भारत सरकार की कोशिशों के बाद वर्ष 2023 को दुनियाभर में मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है. श्री अन्न में बाजरा, ज्वार, रागी, कुटकी, कोंदो, सांवा, चेना आदि को शामिल किया गया है. मोटे अनाजों में बाजरा प्रमुख मोटे अनाज की फसल है. इसे पूर्वकाल में गरीबों का भोजन भी कहा जाता था. बाजरे की खेती खरीफ को छोड़ कर जायद में भी की जाने लगी है.

जायद में बाजरे की बोआई मार्चअप्रैल में की जाती है. इस की खेती हरे चारे के लिए भी की जाती है. बाजरे के दाने में 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 67 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा 2.7 प्रतिशत खनिज लवण पाया जाता है.

भूमि का चुनाव

बाजरे की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट भूमि अच्छी रहती है. समतल भूमि वाली व जीवांशयुक्त भूमि में भी बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.

भूमि की तैयारी

आलू, सरसों, मटर आदि की फसल कटाई के बाद पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 20 से 25 सैंटीमीटर गहरी एक जुताई तथा उस के बाद कल्टीवेटर या देशी हल से 2 जुताई कर के पाटा लगा कर खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए.

बाजरा की उन्नतशील प्रजातियां

सीजेड पी 9602

इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 185 से 200 सैंटीमीटर होती है. पत्तों का रंग चमकीला होता है. इस किस्म के पौधे 70 से 75 दिन में पक कर तैयार हो जाते हैं तथा दानों का रंग हलका पीलापन लिए होता है. यह किस्म जोगिया रोग के प्रति सहनशील होती है. इस की पैदावार 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

एचएचबी 672

इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 160 से 180 सैंटीमीटर होती है. इस किस्म के सिट्टे सख्त रोजेदार वह 22 से 25 सैंटीमीटर लंबे तथा परागकण पीले रंग के होते हैं. यह किस्म सूखे के प्रति सहनशील है.

पूसा 605

यह एक संकर किस्म है जो 75 से 80 दिन में पकने वाली होती है तथा कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. पौधों की ऊंचाई 125 से 150 सैंटीमीटर होती है. उपज 9 से 10 क्विंटल हेक्टेयर प्राप्त होती है. सूखा चारा 25 क्विंटल हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है.

पूसा हाईब्रिड 605

यह किस्म 74 से 80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. उपज 22 से 24 क्विंटल हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है.

आईसीटीपी 8203

यह किस्म 80 से 50 दिन में पक कर तैयार होती है. इस से 25 से 30 क्विंटल दाने की उपज प्राप्त होती है.

अन्य किस्में

पूसा 443, पूसा 384, एच एच 216, एच एच 223.

बोआई का समय

जायद में बाजरा की बोआई का उचित समय मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक का ही होता है. बाजरा एक परपरागित फसल है. इस के परागकण 46 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर भी जीवित रह सकते हैं, जो बीज बनाते हैं.

बीज उपचार

चेंपा रोग से फसल को बचाने के लिए बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग 5 मिनट तक डुबो कर रखें. तैरते हुए बीजों को निकाल कर अलग कर दें. शेष डूबे हुए बीजों को निकाल कर छाया में सुखा कर बोने के काम में लें. बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम की दर से शोधित कर ही बोना चाहिए.

बीज दर और बोआई

बाजरे के दाने के लिए 4 से 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. बाजरे की बोआई लाइन में करने से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है. बोआई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सैंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सैंटीमीटर रखते हैं.

उर्वरकों का प्रबंधन

मृदा परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. मृदा परीक्षण की सुविधा

न होने पर संकुल प्रजातियों के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश तथा संकर प्रजातियों के लिए 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए. यदि गोबर की खाद उपलब्ध हो, तो 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से पहले खेत की तैयारी के समय देना चाहिए.

विरलीकरण थिनिंग/गैप फिलिंग

बोआई करने के 15 से 20 दिनों बाद खेत में पर्याप्त नमी होने पर घने पौधों को उखाड़ कर कम पौधे वाले स्थान पर रोपित कर देना चाहिए तथा रोपित पौधों में पानी लगा देना चाहिए.

सिंचाई

जायद के मौसम में बोई गई बाजरे की फसल में 4-5 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. कल्ले निकलते समय व फूल आने पर खेत में अवश्य नमी होना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण व निराईगुड़ाई

बाजरे की बोआई के 3-4 सप्ताह बाद खेत की निराई कर के खरपतवार अवश्य निकाल देना चाहिए. गुड़ाई करते समय ध्यान रखना चाहिए कि पौधे की जड़ें नहीं कटें. यदि निराईगुड़ाई करना संभव न हो तो खरपतवार नियंत्रण हेतु बोआई करने के तुरंत बाद अथवा अंकुरण से पूर्व एट्राजिन की 0.5 किलोग्राम मात्रा को 600 से 700 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर एकसमान रूप से छिड़काव करना चाहिए.

फसल संरक्षण

कातरा कीट बाजरे की फसल को प्रारंभिक अवस्था में काट कर नुकसान पहुंचाता है. इस कीट की रोकथाम के लिए मिथाइलपैराथियान 2 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत 6 किलोग्राम दानेदार प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए.

रूटबग

इस कीट की रोकथाम के लिए 25 किलोग्राम मिथाइलपैरा थियान 2 प्रतिशत चूर्ण को प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए. इस के अतिरिक्त क्यूनालफास की 1.25 लिटर की मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

जोगिया या हरितबाल रोग

जहां तक संभव हो रोग प्रतिरोधक किस्मों को बोना चाहिए. जिस खेत में इस रोग का प्रकोप दिखाई दे, वहां बोआई के 21 दिनों बाद मैनकोजेब 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

अरगट

इस रोग से ग्रसित पौधों के सिट्टे पर शहद जैसा गुलाबी पदार्थ के रूप में दिखाई देता है. कुछ दिनों बाद यह

पदार्थ भूरा एवं चिपचिपा हो जाता है तथा बाद में काले पदार्थ के रूप में बदल जाता है. पौधों पर सिट्टे बनते समय 2.5 किलोग्राम जिनेब या 2 किलोग्राम मैनकोजेब को 200-300 लिटर पानी में घोल कर कम से कम 3 छिड़काव 3-4 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए. जहां तक संभव हो बीज को उपचारित कर ही होना चाहिए.

उन्नत बीज पैदा करना

किसान अपने खेत पर बाजरे की संकुल किस्मों का स्वयं बीज पैदा कर सकते हैं. बीज के लिए फसल को उगाते समय अनेक सावधानियां जैसे बीज के लिए बोई गई बाजरे की फसल के चारों तरफ आधरीय बीज उत्पादन के लिए 400 मीटर तथा प्रमाणित बीज के लिए 200 मीटर तक बाजरे की दूसरी किस्म नहीं होनी चाहिए. जिस खेत में बीज पैदा करना हो उस में पिछले वर्ष बाजरा न उगाया गया हो.

इस के अतिरिक्त समयसमय पर खेत में अन्य किस्मों के पौधों को निकालना, खरपतवार कीड़े एवं बीमारियों का नियंत्रण आवश्यक है. खेत के चारों तरफ कम से कम 10 मीटर फसल छोड़ कर, बीज के लिए सिट्टे या बाली को अलग काट कर अच्छी प्रकार सुखा लेना चाहिए. सिट्टे या बाली की मड़ाई कर दानों की ग्रेडिंग कर लेनी चाहिए.

अच्छे आकार के बीजों को धूप में सुखा कर 10 से 11 प्रतिशत नमी रहने पर कीटनाशक व फफूंदनाशक से उपचारित कर लोहे की टंकियों में भर कर अच्छी प्रकार से बंद कर देना चाहिए. इस बीज की अगले वर्ष बोआई के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है.

कटाई एवं गहाई

बाजरे की विभिन्न किस्में 70 से 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं. खड़ी फसल में हंसिया से सिट्टों या बालियों को काट कर या पहले से फसल को काट कर के खलिहान में लाएं, उस के बाद बालियों को काट लिया जाता है. दानों में नमी की मात्रा 20 प्रतिशत रहने पर ही फसल की कटाई करनी चाहिए. जब खलिहान में सिट्टे या बाली सूख जाए तो थ्रैशर से दानों को अलग कर लेना चाहिए तथा 10 से 11 प्रतिशत नमी पर ही सुखा कर भंडारित करना चाहिए.

उपज

बाजरे की संकुल किस्मों से 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है तथा संकर किस्मों से लगभग 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त हो जाती है.

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