राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के खंडार उपखंड के छान गांव का नजारा इन दिनों लालिमा लिए हुए है. यदि पहाड़ की ऊंचाई पर चढ़ कर देखें, तो दूरदूर तक सिर्फ मिर्ची ही मिर्ची सूखती हुई दिखाई देती हैं. यहां की मिर्ची न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी धूम मचा रही है. देशभर के व्यापारी गांव में आ कर मंडी लगाते हैं और यहां से विदेशों तक सप्लाई करते हैं.
किसान फारुख खान, गुलफाम एवं जुनैद खान ने बताया कि गांव में सभी किसान मिर्ची का उत्पादन करते हैं. हमारे गांव की जलवायु मिर्ची के लिए बहुत उपयोगी है. पहले हम भी सामान्य तरीके से गेहूं, सरसों, चना, ज्वार, बाजरा, तिल की फसल लेते थे, पहले गांव के किसानों की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन जब से मिर्ची एवं अन्य सब्जियों का उत्पादन वैज्ञानिक विधियों से करने लगे हैं, किसानों के दिन बदलने लगे हैं.
गांव में मिल रहा है लोगो को रोजगारः-
आज हमारे गांव में राजस्थान व मध्य प्रदेश के लगभग 2,000 लोगों को 9-10 माह तक लगातार मिर्ची की फसल से रोजगार मिल रहा है. लोग अस्थाई तौर पर यहां आ कर रहने लगे हैं.
जब मजदूरों से बात की, तो बोले कि हमें रोज 500-600 रुपए मजदूरी के रूप में मिल जाते हैं. हम परिवार सहित यहां रहते हैं.
किसानों से जब छान की मिर्ची के प्रसिद्ध होने का राज पूछा, तो उन्होंने बताया कि हम उन्नत किस्म के बीजों का चयन करते हैं, वैज्ञानिक सलाह के अनुसार संतुलित मात्रा में खाद, उर्वरक एवं दवाओं का उपयोग करते हैं, समयसमय पर निराईगुड़ाई एवं रोग से ग्रसित पौधों का उपचार करते हैं.
हमारा गांव चारों तरफ से पहाड़ से घिरा हुआ है, इसलिए यहां सर्दी के मौसम में पाले एवं सर्दी का प्रकोप कम होता है, जिस वजह से सर्दी के मौसम में यहां फसल में नुकसान कम होता है.
उन्होंने बताया कि पहाड़ की वजह से जमीन की तुलना में पत्थर गरम रहता है और जब हम पहाड़ पर मिर्ची सुखाते हैं, तो नीचे एवं ऊपर का तापमान अच्छा होने की वजह से मिर्ची का रंग गहरा लाल हो जाता है. इसलिए उत्तर प्रदेश के किसानों से भी व्यापारी मिर्ची खरीद कर यहां सुखाने लाते हैं.
जब किसानों से फसल से मिलने वाले मुनाफे की बात की, तो किसान जुनैद एवं फारुख खान ने कुछ यों समझाया मुनाफे का गणित:
एक बीघा यानी 0.25 हेक्टेयर में यदि मौसम खराब हो या अन्य परिस्थिति अनुकूल न हो तो 150 मण उत्पादन हो जाता है. यदि सारी परिस्थिति अनुकूल हो, तो ये उत्पादन 500 मण तक हो जाता है, लेकिन हम 300 मण औषत उत्पादन मान लेते हैं.
औसत भाव 25 रुपए किलोग्राम मिल जाता है. इस प्रकार एक बीघा में औसत उत्पादन 3,00,000 रुपए तक हो जाता है, जिस में अधिकतम 1,00,000 रुपए तक खर्चा हो जाता है. इस प्रकार हमें लगभग 2,00,000 रुपए तक प्रति बीघा मुनाफा मिल जाता है.