कुट्टू का आटा शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद है. यह ब्लडशुगर को कंट्रोल करता है और शरीर में फाइबर की कमी को पूरा करता है.
‘राष्ट्रीय सुरक्षा खाद्य सुरक्षा’ मिशन के तहत मोटे अनाजों की पैदावार बढ़ाने के लिए देश के अनेक राज्यों में कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और सरकार की अनेक योजनाओं के तहत जैविक खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.
कुट्टू की खेती : इस की खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, मेघालय, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक होती है.
उत्तरपश्चिमी पहाड़ी इलाकों में बरसात के सीजन जूनजुलाई और बसंत के मौसम में मार्चअप्रैल माह के दौरान इस की बोआई होती है. पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों में इसे अक्तूबरनवंबर माह में बोया जाता है और तमिलनाडु की नीलगिरि पहाड़ी इलाकों में अप्रैलमई माह में, छत्तीसगढ़ में इस की बोआई सितंबर से नवंबर माह तक होती है.
कुट्टू अनाज की श्रेणी में नहीं आता. यह एक फल का तिकोने आकार का बीज है, जिसे पीस कर आटा बनाया जाता है.
खेत की तैयारी : कुट्टू की खेती उचित जल निकासी वाली सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. फसल में जब फूल और दाने बन रहे हों और उस समय मौसम में नमी हो, तो अच्छी फसल तैयार होती है. 2 जुताई करने के बाद भी खेत में कुट्टू की बोआई की जा सकती है. अच्छी उपज के लिए जुताई के समय खेत में गोबर की सड़ी खाद मिला लें.
बीज और बोआई : कुट्टू से अच्छी पैदावार लेने के लिए 30 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की जरूरत होती है.
बीज की बोआई 30 सैंटीमीटर की दूरी पर लाइनों में कृषि यंत्र से करनी चाहिए. हालांकि छिड़कवां तरीके से भी बोआई कर सकते हैं, पर उस में बीज की बरबादी ज्यादा होती है और फसल पैदावार भी मनमाफिक नहीं मिलती.
मिट्टी में नमी का होना बेहद जरूरी है और अगर मौसम ठीक है, तो 4-5 दिन में पौधे अंकुरित हो जाते हैं.
सामान्य मिट्टी में केवल गोबर की सड़ी खाद डाल कर भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है. अगर जमीन की पैदावार क्षमता कम है, तो उस में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत बोआई के समय डालें.
सिंचाई और निराई : फसल में सूखा सहने की भी क्षमता होती है, इसलिए इस में बहुत अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती. फिर भी जरूरत होने पर सिंचाई करें. खरपतवार होने की दशा में खेत की निराईगुड़ाई करें. यह काम आमतौर पर 30 से 40 दिन के बीच करना होता है.
उन्नत किस्म : कुट्टू की खास उन्नत किस्मों में बीएल 7, जो तकरीबन 75 दिन में तैयार होती है. हिमप्रिया किस्म जो तकरीबन 115 दिनों में तैयार होती है. इस के अलावा पीआर बी 1 किस्म, जो 100 दिनों में तैयार होती है.
मौसम बदलाव और पौधों की आगेपीछे बढ़वार के चलते फसल एकसाथ नहीं पकती, इसलिए फसल के दाने जब तकरीबन 80 फीसदी तक पक जाएं तो फसल को काटने की तैयारी करनी चाहिए, वरना ज्यादा देरी से फसल की कटाई करेंगे तो फसल के दाने खेत में झड़ सकते हैं. फसल को काटने के बाद 2-4 दिन सुखा कर उस की गहाई कर लें.