राजस्थान के बूंदी जिले की नैनवां तहसील का एक छोटा सा गांव है सहण. इस गांव में पर्यावरण प्रेमी पिता महावीर पांचाल के घर 29 फरवरी, 2008 को एक बच्चे का जन्म हुआ, जिस का नाम अर्जुन रखा गया.

पिता से सीख लेते हुए अर्जुन ने अपने जन्मदिन पर हनुमान वाटिका में लहसोड़ा, शीशम, अर्जुन, करंज वगैरह के एक दर्जन पौधे लगाए. अर्जुन को पौधे लगाने का ऐसा शौक लगा कि वह अब हर रविवार को अपने पिता के साथ वाटिका में पौधे लगाने के लिए आता है. वह अपने हाथों से गड्ढे खोदता है, पौधे लगाता है, पौधों की निराईगुड़ाई करता है और पानी देता है वगैरह.

अर्जुन के हाथों लगे दर्जनों पौधे आज बड़े पेड़ों में तबदील हो गए हैं.

29 फरवरी, 2016 को अपने जन्मदिन के मौके पर कई लोगों की मौजूदगी में दर्जनभर पौधे अपने हाथों से लगाए. वह बड़ा खुश था कि उस ने अपने जन्मदिन को अनूठे तरीके से मनाया.

1 मार्च, 2016 को हनुमान वाटिका के बीच से गुजर रही बिजली की तार के टूट कर गिरने से वाटिका में आग लग गई. तकरीबन 200 पेड़ जल कर स्वाहा हो गए. इसी घटना में उस के पौधे भी जल गए. उस दिन अर्जुन बहुत रोया और उदासी की चादर में खुद को ढक लिया.

पिता ने काफी समझाया औैर फिर से पौधे लगाने की शुरुआत हुई. इस बार पौधों की सुरक्षा पहली शर्त थी, लेकिन उस के पिता के पास पैसों की तंगी थी. इस वजह से वे कुछ बड़ा करने में नाकाम थे.

उस दिन अर्जुन ने बड़ी सोच का परिचय दिया. पिता से कहा कि पापा घर में जो कंपनी वाला डिश टैलीविजन लगा है, उसे हटा दीजिए और फ्री वाला लगवा लीजिए. ऐसा करने पर जो बचत होगी, उसे हम पौधों की सुरक्षा पर खर्च करेंगे. पिता को उस की बात जंच गई. उन्होंने ऐसा ही किया.

आज दर्जनों पेड़ लहलहा रहे हैं. इस साल अर्जुन अपने जन्मदिन पर खर्च होने वाली राशि को पौधों के सरंक्षण में खर्च करने का मन बना चुका है. वृक्षारोपण और उन की देखभाल के साथ ही अर्जुन को पक्षियों से भी प्यार है. कहीं भी उसे घायल पक्षी दिख जाए, उन्हें घर ला कर इलाज और देखभाल करता है. यही गुण हमारे देश के सभी बच्चों में आ जाएं तो न केवल धरती हरीभरी हो जाए, बल्कि मूक पक्षियों को भी नई जिंदगी मिल जाए.

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