उचित खाद व उर्वरकों के प्रयोग से हम न्यूनतम तापमान, पाला, बादल, ओस जैसी सर्दियों की प्राकृतिक समस्याओं से मुकाबला कर के कम लागत में ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं. आइए जानते हैं, किनकिन उर्वरकों का इस्तेमाल कर के पौधों को सर्दियों से बचाया जा सकता है :

सल्फर का प्रयोग : सर्दियों में पौधों को गरम करने की बात हो, तो पहला नंबर आता है सल्फर का. यह 2 तरह का है. पहला, पाउडर के रूप में, जो कि पानी में घुलनशील होता है. दूसरा दानेदार, जो कि ज्यादातर बेसल ड्रैसिंग के रूप में प्रयोग किया जाता है. किसी भी फसल में जब पत्तियां आ गई हों, तो सर्दियों से बचाव के लिए 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

अगर दानेदार सल्फर का प्रयोग करना हो, तो मिट्टी जांच की सिफारिश के अनुसार प्रयोग करना चाहिए. यदि मिट्टी जांच की सिफारिश नहीं है, तो मोटेतौर पर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दानेदार सल्फर देना पर्याप्त होता है.

तिहरा यानी ट्रिपल फायदा दिलाता है सल्फर : ‘सल्फर एक काम अनेक’ वाली कहावत चरितार्थ होती है. सर्दियों को देखते हुए एक तो पौधों को इस से गरमी मिलती है, वहीं दूसरी ओर यह फफूंदीनाशक का काम करता है, जिस से यह आलू और दूसरी सब्जियों में   झुलसा रोग से रोकथाम करता है.

तीसरी अहम बात यह है कि सल्फर एक द्वितीयक पोषक तत्त्व है, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश के बाद सर्वाधिक जिस तत्त्व की जरूरत होती है, वह है सल्फर. इस की कमी से पौधों की नई पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, तने पतले और कमजोर हो जाते हैं. सल्फर की कमी से दलहनी फसलों में दाने ढंग से नहीं बनते, जबकि तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा घट जाती है, इसलिए सर्दियों में सल्फर का प्रयोग करना लाभकारी है.

सल्फर की अधिकता वाले अन्य उर्वरक : कुछ अन्य ऐसे उर्वरक हैं, जिन्हें प्रयोग कर के खेत में सल्फर की मात्रा दी जा सकती है. ऐसे उर्वरकों में मुख्य रूप से अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट, क्षारीय, लवणीय मिट्टी के लिए पोटाश से बेहतर सल्फेट औफ पोटाश, जिप्सम, सिंगल सुपर फास्फेट, पोटैशियम सल्फेट, कौपर सल्फेट, फेरस सल्फेट, जिंक सल्फेट आदि. बता दें कि इन उर्वरकों का प्रयोग बोआई के पहले, बोआई के समय और कई बार खड़ी फसल में प्रयोग करना बेहतर होता है.

ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रयोग की जाने वाली मात्रा मिट्टी जांच की सिफारिश के मुताबिक ही करनी चाहिए.

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