भारत के नौर्थईस्ट राज्य में विख्यात औषधीय गुण वाले काले चावल यानी ब्लैक राइस का उत्पादन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शामली जिले में पहली बार किया गया. अपने औषधीय गुणों, स्वाद और कीमत के आधार पर यह काला चावल आम चावल की अपेक्षा बाजार में अपनी अलग पहचान रखता है, जो किसानों को परंपरागत खेती से ऊपर उठ कर कृषि विविधीकरण की ओर ले जाता है.
बातचीत में कृषि विज्ञान केंद्र, जलालपुर, शामली में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक डा. विकास कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश के शामली जिले में ग्राम सोंटा के जैविक किसान राहुल कुमार द्वारा काले चावल का सफलतापूर्वक उत्पादन किया गया.
राहुल कुमार ने अपनी शिक्षा कृषि क्षेत्र में ही प्राप्त की है. ग्रामीण परिवेश और किसान परिवार से होने के कारण इन का खेती से जुड़ाव काफी गहरा रहा है. राहुल कुमार अपनी युवा नव परिवर्तित सोच से कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करना चाहते थे, ताकि आज के परिवेश में किसानों की जो दुर्दशा हो रही है, उस से उन्हें बाहर निकाला जा सके.
अपनी नव परिवर्तित सोच के साथ खेती में बदलाव कर के काला चावल की खेती करने की सोची, परंतु क्या काला चावल इस क्षेत्र की जलवायु में पैदा हो पाएगा या नहीं, इस का बीज कैसे और कहां से प्राप्त होगा आदि चुनौतियां सामने थीं.
इन चुनौतियों से पार पाने के लिए जिले के कृषि विज्ञान केंद्र, जलालपुर, शामली में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक डा. विकास कुमार से संपर्क किया गया. औनलाइन बीज की व्यवस्था की गई, जो नौर्थईस्ट में चकहाउ किस्म के नाम से प्रसिद्ध है.
डा. विकास कुमार की देखरेख में जैविक विधि द्वारा काले चावल का 2 बीघा में सफलतापूर्वक उत्पादन किया गया. खाद की पूर्ति के लिए डीकंपोजर और गोमूत्र से बना जीवामृत इस्तेमाल किया गया. रोग व कीट प्रबंध के लिए नीम का तेल व जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया गया.
राहुल कुमार ने 2 बीघा फसल से 6 क्विंटल धान की पैदावार ली. काले चावल का उत्पादन कर के जनपद में मिसाल कायम की और किसानों के लिए कौशल प्रेरणा का स्रोत बने.
काला चावल एक औषधीय गुण वाला पौधा है. इस में प्रचुर मात्रा में एंटीऔक्सीडैंट और एंथोसाइन नामक घटक पाए जाते हैं, जो कैंसर, डायबिटीज, दिल की बीमारी को ठीक करने में काफी सहायता करते हैं. साथ ही, इस में फाइबर, विटामिन बी, ई, कैल्शियम, जिंक आदि खनिज पदार्थ पाए जाते हैं, जो अधिक पौष्टिक होने से कुपोषित लोगों के लिए फायदेमंद हैं.
इस के अलावा यह चावल हाई ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रोल, अर्थराइटिस के साथसाथ कई और बीमारियों को ठीक करने और बालों को काला करने में भी लाभकारी है.
काले चावल की खेती मुख्य रूप से असम, मणिपुर राज्य में की जाती है. औषधीय गुणों के कारण बाजार में इस का मूल्य 200 से 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक है.
राहुल कुमार धान कटवा कर चावल की अच्छी तरह से पैकेजिंग और मार्केटिंग कर के 200 से 250 रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, जो इस समय किसानों के लिए प्रगतिशील किसान के रूप में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं.
काले चावल के दाम, उत्पादन और औषधीय गुणों को देख कर अब अन्य किसानों में भी इस की खेती का क्रेज बढ़ रहा है. डा. विकास कुमार ने बताया कि वे ऐसी फसलों पर अनुसंधान करते रहते हैं, जो इस क्षेत्र में नहीं उगाई जाती हैं और बाजार में जिन का अधिक दाम होता है. इस से किसानों की आय में इजाफा होगा.
काले चावल की खेती इस इलाके के किसानों की आमदनी बढ़ाने में अहम योगदान दे सकती है.