तिलहनी फसलों में सूरजमुखी का विशेष महत्व है, क्योंकि यह फसल ताप व प्रकाश के प्रति संवेदनशील न होने के कारण इसे किसी भी मौसम खरीफ, रबी और जायद में उगा सकते हैं. साथ ही, इस के बीजों में 40-45 फीसदी तक उच्च गुणवत्तायुक्त तेल पाया जाता है.

अन्य खाद्यान्न फसलों की तुलना में सूरजमुखी के उगाने में उत्पादन लागत कम आती है और शुद्ध लाभ अधिक प्राप्त होता है.

इस फसल की भरपूर उपज न मिल पाने के कई कारण हैं. इन में कीड़ों का प्रकोप एक प्रमुख कारण है, जो फसल को जमाव से ले कर कटाई तक सभी अवस्थाओं में नुकसान पहुंचाते हैं.

विभिन्न क्षेत्रों में इन कीटों द्वारा तकरीबन 30-40 फीसदी तक नुकसान आंका गया है. सूरजमुखी की भरपूर उपज प्राप्त करने के लिए इस में लगने वाले प्रमुख कीटों की पहचान, नुकसान और प्रबंधन के बारे में जानकारी होना बहुत ही जरूरी है.

मुंडक बेधक

यह सूरजमुखी की फसल का एक प्रमुख कीट है, जो सामान्य अवस्था में 20-25 फीसदी तक फसल को नुकसान पहुंचाता है, किंतु कभीकभी यह कीट 40-70 फीसदी तक फसल को नुकसान पहुंचा देता है.

यह एक बहुभक्षी कीट है, जो अन्य कई फसलों पर आक्रमण करता है और सालभर सक्रिय रहता है. इस कीट का प्रौढ़ पतंगा मोटा एवं हलके भूरे रंग का होता है. अगले पंख पीलेभूरे रंग के और पिछले पंखों के पीछे के हिस्से कुछ कालापन लिए हुए धुएं के रंग के होते हैं.

इस कीट की मादा पौधे के कोमल भागों एवं पुष्प कलिकाओं पर अंडे देती है. इन अंडों से 4-6 दिन में सूंडि़यां निकलती हैं, जो चमकीले हरे भूरे रंग की होती हैं. ये नवजात सूंडि़यां पौधे की पत्तियों, कलिकाओं एवं कोमल भागों को खाना शुरू कर देती हैं. बाद में ये सूंडि़यां मुंडक में छेद कर के अंदर प्रवेश कर जाती हैं और विकसित हो रहे दानों को खा कर नुकसान पहुंचाती हैं.

प्रबंधन

* जब खेत खाली हो, उस समय खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, ताकि जमीन में मौजूद प्यूपा आदि बाहर आ कर नष्ट हो जाएं.

* नाइट्रोजनजनित उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए.

* जाल फसल के लिए बीचबीच में गेंदे की पंक्ति लगाएं.

* वयस्क कीट को पकड़ने के लिए फैरोमौन प्रपंच 15-20 प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगाने चाहिए.

* कीट का आक्रमण या अंडे दिखाई पड़ते ही ट्राईकोग्रामा कीलोनिस अंड परजीवी के 50,000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से एक सप्ताह के अंतराल पर 5-6 बार खेत में छोड़ने चाहिए.

* पहली बार सूंड़ी दिखाई देते ही एनपीवी (न्यूक्लियर पौलीहेड्रोसिस वायरस 350 एलई) का प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.

* फसल को कीड़ों के आक्रमण से बचाने के लिए 5 फीसदी नीम तेल का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए.

* कीटनाशी रसायनों जैसे इंडोसल्फान 35 ईसी 1.25 लिटर अथवा मोनोक्रोटोफास 40 ईसी एक लिटर को 700-800 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. पहले छिड़काव के 12-15 दिन बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए.

बिहार की बालदार सूंड़ी

यह एक बहुभक्षी कीट है. इस कीट का वयस्क पतंगा होता है, जिस का रंग हलका लाल होता है और पंखों पर काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं. सूंडि़यां गहरी नारंगी काली होती हैं, जिन का शरीर बालों से ढका रहता है.

मादा पतंगा पत्तियों की निचली सतह पर गुच्छों में अंडे देती है, जिन की संख्या लगभग 150-250 तक होती है. इन अंडों से 7-10 दिनों में सूंडि़यां निकलने के बाद उसी स्थान पर समूहों में रह कर पत्तियों के हरे पदार्थ को खुरच कर खाती हैं, जिस से पत्ती पारदर्शी कागज के समान नजर आती है.

सूंडि़यों का आकार जैसेजैसे बढ़ता है, वैसे ही वे खेत में फैलना शुरू कर देती हैं और पहले एक पत्ती से दूसरी पत्ती और बाद में एक पौधे से दूसरे पौधे और आखिर में एक खेत से दूसरे खेत में फैल जाती हैं और पत्तियों को खाती हैं. बाद में पूर्ण विकसित सूंडि़यां खोल बना कर प्यूपा अवस्था में बदल जाती हैं.

प्रबंधन

* वयस्क कीट को प्रकाश प्रपंच से आकर्षित कर मार देना चाहिए.

* खेत की नियमित निगरानी करते रहना चाहिए. जिन पत्तियों पर अंडे अथवा नवजात सूंडि़यां समूहों में दिखाई दें, उन पत्तियों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

* जब सूंडि़यां प्रारंभिक अवस्था में एक जगह पर झुंड में खा रही हों, उसी समय ऐसे स्थानों पर इंडोसल्फान 35 ईसी का तकरीबन 1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

* विकसित सूंडि़यों को मारने के लिए खेत में इंडोसल्फान 35 ईसी अथवा क्विनालफास 25 ईसी का 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

* सूंडि़यों के एक खेत से दूसरे खेत में फैलाव को रोकने के लिए खेत के चारों तरफ खाई बना कर उस में 2 फीसदी मिथाइल पैराथियान धूल का बुरकाव करना चाहिए.

* इस कीट के वयस्क खरपतवारों पर पनपते हैं. फसल के आसपास और मेंड़ों के इर्दगिर्द खरपतवार को नष्ट करते रहना चाहिए.

कटुआ सूंड़ी

इस कीट की सूंडि़यां फसल की प्रारंभिक अवस्था को अत्यधिक नुकसान पहुंचाती हैं. इन का रंग भूरा होता है, जो दिन के समय भूमि के अंदर छिपी रहती हैं और शाम को अंधेरा होते ही पौधों को भूमि की सतह से काटना शुरू कर देती हैं, जिस से पौधे गिर कर सूख जाते हैं. यह कीट खाता कम है, बल्कि पौधों को काट कर  नुकसान ज्यादा पहुंचाता है.

वयस्क मादा अपने अंडे रात के समय पत्तियों, तनों और कभीकभी भूमि में देती है. इन अंडों से 8-10 दिनोंं में सूंडि़यां निकलती हैं, जो पत्तियों को खाती हैं. जैसेजैसे ये सूंडि़यां बड़ी होती हैं, रात के समय सक्रिय हो कर काटना शुरू कर देती हैं. यह कीट प्यूपा अवस्था जमीन में गुजारने के बाद लगभग 10 दिनों में वयस्क पतंगा निकल आता है.

प्रबंधन

* जब खेत खाली हो, उस समय खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, ताकि जमीन में मौजूद प्यूपा आदि बाहर आ कर नष्ट हो जाएं.

* फसल की समयसमय पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

* खेत में मैलाथियान 5 फीसदी अथवा कारबारिल 10 फीसदी धूल का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए.

* मोनोक्रोटोफास 36 ईसी अथवा इंडोसल्फान 35 ईसी की 1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से आवश्यकतानुसार घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

* सूंडि़यों में रोग फैलाने वाले फफूंद बिवेरिया बैसियाना के एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से सूंडि़यों पर नियंत्रण हो जाता है.

जैसिड्स

जैसिड्स हरेपीले रंग के छोटे शरीर वाले फुर्तीले कीट होते हैं, जो पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में पाए जाते हैं. इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों पर पीलेसफेद धब्बे बन जाते हैं. अत्यधिक प्रकोप की दशा में पत्तियां सिकुड़ जाती हैं. दानों का आकार छोटा रह जाता है और दानों में तेल की मात्रा भी कम हो जाती है. फसल में अत्यधिक नाइट्रोजन का प्रयोग इस कीट की बढ़वार के लिए अनुकूल होता है.

प्रबंधन

* खेत में उर्वरकों की संतुलित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए.

* फसल को कीड़ों के आक्रमण से बचाव के लिए 5 फीसदी नीम तेल का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर 2-3 बार करना चाहिए.

* कीट नियंत्रण के लिए क्राइसोपर्ला कार्निया (परभक्षी) कीट के 50,000 अंडे अथवा सूंडि़यां प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छोड़ने चाहिए.

* प्रकोप बढ़ने पर आवश्यकतानुसार डाईमेथोएट 30 ईसी अथवा मिथाइल डेमेटान 25 ईसी की एक लिटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...