जब भी बहुत ज्यादा गरम नम या गरम शुष्क वातावरण होता है, तब पशु सामान्यतौर पर जीभ बाहर निकाल कर और अधिक से अधिक पसीना निकाल कर अपनी ऊर्जा को खर्च करते हैं, जिस से उन के शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है.
यह पशुओं के लिए जो एक स्वाभाविक और प्राकृतिक क्रिया है, लेकिन कभीकभी पशुओं के शरीर ऊष्मा बाहर निकालने की क्षमता, पसीना निकालना, जीभ बाहर निकलना जैसी प्राकृतिक क्रियाओं से भी शारीरिक तापमान नियंत्रित नहीं हो पाता, जिसे ऊष्मीय तनाव कहा जाता है.
तापमान, जिस के ऊपर ऊष्मीय तनाव हो सकता है :
- संकर और विदेशी नस्ल की गायों में 26० सैंटीग्रेड से ऊपर.
- देशी नस्ल की गायों में 33० सैंटीग्रेड से ऊपर.
- भैंसों में 36० सैंटीग्रेड से ऊपर.
ऊष्मीय तनाव से पशुपालकों को कई प्रकार से माली नुकसान हो सकता है, जैसे :
- दूध उत्पादन में कमी.
- कम प्रजनन दक्षता.
- मंदहीनता.
- गर्भधारण दर में कमी.
संवेदनशील पशु
देशी नस्ल की गायों की अपेक्षा संकर और विदेशी नस्ल की गाय ऊष्मीय तनाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं. भैंसों की मोटी व काली चमड़ी होने और गायों की तुलना में कम पसीना ग्रंथि होने के कारण भैंस ऊष्मा का खर्च ठीक प्रकार से नहीं कर पाती, जिस से उन में ऊष्मीय तनाव का ज्यादा बुरा असर होता है.
ऊष्मीय तनाव को कम करने के लिए उचित प्रबंधन इस प्रकार है :
* पशुशाला की ऊंचाई बीच से 15 फुट और आसपास से 10 फुट होनी चाहिए. उस की लंबी तरफ पूर्वपश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए.
* पशुशाला की बाहरी छत की पुताई सफेद सीमेंट से करने से सूरज की किरणें परावर्तित होंगी व पशुशाला में ठंडक बनी रहेगी.
* पशुशाला के आसपास पेड़पौधे लगाना.
* पशुशाला की दीवारों पर घूमने वाले पंखे लगाना.
* फव्वारे लगाना.
* पंखों के आसपास एक गोले के रूप में फव्वारे लगाना.
* पशुओं को दोपहर में नहलाना.
* कट्टे के परदे लगाना व उन पर पानी का छिड़काव करना.
* ठंडे व स्वच्छ पीने योग्य पानी की पर्याप्त व्यवस्था करना.
* पशुओं के नहाने के लिए टैंक की व्यवस्था करना.