उन्नतशील किसानों के लिए यह जरूरी है कि लाभदायक खेती की जाए, जिस से खेती में मुनाफा हो और किसान उसी पैसे का उपयोग कर के उन्नतशील खेती कर सकें. स्ट्राबेरी की खेती कैश क्रौप की तरह होती है. ऐसे में भारत में बड़ी तेजी से स्ट्राबेरी की खेती किसानों को लुभा रही है.

भारत में स्ट्राबेरी की खेती सब से पहले उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी इलाकों में तकरीबन 60 के दशक से शुरू हुई. बहुत दिनों तक इस की खेती केवल हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पहाड़ी हिस्से उत्तराखंड में ही हुई.

किसान यह मान रहे थे कि स्ट्राबेरी की खेती पहाड़ी जलवायु में ही हो सकती है. समय के साथसाथ स्ट्राबेरी की नई किस्म की फसलें आने लगीं, जिन की पैदावार मैदानी इलाकों में भी होने लगी. किसानों में तकनीकी जानकारी बढने लगी, तो स्ट्राबेरी की खेती मैदानी इलाकों में होने लगी.

शहरों में नएनए मौल खुलने लगे और शादीविवाह की दावतों में स्ट्राबेरी का प्रयोग फल के रूप में बढ़ने लगा. साथ ही, स्ट्राबेरी केक की मांग बढ़ी, तो स्ट्राबेरी की खेती मुनाफे का सौदा होने लगी. किसान इस की खेती से मालामाल होने लगे.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बक्शी का तालाब और मलिहाबाद इलाके के किसानों ने इस की शुरुआत की. बाराबंकी जिले के किसानों ने भी इस की शुरुआत कर दी थी. अब लखनऊ जिले के बाकी हिस्सों में रहने वाले किसानों ने भी इस की खेती करनी शुरू कर दी. मुनाफे को देखते हुए तमाम लोग जो विदेशों में नौकरी कर रहे थे, वे भी अपने गांव वापस आ कर उन्नतशील खेती के सहारे अपना कैरियर संवार रहे हैं.

जौब छोड़ शुरू की किसानी

लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील के गोपाल खेड़ा गांव के रहने वाले सिद्धार्थ सिंह यूके की मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी कर रहे थे. कुछ समय के बाद सिद्धार्थ सिंह ने मल्टीनैशनल कंपनी का पैकेज ठुकरा कर अपने गांव लौट कर नई तरह से खेती करने की शुरुआत की.

इस के तहत सिद्धार्थ सिंह ने स्ट्राबेरी की खेती करनी शुरू की. इस में उन के भाई राजेश सिंह ने सहयोग दिया. दोनों भाइयों ने मिल कर गांव में स्ट्राबेरी उगा कर उन्नत तकनीक के सहारे 6 महीने में ही तकरीबन 20 लाख रुपए की आमदनी हासिल की.

गोपाल खेड़ा गांव उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 20 किलोमीटर दूर है. यहीं के रहने वाले किसान राजेश सिंह के मौसेरे भाई सिद्धार्थ सिंह ने यूके से एमबीए करने के बाद वहीं मल्टीनैशनल कंपनी में मोटे वेतन पैकेज पर नौकरी कर ली. विदेश जा कर भी देशी खेती को उन्नत तकनीक के सहारे अच्छी आमदनी का जरीया बनाने की सोच ने कुछ सालों में ही सिद्धार्थ सिंह को वापस आने पर मजबूर किया. अपने देश वापस आ कर गोपाल खेड़ा गांव में स्ट्राबेरी की खेती करने की योजना तैयार की.

यूके के नाटिंघम, भारत के पुणे और हिमाचल प्रदेश जा कर उन्होंने स्ट्राबेरी उगाने की बारीकियां सीखीं. इस के बाद मोहनलालगंज की जलवायु में स्ट्राबेरी की खेती करने की ठान ली. भाई राजेश सिंह के साथ जिला बाराबंकी पहुंच कर स्ट्राबेरी की खेती कर रहे किसानों से भी जानकारी ली. 2019 के सितंबर महीने में एक एकड़ में स्ट्राबेरी का पौधरोपण करने की तैयारी पूरी की. लेकिन ऐन समय पर बारिश की वजह से फसल बोआई में देरी हो गई.

इस के बाद अक्तूबर में पुणे से 25,000 पौधे ला कर नर्सरी की. मेहनत और तकनीक के सहारे डेढ़ महीने में ही स्ट्राबेरी के पौधों से खेत हरेभरे हो गए. दिसंबर के पहले हफ्ते से शुरूहुई स्ट्राबेरी की अच्छी उपज ने 2 सप्ताह में ही तकरीबन साढ़े 3 क्विंटल का उत्पादन दिया है.

किसान राजेश सिंह ने बताया कि दिनोंदिन बढ़ रहे उत्पादन के साथ मार्च के आखिरी हफ्ते तक तकरीबन 20 लाख रुपए की स्ट्राबेरी उगाने का अनुमान है.

फसल सुरक्षा के लिए पौली टनल का सहारा

किसान सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि स्ट्राबेरी फसल के लिए पौलीहाउस सर्वाधिक बेहतर माना जाता है, लेकिन कम संसाधन में फसल सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने पौली टनल का सहारा लिया, जबकि पौधों को बूंदबूंद पानी देने के लिए ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था की. यह फसल अधिकतर ठंडे जलवायु की फसल है. लेकिन फसल का धूप और पाले से बचाव भी बेहद जरूरीहै. इस के अलावा सिंचाई भी जरूरत के मुताबिक ही होनी चाहिए.

किसान राजेश सिंह ने बताया कि खेत में खरपतवार न उगें, इस के लिए उन्होंने खेत में पौली मल्चिंग करा रखी है, जबकि एक एकड़ में एक फुट ऊंचे और डेढ़ फुट चौड़े 70 बैड तैयार करा कर उन पर 15-15 सैंटीमीटर की दूरी पर स्ट्राबेरी के पौधे उगाए हैं. फसल तैयार करने में तकरीबन 4 लाख रुपए की लागत आई है.

जानें तकनीकी खेती

सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि आसपास के गांवों के किसान भी अब स्ट्राबेरी की खेती करने का अपना मन बना  रहे हैं. ये लोग उन से स्ट्राबेरी की खेती के गुर लेने आते हैं.

स्ट्राबेरी की फसल के लिए खेत की तैयारी मईजून महीने में शुरू हो जाती है. सब से पहले खेत में ढैंचा की बोआई, फिर बारबार जुताई और गोबर की खाद डाल कर मिट्टी को भुरभुरा बनाया जाता है. फफूंद व रोगों से बचाव के लिए मिट्टी का प्रारंभिक उपचार कराया जाना भी जरूरी होता है. इस के बाद सितंबर महीने में स्ट्राबेरी के पौध ला कर नर्सरी कराई जाती है.

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