अफीम या पोस्त का वैज्ञानिक नाम पैपेवर सोमनिफेरम है. इसे संस्कृत में अहिफेन, चोजा, खासा, हिंदी में अफीम, अफ्यून, कशकश, पोस्त, बंगाली में धोस्तु, मराठी में आफू, आफीमु, पोस्त, गुजराती में अफीण, खसखस, पोस्त, तेलुगु में अमिनी, गसालू, कसकसा, तमिल में अलिनी, गशगश, कशकश, पोस्तका, कन्नड़ में विलिगसगते, मलयालम में अल्फीयून, कशकश वगैरह नामों से जाना जाता है. इस के पौधे संपुटों, बीजों और अफीम के लिए इस्तेमाल होते हैं. यह 60-120 सैंटीमीटर ऊंचा पादप है. पोस्ते के बीज और अफीम के उत्पादन के लिए अफीम पोस्त की खेती की जाती है.

अफीम पोस्त की उत्पत्ति का केंद्र पश्चिमी भूमध्य सागरीय क्षेत्र है. पुराने समय से ही पोस्त की खेती अफीम के लिए इटली, यूनान व एशिया माइनर में होती रही है. वर्तमान में अफीम पोस्त का उत्पादन भारत, तुर्की व रूस में खासतौर से होता है. बलोरिया, यूगोस्लाविया, जापान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी यह थोड़ी मात्रा में उगाया जाता है.

साल 1955 तक ईरान अफीम का मुख्य उत्पादक था, परंतु 1955 से वहां इस का निषेध कर दिया है. भारत में अफीम के लिए पोस्त की खेती 16वीं सदी के शुरू से ही होती रही है और तब से यह विभिन्न सरकारों के लिए राजस्व का एक अहम जरीया रही है.

पूर्व में अफीम को स्वतंत्रता से सुदूर पूर्वी देशों में बेचा जाता था, परंतु इस के बुरे इस्तेमाल व मादक द्रव्य के रूप में इस के बढ़ते चलन के कारण अब इस की खेती एक निश्चित इलाके में की जाती है. अफीम पोस्त की खेती अब भारत सरकार के नियंत्रण में खासतौर से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के कुछ इलाकों में ही होती है.

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