सहजन यानी सेंजना मोरिगेसी कुल का पौष्टिकता से भरपूर बहुद्देशीय पेड़ है, जिस को ‘ड्रमस्टिक ट्री’, ‘हौर्स रेडिस ट्री’ और ‘इंडियन हौर्स रेडिस ट्री’ के नाम से भी जाना जाता है. इस का वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा है. यह उत्तरी भारत और हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों में प्रचुरता से पाया जाता है.

आजकल यह दक्षिणी और मध्य भारत में भी बहुतायत में उगाया जाने लगा है. इस का प्रत्येक भाग (जड़, छाल, तना, पत्तियां, बीज, तेल व गोंद) किसी न किसी रूप में मनुष्य व जानवरों द्वारा खाया अथवा उपयोग में लाया जाता है. इस के पौधे में एंटीबायोटिक एवं जलशोधक गुण होने के कारण इस का औषधीय महत्व बढ़ने से अनुसंधानकर्ताओं व वैज्ञानिकों का ध्यान इस की तरफ बढ़ा है.

आयुर्वेद में सहजन का उपयोग पुराने समय से चला आ रहा है. पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण सहजन से विभिन्न प्रकार की चीजें बनाई जाने लगी हैं, जिन को खाने के साथ या खाने में एडिटिव्स के रूप में मिला कर खाया जाता है, जिस से शरीर में जरूरी तत्वों की कमी न हो और व्यक्ति सेहतमंद बना रहे.

यदि इस पौध का प्रत्येक घर में विधिवत उपयोग किया जाए, तो यह कुपोषण की समस्या का समाधान करने में अहम भूमिका निभा सकता है. यह सभी प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, परंतु कछारी बालू एवं बलूई दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 9 से कम हो, की खेती के लिए सर्वोत्तम है.

यह पौधा जल भराव व पीला पड़ने वाले क्षेत्रों में नहीं लगाया जा सकता है. इस की व्यावसायिक खेती के लिए ब्लौक प्लांटिंग में पौधे से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 3ग्3 मीटर होनी चाहिए और लाइन प्लांटिंग मंे 5ग्5 मीटर होनी चाहिए.

सहजन के पौधे की बोआई जुलाई माह में करें. पौधे से प्राप्त लकड़ियां जलाने के काम आती हैं. खाद व पानी का प्रयोग समयसमय पर जरूरत के मुताबिक करने से इस की बढ़वार बहुत अच्छी होती है. वृक्षारोपण के पहले 3 साल तक इस की खास देखभाल की जरूरत पड़ती है. उस के बाद यह अपनेआप बढ़ता रहता हैं. नई पत्तियां आने के साथ ही इस की टहनियों पर गोंद आने लगता है.

व्यावसायिक खेती के अलावा घर पर भी इस का पौधा लगाया जा सकता है, जिस से इस की पत्तियां, फूल, फलियां, जलाऊ लकड़ी, गोंद, बीज, तेल, जड़ इत्यादि परिवार की जरूरतों को पूरी करने के लिए मिलते रहें. यह पोषण संबधी परेशानियों से नजात दिलाने का बहुत ही अच्छा विकल्प है.

उपयोगिता

सहजन की पत्तियां

सहजन की पत्तियों में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं. इस को भोजन के साथ पूरक खाने के तौर पर पेट से होने वाली औरतों, नवजात बच्चों की माताओं आदि के लिए आर्दश भोजन माना गया है. इस में सभी प्रकार के वृहद एवं सूक्ष्म तत्व, विटामिन्स, एंटीऔक्सिडेंट्स और अमीनो अम्ल पाए जाते हैं.

सहजन की पत्तियों को छाया में सुखा कर, पीस कर चूर्ण तैयार कर लें. इस चूर्ण को संरक्षित कर के इस को सूप, सौस एवं सब्जियों में उपयोग करने से इस की पौष्टिकता कई गुना तक बढ़ जाती है. इस की पत्तियों से सौस भी बनाया जा सकता है. कुपोषण प्रभावित क्षेत्रों में इस का चूर्ण भोजन के साथ संयोजक के रूप में खिलाने से व्यक्ति कुपोषण मुक्त हो जाते हैं.

सहजन की पत्तियां जानवरों को भी खिलाई जाती हैं. इस की पत्तियों में प्रोटीन 15-20 फीसदी तक पाया जाता है. पशुओं में इस की पाचकता कोफिसिएंट क्रूड प्रोटीन का 71 फीसदी, क्रूड फाइबर का 58 फीसदी और नाइट्रोजन फ्री एक्सट्रेक्ट का 75 फीसदी होता है.

सहजन में कुल पाचक पोषक तत्वों की मात्रा 61.45 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम शुष्क पदार्थ होती है और इस का पौष्टिकता अनुपात 4.5 होता है. इस की पत्तियों को खिलाने से पशु स्वस्थ एवं अधिक दुधारू होते हैं. इस की पत्तियों को छोटे रोमंथी यानी जुगाली करने वाले पशु बड़े चाव से खाते हैं. इस की पत्तियों को मशीन से काट कर ब्यांत पशुओं को खिलाना भी अच्छा रहता है. सहजन के एक वयस्क वृक्ष (10 वर्ष) से लगभग 25-30 किलोग्राम शुष्क पत्तियां मिल जाती हैं.

सहजन की फलियां  

सहजन की फलियां फरवरी माह से शुरू हो जाती हैं और मई माह तक चलती हैं. इस की फलियों को कच्ची अवस्था में तोड़ कर साग बना कर खाया जाए, तो यह सभी पोषक तत्वों की पूर्ति कर देता है. सहजन की फलियों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं खनिज पदार्थों के साथसाथ कैरोटीन, निकोटिनिक, एसिड और एस्कोर्बिक एसिड भी पाया जाता है.

सहजन के एक वयस्क वृक्ष (10 वर्ष) से लगभग 100-120 किलोग्राम तक फलियां प्राप्त हो जाती हैं. सहजन की फलियों के अलावा फूलों से भी साग बनाया जाता है, जो बहुत स्वादिष्ठ होता है. सहजन की साग का सेवन एक सप्ताह में 2-3 बार करने पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की शरीर में कमी को पूरा किया जा सकता है.

सहजन की जड़

जब पौधा 2 फुट का हो जाए, तो उसे उखाड़ कर जड़ को मसाले के रूप मे काम में लिया जाता है. इस की जड़ का स्वाद तीखापन लिए होता है. जड़ को मसाले के लिए उपयोग में लेने से पहले इस की छाल हटा देनी चाहिए, क्योंकि इस में मोरिंजिनाइन नामक पदार्थ होता है, जो जहरीला होता है. जड़ का उपयोग त्वचा का संकम्रण उपचार करने के लिए औषध के रूप में किया जाता है.

सहजन के बीज

सहजन के बीजों को पीस कर पाउडर बना कर पानी में डालने से पानी साफ हो जाता है. सहजन के बीजों में जल घुलनशील प्रोटीन पाए जाते हैं, जो पानी में रिलीज हो कर पानी में घुले हुए कणों को पानी से हटा देते हैं, जिस से इन कणों का आकार एकदूसरे से संयोजन कर बड़ा हो जाता है, जिस के परिणामस्वरूप यह पेंदे मे बैठ जाते हैं. तालाबों, नदियों, कुओं इत्यादि के पानी को साफ/स्वच्छ करने के लिए पानी को सहजन के बीजों द्वारा उपचारित किया जाता है. बीजों का पाउडर स्कंदा (कोगूलेंट) के रूप में काम लिया जाता है, जो त्वचा संक्रमण, शहद एवं चीनी का शुद्वीकरण व जीवाण्ुाओं एवं ठोस पदार्थों को पानी से अलग करने में उपयोग किया जाता है.

सहजन के बीजों में 36 फीसदी तेल पाया जाता है, जिस में 60 फीसदी प्रवाही तेल व 40 फीसदी ठोस वसा होता है. तेल का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों और मशीनों में चिकनाहट के लिए किया जाता है. इस की खली को उर्वरक के रूप में मिट्टी में दिया जाता है.

सहजन का तना

सहजन की टहनियों से रेशा प्राप्त होता है, जिस का उपयोग रस्सी बनाने में किया जाता है, वहीं लकड़ियों को जलाने के काम में लिया जाता है. सहजन की छाल में एक सफेद क्रिस्टली एल्केलाइड तैदे, राल एवं लाबाब आदि तत्व होते हैं.

सहजन का गोंद

सहजन का गोंद उच्च गुणवत्ता वाला होता है, जिस का उपयोग रंगाईछपाई उद्योगों व औषध बनाने में किया जाता है. सहजन से गोंद अप्रैलमई में प्राप्त किया जाता है और इस का रंग भूरालाल होता है. गोंद टहनियों व तने पर लगता है और इस का उपयोग गोंद उद्योग में भी सीमित मात्रा में किया जाता है.

सहजन का होमियोपैथिक उपयोग

आमवात यानी जोड़ों का दर्द, कटिसूल यानी कमरदर्द, श्वास कास यानी सांस फूलने एवं प्लीहा शोथ में इस की फलियों एवं फूलों का सालन व फलियों को सिरका में डाल कर उपयोग कराया जाता है. छाल एवं पत्तियों का लेप विदाही यानी पेट में जलन वाली चीजें, शोथहर एवं विद्रधिपाचन में होता है. बीजों का तेल वेदनास्थापन यानी दर्द को दूर करने और शोथहर यानी सूजन को कम करने में सहायक होता है. इस की फलियों को खाने से पुरुषत्व में बढ़ोत्तरी होती है. श्वयथु विलयन यानी सूजन एवं वेदनास्थापन यानी दर्द को कम करने के लिए इस के पत्तों का बाहरी उपयोग करते हैं.

अन्य उपयोग

सहजन की पत्तियों एवं नई शाखाओं से कंपोस्ट तैयार कर मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ाई जा सकती है. चाय एवं कौफी के बागानों में पौधों की बढ़वार को बढ़ाने के लिए सहजन से प्राप्त पादप की बढ़वार हार्माेन का बागानों पर छिड़काव किया जाता है. इस की पत्तियों में जिएटिन नामक हार्मोन होता है, जो कोशिकाओं को दोबारा जिंदा करने और काल प्रभावन को राकने में सहायक होता है. ठंड या सर्दी से बचने के लिए सहजन के फूलों की चाय बना कर पीना लाभदायक होता है.

किसानों से अनुरोध है कि अपनेअपने खलिहानों व खेत की मेंड़ों पर सहजन का पेड़ अवश्य लगाएं और कृषि वानिकी के रूप में अपना कर अपने एवं अपने परिवार के सदस्यों को स्वस्थ बनाएं.

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