हमारे देश में फसलों के अवशेषों का उचित प्रबंध करने पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. या कहें कि इस का उपयोग मिट्टी में जीवांश पदार्थ अथवा नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि इन का अधिकतर भाग या तो दूसरे घरेलू उपयोग में किया जाता है, या फिर इन्हें नष्ट कर दिया जाता है जैसे कि गेहूं, गन्ने की हरी पत्तियां, आलू, मूली की पत्तियां वगैरह पशुओं को खिलाने में उपयोग की जाती हैं या फिर फेंक दी जाती हैं. कपास, सनई, अरहर आदि के तने, गन्ने की सूखी पत्तियां, धान का पुआल आदि सभी अधिकतर जलाने के काम में उपयोग कर लिए जाते हैं.
पिछले कुछ वर्षों में एक समस्या मुख्य रूप से देखी जा रही है कि जहां हार्वेस्टर के द्वारा फसलों की कटाई की जाती है, उन क्षेत्रों में खेतों में फसल के तने के अधिकतर भाग खड़े रह जाते हैं और वहां के किसान खेत में फसल के अवशेषों को आग लगा कर जला देते हैं.
अधिकतर रबी सीजन में गेहूं की कटाई के बाद विशेष रूप से ऐसा देखने को मिलता है कि किसान अपनी फसल काटने के बाद फसलों के अवशेष को उपयोग न कर के उन्हें जला कर नष्ट कर देते हैं.
इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए प्रशासन द्वारा गेहूं की नरवाई जलाने पर रोक लगाई गई है और किसानों को शासन, कृषि विभाग व संबंधित संस्थाओं द्वारा इस बारे में समझाने के प्रयास किए जा रहे हैं कि किसान अपने खेतों में अवशेषों में आग न लगा कर उन का खेत के जीवांश पदार्थ को बढ़ाने में उपयोग करें.
इस प्रकार गांवों में पशुओं के गोबर का अधिकतर भाग खाद बनाने के लिए प्रयोग न करते हुए इसे ईंधन के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जबकि इसी गोबर को यदि गोबर गैस संयंत्र में उपयोग किया जाए, तो इस से बहुमूल्य और पोषक तत्त्वों से भरपूर गोबर की स्लरी प्राप्त कर खेत की उर्वराशक्ति बढ़ाने में उपयोग किया जा सकता है.
साथ ही, गोबर गैस को घर में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है, पर इस के बावजूद नतीजे अच्छे नहीं हैं, जबकि जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा निरंतर कम होने से उत्पादकता या तो घट रही है या स्थिर हो गई है. समय रहते इस पर ध्यान दे कर जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ाने से ही कृषि की उत्पादकता बढ़ा पाना संभव हो सकता है, जो देश की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए बहुत जरूरी है.
हमारे देश में किसान फसल अवशेषों का उचित उपयोग न कर के इन का दुरुपयोग कर रहे हैं, जबकि यदि इन अवशेषों को सही ढंग से खेती में उपयोग करें, तो इन के द्वारा हम पोषक तत्त्वों के एक बहुत बड़े अंश को पूरा कर सकते हैं.
विदेशों में जहां अधिकतर मशीनों से खेती की जाती है अर्थात पशुओं पर निर्भरता नहीं है, वहां पर फसल के अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिला दिया जाता है.
वर्तमान में हमारे देश में भी इस काम के लिए रोटावेटर जैसी मशीन का प्रयोग शुरू हो गया है, जिस से खेत को तैयार करते समय एक बार में ही फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काट कर मिट्टी में मिलाना काफी आसान हो गया है. जिन क्षेत्रों में नमी की कमी हो, वहां पर फसल अवशेषों को कंपोस्ट खाद तैयार कर खेत में डालना लाभप्रद होता है.
आस्ट्रेलिया, रूस, जापान व इंगलैंड आदि विकसित देशों में इन अवशेषों को कंपोस्ट बना कर खेत में डालते हैं, या फिर इन्हें खेत में अच्छी प्रकार मिट्टी में मिला कर सड़ाने की क्रिया को सुचारु रूप से चलाने के लिए समयसमय पर जुताई करते रहते हैं.
फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन करने के लिए आवश्यक है कि अवशेष जैसे गन्ने की पत्तियां, गेहूं के डंठलों को खेत में जलाने की अपेक्षा उन से कंपोस्ट तैयार कर खेत में प्रयोग करें. उन क्षेत्रों में, जहां चारे की कमी नहीं होती, वहां मक्का की कड़वी व धान के पुआल को खेत में ढेर बना कर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कंपोस्ट बना कर उपयोग करना आवश्यक है.
आलू और मूंगफली जैसी फसलों को खुदाई में बचे अवशेषों को खेत में जोत कर मिला देना चाहिए. मूंग व उड़द की फसल में फलियां तोड़ कर खेत में मिला देनी चाहिए. इसी प्रकार यदि केले की फसल के बचे अवशेषों से कंपोस्ट तैयार कर ली जाए, तो उस से 1.87 प्रतिशत नाइट्रोजन, 3.43 प्रतिशत फास्फोरस और 0.45 प्रतिशत पोटाश मिलता है.
खेतों के अंदर सस्यावशेष प्रबंधन
फसल की कटाई के बाद खेत में बचे अवशेष घासफूस, पत्तियां व ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए किसान भाई फसल को काटने के पश्चात 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क कर कल्टीवेटर या रोटावेटर से काट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए.
इस प्रकार अवशेष खेत में विघटित होना प्रारंभ कर देंगे और लगभग एक माह में स्वयं सड़ कर आगे बोई जाने वाली फसल को पोषक तत्त्व प्रदान कर देंगे, क्योंकि कटाई के पश्चात दी गई नाइट्रोजन अवशेषों में सड़ने की क्रिया को तेज कर देती है.
अगर फसल अवशेष खेत में ही पड़े रहें, तो फसल बोने पर जब नई फसल के पौधे छोटे रहते हैं, तो वे पीले पड़ जाते हैं, क्योंकि उस समय अवशेषों के सड़ाव में जीवाणु भूमि की नाइट्रोजन का उपयोग कर लेते हैं और प्रारंभ में फसल पीली पड़ जाती है, इसलिए फसल अवशेषों का प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है, तभी हम अपनी जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा में वृद्धि कर जमीन को खेती के योग्य सुरक्षित रख सकते हैं.