बकरी पालने का यह रोजगार गांवशहर दोनों जगह आसानी से किया जा सकता है, पर शहरों में चारे को ले कर यह थोड़ा खर्चीला हो सकता है. ये काम गांवदेहात के लोगों के भूमिहीन और बेरोजगारों के लिए आमदनी का अच्छा साधन है. इस व्यवसाय में कम लागत और अधिक आमदनी है. बकरीपालन का काम खेती से जुड़े अन्य कामों के साथसाथ आसानी से किया जा सकता है.

बकरीपालन के लिए कुछ बातों का रखें ध्यान

* बकरी अच्छी नस्ल की होनी चाहिए, जो 2 साल में 3 ब्यांत दें. अच्छी मादा का चयन करें. हरियाणा में बीटल, जमुनापारी, सिरोही, जखराना और बारबरी नस्ल की बकरी पालने में उत्तम है.

* अंत:प्रजनन को रोकने के लिए नर को हर 18 महीने बाद बदल दें और नए नर को दूसरे गांवों से खरीदें या अदलाबदली करें, जिन का खून का रिश्ता न हो.

* मादा को प्रजनन कराने के लिए अच्छी नस्ल वाले नर का चयन करें. नरों का चयन जुड़वां मेमनों और 6 महीने के वजन व उन की मां का दूध बढ़ा होना जरूरी है. उस में किसी प्रकार की पीढ़ी दर दोष न हो. बकरे के सींग होने चाहिए. चयनित नरों के शरीर की लंबाई, ऊंचाई, सीने की चौड़ाई अधिक हो और लंबा सिर व गरदन हो.

* बूढ़ी, कमजोर और जो जानवर, जिन का लगातार 2 बार अपनेआप गर्भपात हो जाए, उसे न रखें. झुंड में बकरियों की उम्र 7 साल से अधिक न हो.

* रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं को टीके लगवाएं.

* पेट के कीड़ों को मारने के लिए कृमिनाशक दवा साल में 3 बार, अगस्त, दिसंबर और अप्रैल माह में पिलाएं. हर 2 साल बाद पशु चिकित्सक से सलाह ले कर दवा बदल देनी चाहिए.

* बकरियों की साफसफाई का भी ध्यान रखें.

* बरसात के दिनों में कच्चे खुर होने से रोकने के लिए पशु के खुरों पर फिनाइल या कापर सल्फेट का घोल डाल कर साफ कर दें.

* बकरी की लेवटी ढीली व लटकती हुई न हो, थन जमीन की और स्पष्ट दिखाई देने चाहिए. बगल से देखने पर शरीर का आकार त्रिकोणीय हो.

Goat

खानपान का रखें खयाल

* बकरी व मेमनों को दाना, भूसा एवं हरे चारे को साफसुथरा चारा खिलाने वाले बरतन या नांद में डाल कर खिलाना चाहिए. इन उपकरणों में दाने चारे का नुकसान भी कम होता है और उस में पशु का मूत्र या मैंगनी भी नहीं मिलती, जिस में पशु को दस्त लगने की समस्या भी कम होती है.

* नवजात मेमनों को जन्म के 4 घंटे के अंदर खीस अवश्य पिलानी चाहिए. कमजोर मेमने के स्तनपान का ध्यान रखें. न्यूनतम दुग्ध उत्पादन एवं अत्यधिक शिशु जन्म दर की अवस्था में दुग्ध विकल्प (क्रीप आहार) का उपयोग कर के मेमनों की जीवन रक्षा की जा सकती है.

* जब तक मेमने चराई पर नहीं जाते, तब तक उन में दस्त साधरणतया कीटाणुजनित होते हैं और 5 दिनों तक बहुआयामी की एंटीबायोटिक्स पिलाने से ठीक हो जाते हैं.

* 6 महीने की आयु तक चराई के साथ मिश्रित दाना देने से मेमनों में तेजी से बढ़ोतरी होती है, जिस में उसे बेचने पर मुनाफा ज्यादा मिलता है.

* पेट के कीड़े की समस्या कम करने के लिए चक्र के अनुसार 7-10 दिन एक जगह, फिर दूसरी, तीसरी और चौथी जगह चराई कराएं.

* रुके पानी में उगी घास पर बकरियों को न चरने दें.

अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में पशु विशेषज्ञ से सलाह लें या फिर पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा) से सपंर्क करें.

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