हमारे देश के ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती पर निर्भर हैं, जिस से उन्हें अपेक्षा के अनुरूप फायदा नहीं मिल पाता है. पारंपरिक खेती पर निर्भर रहने वाले किसानों के लिए मौसम की अनिश्चितता भी बड़ी समस्या है. खादबीज की समय से उपलब्धता न हो पाना भी किसानों के लिए खेती में नुकसान की एक बड़ी वजह बन जाता है. पारंपरिक फसलों का मूल्य भी व्यावसायिक की अपेक्षा बहुत कम होता है, जिस से किसान निराशा का शिकार हो कर खेती से धीरेधीरे दूर होते जा रहे हैं. ऐसे में किसानों को पारंपरिक फसलों के साथ ही कुछ ऐसी फसलों की खेती की तरफ कदम बढ़ाना होगा, जिस का बाजार मूल्य और मांग दोनों अच्छे हों.

ऐसी ही एक व्यावसायिक फसल की खेती कर किसान अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकते हैं, जिसे स्पिरुलिना के नाम से जाना जाता है. यह एक तरह का जीवाणु है, जिसे साइनोबैक्टीरियम के नाम से भी जाना जाता है.

आमतौर पर इसे हम ‘शैवाल’ भी कह सकते हैं. यह एक प्रकार की जलीय वनस्पति है, जो  झीलों,  झरनों और खारे पानी में आसानी से पैदा होती है. प्राकृतिक रूप से यह समुद्र में पाई जाती है. इस का रंग हरा व नीला होता है.

व्यावसायिक लेवल पर इस की खेती प्लास्टिक या सीमेंट के टैंक बना कर भी की जा सकती है. यह पोषण के सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इस में ऐसे कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व मौजूद होते हैं, जो हमें बीमारियों से बचाते हैं. साथ ही, इस में कई तरह के विटामिंस, खनिज और पोषक तत्त्व के साथसाथ प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है. यह पोटैशियम, कैल्शियम सेलेनियम और जिंक का भी महत्त्वपूर्ण स्रोत है. कई देशों में इसे ‘सुपर फूड’ के नाम से भी जाना जाता है.

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