हमारे देश में पशुपालन बड़े पैमाने पर किया जाता है और आज का समय ऐसा नहीं रह गया कि खेतीकिसानी करने वाले लोग ही पशुपालन करते हों. आज पशुपालन आमदनी का अच्छा जरीया है, जिसे अन्य लोग भी कर रहे हैं.
आज के समय पशुपालन के लिए सरकार द्वारा भी अनेक योजनाएं चलाई जा हैं जो लोगों के लिए मददगार साबित हो रही हैं. जरूरत है केवल उन की जानकारी पशुपालक होनी चाहिए.
इस के अलावा आज तकनीकी का दौर है, इसलिए नईनई जानकारियां मिलती रहती हैं. पशु वैज्ञानिकों तक पहुंचना भी आसान है. अनेक ह्वाट्सएप ग्रुपों पर भी पशुपालन के बारे में जानकारी मिलती रहती है, इसलिए पशुपालन को सही तरीके से किया जाए तो यह बेहतर रोजगार भी बन सकता है. केवल जरूरत है इन छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना :
पशुधन प्रबंधन
पशु बाड़े में सफाई का खास ध्यान रखें. धुलाई के लिए उचित रसायन जैसे कि सोडियम कार्बोनेट (4 फीसदी)/ सोडियम हाइपोक्लोराइट (1 फीसदी) के घोल का प्रयोग करें. पशुओं को स्वच्छ पानी उपलब्ध होना चाहिए तथा पानी को स्वच्छ रखने के लिए नांद की समयसमय पर चूने से पुताई करें.
यदि किसी पशु में संक्रामक रोग के लक्षण दिखाई दें तो उसे अन्य पशुओं से तुरंत अलग कर दें तथा तुरंत पशु डाक्टर से सलाह लें.
पशुओं पर गरमी का तनाव कम करने के लिए शैड में पंखे/फोगर आदि की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि पशु स्वस्थ रहें और उत्पादन भी बना रहे.
पशुपोषण प्रबंधन
पशुपालक घर में उपलब्ध आहार अवयवों को मिला कर संतुलित रातिब मिश्रण बना सकते हैं. इस रातिब मिश्रण में अनाज की मात्रा बढ़ा कर 40 फीसदी तक कर दें तथा इस में 2 फीसदी खनिज मिश्रण और 1 फीसदी नमक जरूर मिलाएं.
अगर रातिब में खनिज मिश्रण नहीं मिलाया है तो हर एक पशु को कम से कम 50 ग्राम उत्तम गुणवत्ता का खनिज मिश्रण अथवा पशु चाटन/यूरियाखनिज ईंट (यूएमएमबी) अवश्य दें. नया भूसा रातभर भिगोने के बाद ही पशुओं को खिलाएं.
पशु के ब्याने से 2 महीने पहले उस का दूध सुखा दें व पशु को पौष्टिक हरा चारा व दाना मिश्रण दें. इस अवस्था में जितनी अच्छी देखरेख होगी, उतना ही ब्याने के बाद अच्छा दूध उत्पादन होगा.
प्रजनन प्रबंधन
ग्रीष्मकाल में मद के लक्षणों को पहचानने के लिए सुबह और शाम पशु पर निगरानी रखें. पशु यदि सुबह गरमी में आया है तो उसी दिन शाम को और यदि शाम में आया है तो अगले दिन सुबह कृत्रिम गर्भाधान करवा लें.
जिस पशु में कृत्रिम गर्भाधान होना है उसे बाकी पशुओं से पहले ही अलग बांध लें, ताकि तकनीशियन/पेरावेट कम अवधि में अपना काम पूरा कर सके. तकनीशियन द्वारा पशु को छूने से पहले व उस के बाद साबुन से हाथों की सफाई पर ध्यान दें.
मदहीनता के निवारण हेतु पशु के आहार में खनिज मिश्रण व कौपर, कोबाल्ट और आयरन की ये गोलियां रोज मिलाएं व पेट के कीड़ों की दवा दें.
गाभिन पशुओं में 7वें व 8वें महीने से फूला दिखने की शिकायत से बचने हेतु गर्भावस्था के अंतिम तिमाही में अत्यधिक वसा वाला आहार न दें व कैल्शियम, फास्फोरस और सेलेनियम की पूर्ति खनिज मिश्रणों द्वारा करें.
पशु के योनिद्वार को साफ रखें व जब तक डाक्टर सलाह न दे, बाहर निकले हुए अंगों पर ठंडे पानी का छिड़काव करें. बैठने का स्थान ऐसा चयन करें कि पशु का पिछला हिस्सा उठा हुआ हो.
ब्यांत के 12-24 घंटे के बाद जेर न गिरने की अवस्था में पशु को रिपलेंटा (50 ग्राम, दिन में 2 बार) इन्वोलोन या यूटेरोटोन जैसे सीरप (पहले दिन 200 मिलीलिटर व फिर 100 मिलीलिटर 3 से 5 दिन तक) दें. अगर इन दवाओं से जेर न गिरे तो पशु डाक्टर से सलाह लें.