केंचुआ किसान का एक अच्छा दोस्त है. केंचुआ व दूसरे कार्बनिक पदार्थों, जैसे घरेलू कचरा, बाहरी कचरा, फसल के अवशेष, खरपतवार, पशुओं का गोबर, छिलके, जो गल सकें वगैरह के मिश्रण के बाद केंचुओं द्वारा छोड़े गए पदार्थ को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं.
वर्मी कंपोस्ट में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश के अलावा पौधों की बढ़वार व विकास में मददगार अनेक फायदेमंद सूक्ष्म तत्त्व व बैक्टीरिया, हार्मोंस और अनेक एंजाइम भी मौजूद होते हैं.
वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए सतही केंचुए, जो मिट्टी कम व कार्बनिक पदार्थ ज्यादा खाते हैं, इस्तेमाल किए जाते हैं. इन्हें एपीगीज के नाम से भी जाना जाता है. ये 2 तरह के होते हैं. एपिजाइक यानी सतह पर पाए जाने वाले केंचुए व एनिसिक यानी सतह के अंदर पाए जाने वाले केंचुए.
खूबियां : वर्मी कंपोस्ट में गोबर खाद के मुकाबले सवा गुना ज्यादा पोषक तत्त्व मौजूद रहते हैं. इस में मिलने वाला ह्यूमिक एसिड, मिट्टी के पीएच मान को संतुलित रखता है. यह वानस्पतिक पदार्थों को 40-45 दिन में ही खाद में बदल देता है. मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक क्वालिटी में और बंजर मिट्टी में सुधार आता है.
मछलीपालन और नर्सरी में भी वर्मी कंपोस्ट फायदेमंद है. इस तरह से तैयार खाद में दीमक का हमला नहीं होता है. इस के इस्तेमाल से मिट्टी की पानी लेने की कूवत में भी बढ़वार होती है.
साथ ही, इस में अनेक तत्त्व ऐसे होते हैं, जो पौधों को बीमारी से बचाते हैं और फसल का उत्पादन बढ़ाते हैं. मिट्टी की संरचना व हवा संचार में सुधार हो जाता है. जलकुंभी की समस्या से पूरी तरह नजात मिलती है. इस के इस्तेमाल से नाइट्रोजन तत्त्व की मिट्टी में लीचिंग नहीं होती है.
बनाने का तरीका : वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम गड्ढे, लकड़ी की पेटी, प्लास्टिक क्रेट या कंटेनर में किया जा सकता है. पेटी की गहराई एक मीटर से कम रखें. लकड़ी या प्लास्टिक की पेटी में नीचे 8 से 10 छेद पानी निकालने के लिए बनाएं. 10 फुट लंबा, 2.5 फुट चौड़ा, 1.5 से 2.0 फुट गहरा गड्ढा ऊंची व छायादार जगह पर बना लें. सब से निचली सतह पर 3-3.5 सैंटीमीटर मोटी ईंट या पत्थर गिट्टी बिछाएं. इस के ऊपर 3-3.5 सैंटीमीटर मौरंग या बालू बिछाएं. बालू की परत के ऊपर 15 सैंटीमीटर अच्छी दोमट मिट्टी की परत बनाएं.
इस के बाद 1 किलोग्राम केंचुए बराबर की संख्या में डाल दें. नम मिट्टी के ऊपर गोबर का ढेर बना कर रख दें. गोबर के ऊपर 5-10 सैंटीमीटर पुआल या सूखी पत्तियां डाल दें. इस इकाई में बराबर 20-25 दिन तक पानी का छिड़काव करें. 26 दिन मेें हर हफ्ते में 2 बार 5-10 सैंटीमीटर कचरे की तह बनाएं व गोबर का ढेर बना कर रख दें. यह प्रक्रिया तब तक दोहराते रहें, जब तक कि गड्ढा भर न जाए. इसे हफ्ते में एक बार पलटते रहें और रोज पानी का छिड़काव करें.
जब गड्ढा भर जाए, तो कचरा डालना बंद कर दें. 40-45 दिन बाद जब वर्मी कंपोस्ट बन जाए, तो 2 से 3 दिन तक पानी का छिड़काव बंद कर दें. उस के बाद इसे गड्ढे से निकाल कर छाया में ढेर लगा दें और हलका सूखने के बाद 2 मिलीमीटर छन्ने से छान लें. इस तैयार खाद में 20-25 फीसदी नमी होनी चाहिए.
निकालने का तरीका : खाद निकालने के 2-3 दिन पहले पानी का छिड़काव बंद कर दें. इस से केंचुए गड्ढे की तली में चले जाएंगे. ऊपर से खाद को 1-2 दिन बाद हाथ से अलग कर लें या मौरंग चलाने वाली छलनी से छान लें व फर्श में नीचे पड़े केंचुओं को दोबारा गड्ढे में डाल दें. छनी खाद को प्लास्टिक के थैलों में भर कर रखें.
इस्तेमाल करने का तरीका : वर्मी कंपोस्ट को फसलों की बोआई या रोपाई से पहले और खड़ी फसल में डाल सकते हैं. खाद्यान्न फसलों में 5-6 टन प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. 2.5 से 3 टन प्रति हेक्टेयर खेती की तैयारी के वक्त इस्तेमाल करें. 1.2 से 1.5 टन प्रति हेक्टेयर फसल की दूधिया अवस्था में इस्तेमाल करें.
फलदार पेड़ों में जरूरत के मुताबिक पेड़ के थाले में इस्तेमाल करें. गमलों में 100 ग्राम प्रति गमले की दर से इस्तेमाल करें. सब्जी फसलों में 10-12 टन प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करते हैं.
एहतियात : ताजा गोबर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस के सड़ने से ऊर्जा निकलती है और गरमी से केंचुए मर जाते हैं. बैड में नमी, छाया, 8 से 30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान व हवा का आनाजाना बनाए रखें. केंचुओं की मेढक, सांप, चिडि़या, कौआ, छिपकली व लाल चींटी से हिफाजत करें.
कूड़ाकचरा भी गीला व ठंडा कर के केंचुओं के भोजन के रूप में इस्तेमाल करें. बैड की गुड़ाई या पलटाई हर हफ्ते करें, जिस से पोलापन बना रहे व केंचुओं को हवा मिले. गड्ढे की भराई धीरेधीरे करें, नहीं तो तापमान बढ़ने से केंचुओं को नुकसान होता है. गड्ढा छायादार व ऊंची जगह पर बनाएं.