सरकार यों तो पिछले कुछ सालों से दूसरे सैक्टरों की तुलना में कृषि एवं किसानों की योजनाओं और अनुदानों पर लगातार डंडी मारती आई है, किंतु यह बजट आगामी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले का बजट था, इसलिए देश की आबादी के सब से बड़े तबके के किसानों ने इस बजट से कई बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं.
जले पर नमक यह है कि अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यों तो कई बार देश के अन्नदाता किसानों का जिक्र किया और उन्हें देश की तरक्की का आधार भी बताया, किंतु उन के बजट का अध्ययन करने पर यह साफ हो जाता है कि उन के इस जिक्र का और किसानों को ले कर उन की तथाकथित फिक्र का बजट आवंटन पर रत्तीभर भी असर नहीं है. सच तो यह है कि कृषि से जुड़ी अधिकांश योजनाओं के बजट में इस बार बड़ी बेरहमी से कटौती की गई है.
* कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की अगर बात करें, तो इस का पिछला बजट 1.25 लाख करोड़ रुपए का था, जबकि इस वर्ष का बजट 1.27 लाख करोड़ रुपए रखा गया है.
अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से देखें, तो वर्तमान महंगाई दर एवं मुद्रा स्फीति को देखते हुए यह बजट पिछले साल के बजट से भी कम है.
* किसानों को बाजार के उतारचढ़ाव से बचाने के लिए 2022-23 में शुरू की गई ‘मार्केट इंटरवैंशन स्कीम ऐंड प्राइस सपोर्ट स्कीम‘ के लिए 4,000 करोड़ रुपए दिए गए थे. इस वर्ष इस की राशि और बढ़ाए जाने का अनुमान था, किंतु इस बार इस योजना के लिए राशि आवंटित ही नहीं की गई. शायद, यह योजना भी अब लपेट के किनारे रखी जाने वाली योजनाओं में शामिल होने वाली है.
* बजट का एक और दिलचस्प पहलू देखिए. पहली बात तो यह कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में दावा किया कि 4 करोड़ किसानों को बीमा लाभ के दायरे में लाया गया, जबकि देश में तकरीबन 20 करोड़ किसान परिवार हैं अर्थात केवल 20 फीसदी किसान ही बीमा लाभ प्राप्त कर पाते हैं, बाकी 80 फीसदी किसानों की फसल पूरी तरह चौपट भी हो जाए, उन्हें तबाही से बचाने की कोई स्कीम नहीं है.
दूसरी बात यह कि प्रधानमंत्री के नाम पर ही घोषित इस ‘पीएम फसल बीमा योजना’ के बजट में भी कटौती कर दी गई है. इस योजना के लिए 14,600 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है, जबकि पिछले साल इस के लिए 15,000 करोड़ रुपए का प्रावधान था.
* इसी तरह प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम आशा) का बजट मौजूदा वित्त वर्ष में 2,200 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान से 463 करोड़ की कटौती कर के 1,737 करोड़ रुपए किया गया है.
* प्रधानमंत्री की ही किसानों के लिए एक और योजना ‘पीएम किसान संपदा योजना‘ पर कैंची चली है. इस के लिए 729 करोड़ का बजट प्रावधानित किया गया है, जबकि पिछली बार 923 करोड़ रुपए था.
* प्रधानमंत्री के ही नाम पर चलने वाली एक और महत्त्वाकांक्षी योजना ‘पीएम किसान मान धन योजना‘ का बजट 138 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान से घटा कर 100 करोड़ रुपए कर दिया गया है. जाहिर है, यह योजना भी सिकुड़ती जा रही है.
* देश में शाकाहारियों के भोजन में प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं दालें. राज्यों में दालों के लिए सरकार ने पिछले बजट में 800 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था, लेकिन इस बार इस योजना को भी बजट नहीं मिला है. मतलब, यह योजना भी अब बंद होने के कगार पर है.
* आश्चर्यजनक तथ्य वह है कि सरकार सालभर जैविक व प्राकृतिक खेती का गाना गाती है, खूब ढोल पीटती है, खूब सैमिनार वगैरह का आयोजन करती है, पर बजट देते समय रासायनिक खाद पर दी जा रही सब्सिडी की तुलना में चिडि़या के चुग्गा बराबर बजट भी जैविक खेती को नहीं देती. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के बजट में कटौती हुई है.
जरा इन आंकड़ों पर गौर फरमाएं ‘प्राकृतिक राष्ट्रीय मिशन’ का पिछले साल का बजट 459 करोड़ रुपए था, जिसे घटा कर 366 करोड़ रुपए कर दिया गया है, जबकि रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी के लिए इस बजट में 1.64 लाख करोड़ रुपए यानी प्राकृतिक खेती की तुलना में लगभग 500 गुना ज्यादा का प्रावधान किया गया है (हालांकि यह भी पिछले बजट में 1.75 लाख करोड़ रुपए और संशोधित अनुमान में 1.89 लाख करोड़ से लगभग 10 फीसदी कम है). पोषक तत्त्वों के लिए इस वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित अनुमान 60,000 करोड़ रुपए का था, जबकि इस बजट में 45 हजार करोड़ रुपए का ही प्रावधान किया गया है, सीधेसीधे 25 फीसदी की कटौती.
* खेतीकिसानी के उत्थान और ग्रामीण बाजार को मजबूत बनाने के दृष्टिकोण से देश में 10,000 एफपीओ गठित करने की योजना भी इस बजट में कटौती की कैंची से नहीं बच पाई है. पिछले बजट में एफपीओ के लिए 955 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, इस बार इसे भी घटा कर 582 करोड़ रुपए कर दिया है अर्थात एफपीओ योजना भी अब सरकार की प्राथमिकता में नहीं है.
कुलमिला कर यह आईने की तरफ साफ है कि बजट भाषण में अन्नदाता किसान का चाहे जितनी बार जिक्र हुआ हो, पर असल में देश का किसान सरकार की प्राथमिकता में कहीं नहीं है.