैंटीमीटर, वसंतकालीन में 75 सैंटीमीटर और कूंड़ों की गहराई 7 से 10 सैंटीमीटर रखते हैं.
नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा कूंड़ों में मिला देते हैं. इस के बाद बोआई के लिए गन्ने की 3 आंख वाले टुकड़ों को फफूंदीनाशक जैसे बावस्टीन की 200 ग्राम मात्रा को 100 लिटर पानी में घोल कर 15-20 मिनट तक उसे डुबाने के बाद बोते हैं. कटे हुए 3 आंख वाले गन्ने के टुकड़ों को कूंड़ों में सिरे से सिरा या आंख से आंख मिला कर इस प्रकार बोते हैं कि प्रति मीटर कूंड़ लंबाई में 4-5 टुकड़े आ जाएं.
बोने के बाद कूंड़ों में बोए गए टुकड़ों के ऊपर क्लोरोपाइरीफास की 5 लिटर मात्रा का 1500-1600 लिटर पानी में घोल बना कर हजारे द्वारा प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें और इस के बाद कूंड़ों को देशी हल या कुदाली से ढक कर पाटा लगा देना चाहिए.
इस विधि द्वारा बोआई करने से मिट्टी और बोए गन्ने के कटे टुकड़ों से नमी का नुकसान तेजी से होता है, इसलिए उचित सिंचाई की व्यवस्था वाले एरिया में इस विधि को अपनाएं.
नाली विधि : समतल विधि में कम सिंचाई मिलने से गन्ने का अंकुरण तकरीबन 30 फीसदी तक ही होता है. सिंचाई की कमी की अवस्था में नाली विधि काफी उपयोगी होती है. नाली विधि में बोआई के बाद गन्ने का जमाव अपेक्षाकृत अधिक होता है.
नाली विधि द्वारा गन्ने की बोआई करने के लिए 20 सैंटीमीटर गहरी और 40 सैंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाई जाती हैं. एक नाली और दूसरी समानांतर नाली के केंद्र से केंद्र की दूरी 90 सैंटीमीटर रखते हैं. नालियों में गोबर कंपोस्ट या प्रेसमड खाद डाल कर अच्छी तरह मिला देते हैं. गन्ने के 3 आंख वाले टुकड़ों की बोआई नालियों में करते हैं, उस के बाद 4-5 सैंटीमीटर मिट्टी डाल कर ढक देते हैं. बोआई के तुरंत बाद एक हलकी सिंचाई नालियों में करते हैं और ओट आने पर एक अंधी गुड़ाई कर देते हैं. इस से जमाव काफी अच्छा होता है.
गन्ना जमाव के बाद फसल की बढ़वार के हिसाब से नालियों में मिट्टी डालते जाते हैं. ऐसा करने से नाली के स्थान पर मेंड़ और मेंड़ के स्थान पर नाली बन जाती है, जो बारिश में जल निकास के काम आती है.
इस विधि द्वारा गन्ने की अच्छी उपज के साथसाथ पेड़ी की भरपूर उपज भी मिल जाती है. इस विधि में 70-75 फीसदी तक जमाव संभव है.
पौली बैग विधि : उन्नतशील किस्म के बीज की कमी की स्थिति में पौली बैग विधि भी बहुत कारगर है. इस विधि से प्रति हेक्टेयर 20 क्विंटल बीज की जरूरत होती है. गेहूं कटाई के बाद गन्ना बोआई करने वाले क्षेत्रों के लिए पौली बैग विधि से गन्ना बोआई कर के अधिक पैदावार ली जा सकती है, क्योंकि गेहूं कटाई के एक माह पूर्व ही उस की नर्सरी तैयार कर मुख्य खेत में बो दिया जाता है.
पौली बैग में नर्सरी तैयार करने के लिए सब से पहले मिट्टी का मिश्रण तैयार किया जाता है. मिट्टी, बालू और गोबर की खाद या कंपोस्ट की बराबरबराबर मात्रा ले कर अच्छी तरह मिलाते हैं. इस के बाद क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 10 मिलीलिटर मात्रा से एक क्विंटल मिट्टी के मिश्रण को उपचारित करते हैं.
इस उपचारित मिट्टी के मिश्रण को 5 इंच लंबी व 5 इंच चौड़ी साइज की पौलीथिन बैग में भरते हैं. पौलीथिन बैग में चारों ओर और नीचे से कुछ छेद कर देते हैं, जिस से सिंचाई के बाद अतिरिक्त पानी निकल जाए और गन्ने के टुकड़े सड़ने से बच जाएंगे.
नर्सरी तैयार करने के लिए गन्ने के ऊपरी दोतिहाई भाग को ले कर इस में से एक आंख वाले टुकड़े काट लिए जाते हैं. इन के कटे हुए टुकड़ों को 50 लिटर पानी में 100 ग्राम बावस्टीन मिला कर 15-20 मिनट तक डुबो कर रखा जाता है. इस के बाद पौलीथिन बैग में उपचारित मिट्टी भर देते हैं और टुकड़ों को पौलीथिन बैग में लंबवत अवस्था में इस प्रकार रखते हैं कि आंख ऊपर की ओर रहे और एक हलकी सिंचाई कर देते हैं.
पौली बैग नर्सरी में 5-6 दिन के अंतराल पर पानी का छिड़काव करते हैं. 3-4 सप्ताह में अच्छा जमाव हो जाता है और 3-4 पत्तियां निकल आती हैं, जिन की लंबाई तकरीबन 6 इंच होती है.
रोपाई से पूर्व पौधों की ऊपरी पत्तियों को 2-3 सैंटीमीटर काट देना चाहिए. ऐसा करने से पौधों द्वारा पानी कम लगता है. तैयार खेत में जिन पौधों को बोना है, 90 सैंटीमीटर की दूरी पर रिजर द्वारा कूंड़ बना लेते हैं. इन कूंड़ों में 45 सैंटीमीटर की दूरी पर पौधों की बोआई करें.
इस प्रकार एक बार में तकरीबन 25,000-28,000 पौधे लगते हैं. बोने के बाद तुरंत सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के बाद 8-10 दिन बाद खेत का निरीक्षण करें. यदि किसी स्थान पर पौधे सूख गए हों अथवा मर गए हों, उस स्थान पर फिर से नए पौधों की रोपाई कर देनी चाहिए.
रिंग पिट विधि : इस विधि द्वारा गन्ना बोने से पहले तैयार खेत में मेंड़ के किनारे लंबाई व चौड़ाई में 60 सैंटीमीटर जगह छोड़ कर बाकी पूरे खेत में 105 सैंटीमीटर की दूरी पर लंबाई और चौड़ाई में रस्सी की सहायता से लाइन बनाते हैं और कटान बिंदुओं पर 75 सैंटीमीटर व्यास वाले गड्ढे बना लेते हैं. गड्ढे की गहराई तकरीबन 30 सैंटीमीटर रखते हैं.
इस विधि से एक हेक्टेयर खेत में तकरीबन 9,000 गड्ढे बन जाते हैं. प्रत्येक गड्ढे में 3 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद के साथ 20 ग्राम डीएपी, 8 ग्राम यूरिया, 16 ग्राम पोटाश और 2 ग्राम जिंक सल्फेट मिट्टी के साथ अच्छी तरह मिला देते हैं.
खाद और उर्वरक मिलाने के बाद हर गड्ढे में 2 आंख वाले 20 टुकड़ों को साइकिल के पहिए में लगी तीलियों की तरह बिछा देते हैं, फिर इन टुकड़ों पर क्लोरोपाइरीफास 20 फीसदी का 5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1,500-1,600 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़क देते हैं और इन टुकड़ों को भुरभुरी मिट्टी से 5-6 सैंटीमीटर तक ढक देते हैं और बोने के तुरंत बाद एक हलकी सिंचाई कर देते हैं.
उचित ओट आने पर इन गड्ढों की हलकी गुड़ाई करनी चाहिए, जिस से कड़ी परत टूट कर मुलायम हो जाए. उस के बाद जब गन्ने में 4 पत्तियों की अवस्था आ जाए, तो गड्ढे की भराई धीरेधीरे कर दें.
मिट्टी की पहली भराई करते समय गड्ढे में 16 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढा डाल दें. जून के अंतिम सप्ताह या वर्षा पूर्व फ्यूरोडान 3 जी की 4 ग्राम और यूरिया 16 ग्राम प्रति गड्ढे में डाल कर बची हुई मिट्टी गड्ढे में भर कर एकसार कर दें. इस विधि को अपना कर किसान प्रति हेक्टेयर 150 टन प्रति हेक्टेयर गन्ना उपज प्राप्त कर सकते हैं.
कटर प्लांटर द्वारा गन्ने की बोआई : कटर प्लांटर से बोआई करने पर एक दिन में तकरीबन 1.5-2.0 हेक्टेयर खेत की बोआई हो जाती है. इस यंत्र द्वारा गन्ना बोआई की सभी क्रियाएं जैसे कूंड़ खुलना, उर्वरक का पड़ना, गन्ने के टुकड़े कट कर गिरना, कीटनाशी दवाओं का पड़ना, कूंड़ों का ढकना और पाटा होना एकसाथ हो जाता है.
इस यंत्र से 35-40 फीसदी तक बोआई लागत में कमी आ जाती है. बोआई से संबंधित सभी क्रियाएं एकसाथ होने के कारण जमाव में तकरीबन 8-10 फीसदी की वृद्धि पाई गई है.
उर्वरक प्रबंधन
100 टन की पैदावार के लिए गन्ने की फसल 208 किलोग्राम नाइट्रोजन, 63 किलोग्राम फास्फोरस, 280 किलोग्राम पोटैशियम, 34 किलोग्राम लोहा, 12 किलोग्राम मैगनीज, 0.6 किलोग्राम जस्ता एवं 0.2 किलोग्राम तांबा आदि तत्त्व मिट्टी से लेती है. इस प्रकार मिट्टी जांच के अनुसार ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
आमतौर पर गन्ने की भरपूर उपज लेने के लिए 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर संस्तुत किया गया है. फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा बोते समय कूंड़ों में और बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा को बराबरबराबर 2 बार में टौप ड्रैसिंग द्वारा बोने के 90 दिनों के अंदर डाल देना चाहिए.
यदि समेकित पोषक तत्त्व प्रबंधन किया जाए, तो गन्ने की उपज में बढ़ोतरी के साथसाथ जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है. अत: संस्तुत उर्वरक की मात्रा को आधी कार्बनिक व आधी अकार्बनिक तत्त्वों से दी जाए, तो फसल वृद्धि के साथसाथ जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है.
जल निकास का उचित प्रबंधन
उत्तर भारत में गन्ने की फसल से भरपूर उपज लेने के लिए 5 सिंचाई बारिश होने से पहले और 2 सिंचाई बारिश के बाद करने की जरूरत रहती है. पानी की उपलब्धता के अनुसार यदि 4 सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है, तो पहली, दूसरी, तीसरी और चौथी सिंचाई क्रमश: जमाव पूरा होने पर पहली, दूसरी व तीसरी कल्ले निकलने की अवस्थाओं पर करनी चाहिए. यदि 3 सिंचाइयों के लिए पानी उपलब्ध है, तो सिंचाई पहले, दूसरे और तीसरे कल्ले निकलते समय करनी चाहिए. यदि 2 सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध है, तो ये सिंचाई दूसरे और तीसरे कल्ले निकलते समय करनी चाहिए.
एकांतर नाली विधि द्वारा सिंचाई : इस विधि में पूरे खेत की सिंचाई करने के बजाय एक पंक्ति छोड़ कर पानी लगाया जाता है. इस के लिए हर दूसरी पंक्ति के खाली स्थान में 25 सैंटीमीटर चौड़ी और 15 सैंटीमीटर गहरी नाली बना ली जाती है, जिस में सिंचाई के लिए पानी भर दिया जाता है.
एकांतर नाली विधि द्वारा सिंचाई करने से सामान्य उपज तो मिलती ही है, साथ ही साथ सिंचाई में भी 36 फीसदी तक पानी की बचत हो जाती है. इस बचे हुए पानी को दूसरी फसलों की सिंचाई कर के उपज में बढ़ोतरी और अधिक लाभ लिया जा सकता है.
फसल सुरक्षा
फसल को भूमिजनित कीटों से बचाने के लिए बोआई के समय बने कूंड़ों में बोए गए गन्ने के टुकड़ों पर 5 लिटर क्लोरोपाइरीफास (1 लिटर सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर) को 1,500-1,600 लिटर पानी में घोल कर फव्वारे द्वारा डालना चाहिए, वहीं चोटी बेधक कीट की रोकथाम के लिए जून के अंतिम सप्ताह में फ्यूराडान की 33 किलोग्राम (1 किलोग्राम सक्रिय तत्त्व प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग गन्ने की जड़ों के पास करना चाहिए.
मिट्टी चढ़ाना व बंधाई करना
गन्ने की फसल को गिरने से बचाने के लिए जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में गन्ने की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाएं. अगस्त माह में पहली बंधाई पंक्तियों में खड़े प्रत्येक थान की अलगअलग करें. दूसरी बंधाई सितंबर में 2 आमनेसामने के थानों को आपस में मिला कर करें. ऐसा करने से वर्षा ऋतु में तेज हवा के बावजूद भी गन्ना कम गिरेगा, जिस से उपज में कमी नहीं आएगी.