सर्दी का मौसम शुरू होते ही हर किसी के सामने ठंड एक समस्या बन कर खड़ी हो जाती है. जब सर्दी अपनी चरम सीमा पर होती है, उस समय किसानों को भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सताने लगती है, क्योंकि कड़क सर्दी के कारण फसलों पर पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. इस से रबी फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है.
किसान चाहता है कि वह पाले से किसी भी तरह अपनी आलू, अरहर, चना, सरसों, तोरिया, उद्यान की फसलें गेहूं, जौ वगैरह को बचाने की कोशिश करता है. रबी फसलों को पाले से कैसे बचाएं, काफी गंभीर मुद्दा है.
हमारे देश की आबादी 106 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है. बढ़ती आबादी के लिए उत्पादन बढ़ाना बेहद जरूरी है. साल 2003-04 में देश में खाद्यान्न उत्पादन 21.3 करोड़ टन हुआ था, जिस की तुलना में साल 2004-05 में फसल उत्पादन में कमी आई.
उत्पादन में आई इस कमी की मुख्य वजह है, सूखा और सर्दी में पाला. कृषि की सकल घरेलू उत्पाद में 22 फीसदी की हिस्सेदारी है. दुर्भाग्यवश कृषि में विकास दर 10वीं पंचवर्षीय योजना के पहले 3 सालों में महज 1.5 फीसदी रह गई है, जबकि हमें 4 फीसदी सालाना विकास दर हासिल करने का लक्ष्य बनाना होगा.
उत्पादन बढ़वार के लिए जरूरी है सिंचाई सुविधाओं का विस्तार और बेहतर फसल प्रबंधन में रबी फसलों के लिए पाले से होने वाले नुकसान को रोकने या कम करने के उपाय अपनाना है.
पाला पड़ने के लक्षण
अकसर पाला पड़ने की संभावना 1 जनवरी से 10 जनवरी तक ज्यादा रहती है. जब आसमान साफ हो, हवा न चल रही हो और तापमान कम हो जाए, तब पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. दिन के समय सूरज की गरमी से धरती गरम हो जाती है और जमीन से यह गरमी विकिरण द्वारा वातावरण में स्थानांतरित हो जाती है, इसलिए रात में जमीन का तापमान गिर जाता है, क्योंकि जमीन को गरमी तो मिलती है नहीं, और इस में मौजूद गरमी विकिरण द्वारा नष्ट हो जाती है और तापमान कई बार 0 डिगरी सैल्सियस या इस से भी कम हो जाता है. ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें जम जाती हैं. इस अवस्था को हम पाला कहते हैं.
पाला 2 प्रकार का
- काला पाला : यह उस अवस्था को कहते हैं, जब जमीन के पास हवा का तापमान बिना पानी के जमे 0 डिगरी सैल्सियस से कम हो जाता है. वायुमंडल में नमी इतनी कम हो जाती है कि ओस का बनना रुक जाता है, जो पानी के जमने को रोकता है.
- सफेद पाला : जब वायुमंडल में तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से कम हो जाता है. साथ ही, वायुमंडल में नमी ज्यादा होने की वजह से ओस बर्फ के रूप में बदल जाती है. पाले की यह अवस्था सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. अगर पाला ज्यादा देर तक रहे, तो पौधे मर भी सकते हैं.
पौधों को कैसे नुकसान पहुंचाता है पाला
पाले से प्रभावित पौधों की कोशिकाओं में मौजूद पानी सब से पहले अंतरकोशिकीय स्थान पर जमा हो जाता है. इस तरह कोशिकाओं में निजर्लीकरण की अवस्था बन जाती है, वहीं दूसरी ओर अंतरकोशिकीय स्थान में जमा पानी जम कर ठोस रूप में बदल जाता है, जिस से इस का आयतन बढ़ने से आसपास की कोशिकाओं पर दबाव पड़ता है. यह दबाव ज्यादा होने पर कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं. इस प्रकार कोमल टहनियां पाले से खराब हो जाती हैं.
पाले से पौधों की हिफाजत
जब वायुमंडल का तापमान 4 डिगरी सैल्सियस से कम और 0 डिगरी सैल्सियस तक पहुंच जाता है तो पाला पड़ता है, इसलिए पाले से बचाने के लिए किसी भी तरह से वायुमंडल के तापमान को 0 डिगरी सैल्सियस से ऊपर बनाए रखना जरूरी हो जाता है.
ऐसा करने के लिए कुछ उपाय सुझाए गए हैं, जिन्हें अपना कर किसान ज्यादा फायदा उठा सकेंगे :
खेतों की सिंचाई कर के जब भी पाला पड़ने की संभावना हो या मौसम विभाग द्वारा पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए, जिस से तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है. यह सिंचाई फव्वारा विधि द्वारा की जाती है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि सुबह 4 बजे तक अगर फव्वारे चला कर बंद कर देते हैं, तो सूरज निकलने से पहले फसल पर बूंदों के रूप में मौजूद पानी जम जाता है और फायदे की अपेक्षा नुकसान ज्यादाहो जाता है, इसलिए स्प्रिंकलर को सुबह सूरज निकलने तक लगातार चला कर पाले से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
गंधक के तेजाब का छिड़काव कर के बारानी फसल में जब पाला पड़ने की संभावना हो तो पाले की संभावना वाले दिन फसल पर गंधक के तेजाब का 0.1 फीसदी का छिड़काव करें.
इस तरह तेजाब के स्प्रे से फसल के आसपास के वातावरण में तापमान बढ़ जाता है और तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता है, जिस से पाले से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
पौधे को ढक कर
पाले से सब से ज्यादा नुकसान नर्सरी में होता है. नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की पन्नी से ढकने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2-3 डिगरी सैल्सियस बढ़ जाता है, जिस से सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता और पौधे पाले से बच जाते हैं, लेकिन यह कुछ महंगी तकनीक है.
गांव में पुआल का इस्तेमाल पौधों को ढकने के लिए किया जा सकता है. पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिणपूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे.
पुआल का प्रयोग दिसंबर से फरवरी माह तक करें. मार्च का महीना आते ही इसे हटा दें.
वहीं नर्सरी पर छप्पर डाल कर भी पौधों को फील्ड में ट्रांसप्लांट करने पर पौधों के थावलों के चारों ओर कड़बी या मूंज की टाटी बांध कर भी पाले से बचाया जा सकता है.
वायुरोधक द्वारा
पाले से बचाव के लिए खेत के चारों ओर मेंड़ पर पेड़ या झाड़ियों की बाढ़ लगा दी जाती है, जिस से शीतलहर द्वारा होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
अगर खेत के चारों ओर मेंड़ के पेड़ों की कतार लगाना संभव न हो, तो कम से कम उत्तरपश्चिम दिशा में जरूर पेड़ की कतार लगानी चाहिए, जो अधिकतर इसी दिशा में आने वाली शीतलहर को रोकने का काम करेगी.
पेड़ों की कतार की ऊंचाई जितनी अधिक होगी, शीतलहर से सुरक्षा उसी के अनुपात में बढ़ती जाती है. पेड़ की ऊंचाई के चौगुनी दूरी तक जिधर से शीतलहर आ रही है और पेड़ की ऊंचाई के 25-30 गुना दूरी तक जिधर शीतलहर की हवा जा रही है, फसल सुरक्षित रहती है.
प्लास्टिक की क्लोच का प्रयोग कर
पपीता व आम के छोटे पेड़ को प्लास्टिक से बनी क्लोच से बचाया जा सकता है. इस तरह का प्रयोग हमारे देश में प्रचलित नहीं है, परंतु हम खुद ही प्लास्टिक की क्लोच बना कर इस का प्रयोग पौधों को पाले से बचाने के लिए कर सकते हैं. क्लोच से पौधों को ढकने पर अंदर का तापमान तो बढ़ता ही है, साथ में पौधे की बढ़वार में भी मदद करता है.
इस प्रकार हम फसल, नर्सरी और छोटे फल पेड़ों को पाले से होने वाले नुकसान से बहुत ही आसान और कम खर्चीले तरीकों द्वारा बचा सकते हैं. विदेशों में महंगे पौधों को बचाने के लिए हीटर का प्रयोग भी किया जाता है, लेकिन हमारे देश में अभी यह मुमकिन नहीं है.
हमें भरोसा है कि फसल की बढ़वार व पैदावार बढ़ाने के लिए अगर किसान ऊपर बताए गए इन तरीकों को अपनाते हैं, तो निश्चित ही रबी की फसलों में पाले के चलते होने वाले नुकसान को काफी हद तक बचाने में कामयाब हो सकते हैं.