गांधीनगर: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के गांधीनगर में नेशनल कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन औफ इंडिया (NCDFI) लिमिटेड के मुख्यालय का शिलान्यास किया एवं ईमार्केट अवार्ड 2023 समारोह को संबोधित किया.
इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष शंकर चौधरी, इफको के अध्यक्ष दिलीप संघाणी, एनडीडीबी के अध्यक्ष डा. मीनेश शाह और एनसीडीएफआई के अध्यक्ष डा. मंगल राय समेत अनेक लोग मौजूद थे.
अपने संबोधन में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि हमारे देश में डेयरी और खासकर कोआपरेटिव डेयरी सैक्टर ने बहुआयामी लक्ष्यों को हासिल किया है. अगर दूध का व्यापार कोआपरेटिव सैक्टर नहीं करता है, तो दूध उत्पादन, एक बिचौलिए और दूध का उपयोग करने वाले तक सीमित रहता है.
लेकिन अगर कोऑपरेटिव सेक्टर कोऑपरेटिव तरीके से दूध का व्यापार करता है तो इसमें कई आयाम एक साथ जुड़ जाते हैं, क्योंकि इसमें उद्देश्य मुनाफे का नहीं है और इसका बहुआयामी फायदा समाज, कृषि, गांव, दूध उत्पादक और आखिरकार देश को होता है.
उन्होंने कहा कि भारत ने पिछले 50 साल में इस सफलता की गाथा की अनुभूति की है.
सहकारिता मंत्री ने कहा कि आज विश्व के दुग्ध उत्पादन में भारत 24% हिस्से के साथ पहले स्थान पर पहुंच चुका है और प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत में पिछले 8 वर्षों में दूध उत्पादन में लगभग 51% वृद्धि हुई है जो विश्व में सबसे तेजी के साथ हुई बढ़ोत्तरी है. यह सिर्फ इसलिए संभव हुआ है क्योंकि इनमें ज्यादातर उत्पादन कोऑपरेटिव डेयरी के माध्यम से हुआ है.
उन्होंने कहा कि अगर कोऑपरेटिव डेयरी चलानी है तो उसे पोषित करने वाली अनेक संस्थाएं बनानी पड़ेगी और एनसीडीएफआई यह काम करेगी.
उन्होने कहा कि NCDFI एक प्रकार से सभी डेयरी को गाइडेंस देने का काम कर रही है. शाह ने कहा कि जिस वासी गांव से श्वेत क्रांति की शुरुआत हुई, वहीं आणंद जिले में लगभग 7000 वर्ग मीटर क्षेत्र में एनसीडीएफआई का मुख्यालय बनने जा रहा है. यह करीब 32 करोड़ रुपए के खर्च से बनेगा और सौर ऊर्जा संयंत्र से संचालित होगा. उन्होंने कहा कि नया मुख्यालय भवन 100 प्रतिशत ग्रीन बिल्डिंग होगा.
कोऑपरेटिव सेक्टर के जरिए पोषण आंदोलन
गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि जब कोऑपरेटिव सेक्टर डेयरी का बिजनेस करता है तब सबसे पहला फायदा दूध उत्पादकों को होता है, क्योंकि उनका शोषण नहीं होता है. उन्होंने कहा कि अगर कोई अकेला दूध का उत्पादन करता है तो उसके पास दूध के स्टोरेज की क्षमता नहीं होती और वह मार्केट को एक्सप्लोर नहीं कर सकता. लेकिन अगर कोऑपरेटिव सेक्टर दूध का बिजनेस करता है तो गांव और जिला स्तर पर दूध संघ बनते हैं और उनके पास कोल्ड स्टोरेज, प्रोसेसिंग, मार्केट की डिमांड के मुताबिक दूध को उस उत्पाद में कन्वर्ट करने की क्षमता होती है. इससे मुनाफे को कोऑपरेटिव आधार पर दूध उत्पादन करने वाली बहनों के पास पहुंचाने की व्यवस्था भी होती है और इस तरह दूध उत्पादन करने वाली बहनों का शोषण समाप्त हो जाता है. उन्होंने कहा कि अकेला दूध का उत्पादन करने वाला व्यक्ति अपने पशुओं के स्वास्थ्य की चिंता नहीं कर सकता है, लेकिन अगर कोऑपरेटिव तरीके से दूध उत्पादन किया जाए तो जिला दूध उत्पादक संघ पशु की नस्ल सुधार, स्वास्थ्य सुधार और पशुओं के अच्छे आहार की भी व्यवस्था करता है.
अन्य लाभ यह है कि अगर कोऑपरेटिव सेक्टर के जरिए दूध का बिजनेस होता है तो यह पोषण आंदोलन से स्वत: जुड़ जाता है.
अमित शाह ने कहा कि वह बनासकांठा की डेयरी सहित कई ऐसी डेरियों के बारे में जानते हैं जो कुपोषित बच्चों को पोषण युक्त दूध देकर उनके स्वास्थ्य की चिंता करती हैं. अहमदाबाद डेयरी जैसी कई डेयरियां गर्भवती महिलाओं को लड्डू देकर उनके और उनके बच्चे के पोषण की चिंता करती हैं और पूरा कोऑपरेटिव सेक्टर कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में जुड़ गया है.
सहकारिता मंत्री ने कहा कि डेयरी और डेयरी टेक्नोलॉजी के बारे में एक जमाने में भारत के लिए कल्पना करना भी मुश्किल था, लेकिन हमने ऐसे प्रयास किए कि पूरे भारत में सिमेट्रिक दूध उत्पादन शुरू हुआ. कई क्षेत्र ऐसे हैं जो कोऑपरेटिव डेयरी से नहीं जुड़े थे, वहां भी एनडीडीबी के माध्यम से गुजरात की सक्षम डेयरियां उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में अपने काम का विस्तार कर रही हैं और कोऑपरेटिव तरीके से अपने काम को बढ़ा रही हैं.
उन्होंने कहा कि अगर देश के हर गांव में सिमेट्रिक तरीके से दूध उत्पादन करना है और हर घर को आत्मनिर्भर बनाना है तो यह काम केवल कोऑपरेटिव डेयरी के जरिए ही संभव है.
डेयरियों ने दूध उत्पादन देश का नाम किया रोशन
अमित शाह ने कहा कि भारत की डेयरियों ने दूध उत्पादन में विश्व में देश का नाम रोशन किया है. उन्होंने कहा कि 1946 में जब गुजरात में एक डेयरी ने शोषण शुरू किया तो इसके खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल ने त्रिभुवन भाई को प्रेरित किया और 1946 में 15 गांवों में छोटी-छोटी डेयरी की शुरुआत हुई. उन्होंने कहा कि 1946 में शोषण के खिलाफ हुई एक छोटी सी शुरुआत विराट आंदोलन में परिवर्तित हुई और इसी से देश में श्वेत क्रांति का विचार आया और एनडीबीबी का उद्भव हुआ.
देश भर में अनेक कोऑपरेटिव डेरियाँ बनी
उन्होंने कहा कि आज देश भर में विकसित होकर अनेक कोऑपरेटिव डेरियाँ बनी है. अमूल प्रतिदिन लगभग 40 मिलियन लीटर दूध की प्रोसेसिंग करता है और 36 लाख बहनें दूध का भंडारण करती हैं और हर सप्ताह उन्हें उत्पादित दूध की कीमत मिल जाती है. श्री शाह ने कहा कि 2021-22 में अमूल फेडरेशन का टर्नओवर 72000 करोड़ रुपए का है.