आजकल बढ़ते प्रदूषण को रोकने में वृक्षों की बहुत ही असाधारण भूमिका रहती है, इसलिए विभिन्न स्थानों पर शहरों में वृक्षों के रोपण पर अधिक बल दिया जा रहा है. शहरों में वृक्षों का रोपण मुख्य रूप से सड़कों के किनारे, पार्कों में एवं खाली स्थानों पर किया जा रहा है, जिस से प्रदूषण नियंत्रण में कुछ मदद मिल सके.

किसी भी स्थान विशेष की सुंदरता बढ़ाने के लिए उस स्थान पर सुंदर फूल एवं पत्तियों वाले वृक्षों का लगाना आवश्यक होता है.

पुष्पीय वृक्षों में मुख्य रूप से अमलताश, गुलमोहर, नीली गुलमोहर, पीली गुलमोहर, जकरांडा, गुलाबी केसिया इत्यादि पौधों का रोपण किया जाता है.

वहीं दूसरी ओर पर्णीय पौधों में मुख्यतया अशोक, मौलश्री, पुतरंजिवा, पाकड़ नीम, गद, बालखीरा आदि वृक्ष लगाए जाते हैं. कुछ ऐसे वृक्ष होते हैं, जिन के फूल तो सुंदर होते ही हैं, साथ में पत्तियां भी अच्छी दिखती हैं. इन को भी पार्क आदि में लगाना अच्छा माना जाता है. इन में मुख्य हैं सीता अशोक, प्राइड औफ इंइिया, सिल्वर ओक, बोतल ब्रुस आदि.

उपरोक्त के अलावा वृक्षों को उन के आकार एवं उम्र के आधार पर 3 भागों में बांटा जाता है. बड़े आकार के वृक्ष जैसे बरगद, पाकड़, नीम, अर्जुन इत्यादि. दूसरे प्रकार के वे वृक्ष आते हैं, जिन का आकार मध्य होता है. जैसे पुतरंजिवा, अशोक, बालखीरा, मौलश्री, चीड़, अमलतास आदि. तीसरे प्रकार के वृक्ष वह हैं, जो आकार में छोटे होते हैं. इन में मुख्यतया सीता अशोक, बोतल ब्रुस, कचनार, प्राइड औफ इंडिया आदि आते हैं.

वृक्षों के पौधे तैयार करना

ज्यादातर शोभादार वृक्षों के पौधों का वर्धन बीज द्वारा किया जाता है. सभी पौधों के बीज का आकार अलगअलग होने के साथसाथ उन की ऊपरी सतह भी पतली एवं मोटी होती है. मुख्य रूप से पतले छिलके वाले बीजों को 6-8 घंटे पानी में भिगोने के बाद सीधे ही मिट्टी से भरी थैलियों अथवा क्यारियों में बो दिया जाता है, परंतु कुछ बीजों की ऊपरी सतह अत्यधिक कठोर होती है, उन को बोने से पहले उपचारित किया जाता है.

कम कठोर परत वाले बीजों को हलके गरम पानी में 10-12 घंटे भिगोए रखने के बाद बोआई की जाती है. बोआई का सब से उत्तम समय 15 अप्रैल से 15 मई का होता है. प्लास्टिक घरों में बीजों को वर्ष भर बोया जा सकता है. बोआई से पहले जमीन में उचित नमी का होना आवश्यक है.

बोआई के लगभग 20-25 दिन बाद पौधे अंकुरित हो जाते हैं. इस के पश्चात पौधों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लगाया जाता है. यदि पौधे प्लास्टिक की थैलियों में हैं, तो उन का भी स्थान परिवर्तन करना आवश्यक होता है.

वृक्षों की रोपाई

ज्यादातर शोभाकारी वृक्ष आसानी से रोपित हो सकते हैं, परंतु अच्छी वृद्धि एवं उचित आकार के वृक्ष प्राप्त करने के लिए उन की रोपाई पर पूरा ध्यान देना आवश्यक होता है.

रोपाई के लिए एक घनमीटर के आकार का गड्ढा खोदा जाता है. खोदी गई मिट्टी में 4 से 10 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद या पत्ती की खाद भूमि की उर्वरता के अनुसार मिला कर गड्ढे में भर दिया जाता हैं. इसी के साथसाथ गड्ढे में 50-100 ग्राम कीटनाशी धूल भी मिला दी जाती है.

कीटनाशी में मुख्य रूप से डीडीटी, बीएचसी या थिमेट का प्रयोग किया जाना उचित रहता है. रोपाई करते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जितनी गहराई पर पौधा नर्सरी में लगा था, उतनी ही गहराई पर उस की रोपाई की जाए. रोपाई के समय जड़ों के साथ लगी मिट्टी छूटनी नहीं चाहिए.

रोपाई का उचित समय

रोपाई का उचित समय स्थानस्थान पर निर्भर करता है. पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्रों में वृक्षों की रोपाई फरवरीमार्च माह में करना उत्तम रहता है. अगर सिंचाई के साधन उचित हैं, तो रोपाई अत्यधिक गरमी को छोड़ कर कभी भी की जा सकती है.

उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में वृक्षों की रोपाई का सब से अच्छा समय जून से अगस्त माह है. जहां तक संभव हो, 2-3 वर्ष पुराने पौधों को ही रोपाई के लिए प्रयोग करना चाहिए, नए पौधों के मरने की अधिक संभावना रहती है. पुराने पौधों की रोपाई के बाद वृद्धि भी अधिक तेज होती है.

पहले गमले में लगाए गए पौधों को जमीन में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि गमले में 2-3 वर्ष लगे रहने के कारण उन की जड़ें मुड़ जाती हैं, जिस में जमीन में रोपण के बाद उन की वृद्धि सामान्य नहीं हो पाती है.

रोपण की दूरी वृक्ष के पूर्ण आकार के आधार पर रखी जाती है. बड़े आकार के वृक्षों को 10-12 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है. मध्य आकार के वृक्ष 9-10 मीटर की दूरी पर और छोटे आकार के वृक्षों की रोपण दूरी 6-8 मीटर रखी जाती है.

Bottle Brush
Bottle Brush

बोतल ब्रुस : यह मध्यम ऊंचाई का फूलदार वृक्ष है. पेड़ 5-10 मीटर तक लंबा होता है. इस पर फरवरी से नवंबर माह में फूल आते हैं, परंतु सब से ज्यादा फूल मार्चअप्रैल और अगस्तसितंबर में होते है. यह वृक्ष सभी स्थानों पर लगाए जा सकते है. सड़कों के किनारे, तालाबों के पास और पार्कों में सभी जगह लगाए जा सकते है.

 

 

मौलश्री : पेड़ की अधिकतम ऊंचाई 15 मीटर तक होती है. पेड़ हमेशा हराभरा रहता है, परंतु पेड़ की वृद्धि काफी धीरेधीरे होती है.

फूल गुच्छों में अप्रैल से जुलाई माह तक एवं सितंबर से नवंबर माह तक आते हैं. इस का रोपण लौन या पार्कों में अथवा सड़कों के किनारे भी किया जाता है. इस की चित्तीदार पत्तियों वाली किस्में भी आ रही हैं, परंतु वह बहुत छोटी होती हैं.

अशोक : मुख्य रूप से यह हरी पत्तियों के लिए उगाया जाता है. पेड़ की अधितम ऊंचाई 20 मीटर तक जाती है. साधारण किस्म को सड़कों एवं पार्कों में और पेंडुला किस्म को पार्कों में रास्तों के साथसाथ या भवनों के सामने लगाया जाता है.

सीता अशोक : यह एक मध्य ऊंचाई का फूल एवं पत्तियों की सुंदरता के लिए लगाया जाने वाला वृक्ष है. इस पर स्कारलेट लाल रंग के फूल आते हैं.

Kachnar
Kachnar

 

कचनार : मध्यम आकार का सदा हराभरा रहने वाला वृक्ष है. इस पर नवंबर माह में बैंगनी रंग के फूल आते हैं. इस के अलावा भी कचनार की बहुत सी किस्में हैं, जो शोभाकार वृक्षों के रूप में लगाई जाती हैं.

 

Flower Amaltas
maltas

 

अमलतास : यह पीले रंग के फूलों वाला पेड़ मध्यम ऊंचाई का होता है. पेड़ की अधिकतम ऊंचाई 10 मीटर तक होती है. गहरे पीले रंग के फूल अप्रैल से जून माह तक आते हैं. उपयुक्त स्थान पर अमलतास का वृक्ष 5-10 वर्ष तक अच्छा फलता है.

पिंक अमलतास : इस पर गुलाबी रंग के फूल आते हैं. रंग हलके गुलाबी से गहरे गुलाबी तक पाए जाते हैं. मईजून के माह में पेड़ों पर केवल फूल ही दिखाई देते हैं. उस समय पत्तियां बहुत ही कम होती हैं.

पेड़ मुख्य रूप से सड़कों के किनारे, पार्कों एवं अन्य स्थानों के लिए बहुत ही उपयुक्त माना जाता है.

 

Gulmohar
Gulmohar

 

गुलमोहर : यह लाल रंग के फूल वाला बहुत ही सुंदर वृक्ष है. इस को अमलतास के साथसाथ मिला कर यदि सड़क के किनारे लगाया जाए, तो बहुत ही अच्छा दृश्य प्रकट करता है, क्योंकि अमलतास एवं गुलमोहर का पुष्पीय कार्यकाल लगभग एकसमान ही होता है.

 

नीली गुलमोहर : इसे नीले रंग के फूल वाली गुलमोहर के नाम से भी जाना जाता है. पौधा 8-10 मीटर ऊंचा होता है. फूल मार्च, अप्रैल एवं मई माह में आते हैं, परंतु बहुत ही थोड़े समय के लिए पेड़ पर ठहरते हैं. पौधों की उम्र लगभग 20 वर्ष मानी जाती है.

प्राइड औफ इंडिया : यह पेड़ सुंदर फूल एवं रंगीन पत्तियों दोनों के लिए ही लगाया जाता है. फूल बैगनी रंग के आते हैं. फूल समाप्त होने के बाद सुंदर घुंडियों के गुच्छे बन जाते हैं, जिस से सुंदर सजावट की जाती है. पतझड़ के बाद लाल रंग की नई कोमल पत्तियां आती हैं, जो पौधों की सुंदरता को और भी ज्यादा बढ़ाती हैं.

पैल्टो फोरस : इसे पीली गुलमोहर भी कहते हैं. इस के पौधे बड़े, पत्तियां गहरे हरे रंग की और फूल गहरे पीले रंग के होते हैं. फूल वर्ष में दो बार आते हैं. प्रथम, फरवरी एवं मई माह तक और दोबारा सितंबर से नवंबर माह तक खिलते हैं. इस के फूल काफी सुंदर एवं पेड़ पर काफी रुकते हैं.

अर्जुन : यह 20-25 मीटर ऊंचा बढ़ाने वाला सड़क के किनारे लगाया जाने वाला वृक्ष है. हमेशा हराभरा बना रहता है. हलका पीलापन लिए हुए सफेद रंग के फूल आते हैं, जो कि मार्च से जून माह तक खिलते हैं. उस समय इस पर मधुमक्खियां अधिक आकर्षित होती हैं.

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