हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के 2 पूर्व वैज्ञानिकों डा. हरिओम व डा. रामचंद्र सिहाग को पद्मश्री अवार्ड से सुशोभित होने पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बधाई व शुभकामनाएं दी. साथ ही, भविष्य में भी इसी प्रकार किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए अपनी सेवाएं जारी रखने की कामना भी की.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक लगातार किसानों की माली हालात को मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं. वैज्ञानिकों द्वारा ईजाद की गई उन्नत किस्में देशभर में लोकप्रिय हो रही हैं, जिन की बदौलत विश्वविद्यालय लगातार राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बना रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में भी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए काम करते रहेंगे व देश को माली तौर पर समृद्ध बनाने में योगदान देंगे. डा. हरिओम ने प्राकृतिक खेती व डा. रामंचद्र सिहाग ने मधुमक्खीपालन विषय पर बेहतरीन सेवाएं दे कर किसानों को न बल्कि प्रशिक्षित किया, बल्कि उन के स्वरोजगार इकाई को लगाने में अपनी अहम भूमिका अदा की.

इस के अलावा उपरोक्त विश्वविद्यालय के एल्युमिनाई एवं मेजर जनरल प्रमोद बतरा को विशिष्ट सेना मैडल मिला है.

डा. हरिओम ने 36 साल तक चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में समर्पण व ईमानदारी के साथ अपनी सेवाएं दी. वर्तमान में वे हरियाणा सरकार द्वारा संचालित परियोजना के तहत प्राकृतिक खेती विषय पर राज्य प्रशिक्षण सलाहकार के पद पर काम कर रहे हैं. उन्होंने गुरुकुल कुरुक्षेत्र स्थित प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण संस्थान में 10 हजार से अधिक किसानों सहित अन्य हितधारकों को प्राकृतिक खेती विषय पर प्रशिक्षण दे कर उन को आत्मनिर्भर बनाया है.

इस के अलावा उन्होंने देश के 500 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्रों के आईसीएआर के वैज्ञानिकों को भी प्रशिक्षित किया है.

इतना ही नहीं, डा. हरिओम ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय के तहत स्वीकृत 11-13 सितंबर, 2023 में नेपाल के 25 व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि को भी प्रशिक्षण दिया. साथ ही, साल 2022 में गुजरात के 60 कलक्टरों और डीडीओ को भी प्राकृतिक खेती विषय पर अहम जानकारियां दे कर उन का मूल्यांकन भी किया.

डा. हरिओम ने अप्रैल, 2023 में श्रीलंका के उच्चायुक्त की अध्यक्षता में प्रतिनिधियों का मार्गदर्शन करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस के अलावा इन की अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के चलते डा. हरिओम को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी सम्मानित कर चुके हैं.

साथ ही, भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित 4 राज्य, जिन में पंजाब, हरियाणा, गुजरात व हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल के समक्ष डा. हरिओम ने प्राकृतिक खेती के काम, प्रदर्शन और संभावनाओं पर ज्ञानवर्धन प्रस्तुतियां दी.

इतना ही नहीं, डा. हरिओम के नेतृत्व व मार्गदर्शन में जिला कैथल व कुरुक्षेत्र के 4 किसान जोनल व राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं.

प्रो. रामचंद्र सिहाग अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शिक्षाविद् हैं. उन्होंने नवंबर, 1979 से जनवरी, 2012 तक चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दीं, जिन में साल 1979 से 1988 तक उन्होंने विशेष रूप से मधुमक्खीपालन विषय पर अपना अहम योगदान दिया. 1988 से 1995 तक उन्होंने एसोसिएट प्रोफैसर, रिसर्च लीडर, 1995 से 2012 तक पर्यावरण जीव विज्ञान, 1997 से 2000 व 2011 से 12 तक प्राणी शास्त्र विभाग और डीन, कालेज औफ बेसिक साइंस एवं ह्यूमैनिटीज में 2001 से 2006 तक विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं दीं.

डा. रामचंद्र सिहाग के पास शिक्षण, अनुसंधान, शैक्षिक प्रबंधन व सरकारी संगठनों में 40 वर्षों का अनुभव है. इस के अलावा उन्होंने मधुमक्खीपालन के साथसाथ पर्यावरण जीव विज्ञान, मछली रोग विज्ञान, वर्मी कल्चर के अनुशासन में भी कई शोध किए हैं. इस के अलावा डा. रामंचद्र सिहाग ने प्रतिष्ठित राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 190 से अधिक शोध और तकनीकी लेख प्रकाशित किए हैं. साथ ही, पत्रिकाएं समेत 6 पुस्तकें संपादित भी की.

साल 1980 से 82 तक मधुमक्खियों पर उन के उत्कृष्ट कार्य के लिए डा. रामचंद्र सिहाग को नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से रफी अहमद किदवई मैमोरियल पुरस्कार से नवाजा गया. 1993 में मधुमक्खियों के संरक्षण विषय पर बेहतरीन काम करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग से समूह पुरस्कार सहप्रशंसा प्रमाणपत्र भी दिया गया. साल 2005 में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में परागणकों के संरक्षण के लिए पादप विभाग भारत पर स्क्राल औफ औनर प्राप्त किया.

जैव विविधता के सरंक्षण के लिए डा. रामचंद सिहाग को लाइफ टाइम अचीवमैंट अवार्ड, 2007 में चंडीगढ़ में ऐनवायरनमैंट सोसायटी औफ इंडिया से पर्यावरण और कल्चरल एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी औफ इंडिया, हिसार से ऐजुकेशनल संबंधित पुरस्कार भी प्राप्त किए. 2008 में इन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए ई.पी.ओडुम मेमोरियल अवार्ड और 1997 में एशियन एपीकल्चरल एसोसिएशन चीन में परागण अनुभाग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.

वर्तमान समय में डा. रामचंद्र जर्नल औफ एंटोमोलौजी के संपादक पद पर कार्यरत हैं. ये 5 अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के क्षेत्रीय संपादक, 2 अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के एसोसिएट संपादक व अन्य 15 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के संपादकीय बोर्ड के सदस्य भी रहे. इस से पूर्व उन्होंने साल 1990 से 1994 तक इंडियन बी जर्नल के संपादक के रूप में भी काम किया.

इस के अलावा डा. रामचंद्र सिहाग को संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग के वैज्ञानिकों व औद्योगिक परिषद जैसी एंजेसियों द्वारा वित्त पोषित मधुमक्खियों व मधुमक्खीपालन विषय पर 6 शोध परियोजनाएं भी पूरी की. डा. रामचंद्र सिहाग ने 29 पीजी स्कौलर्स का मार्गदर्शन भी किया.

साथ ही, उन्होंने मधुमक्खीपालन में 10 हजार से अधिक लोगों को स्वरोजगार दिया. डा. रामचंद्र सिहाग के सराहनीय कदम की बदौलत, जो 1980 में मधुमक्खी की कालोनियां 5 हजार थीं, वह अब बढ़ कर 30 लाख कालोनियां हैं.

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