“जलकुंभी एक जलीय पौधा है, जिस का उपयोग अपशिष्ट जल और भारी धातुओं को हटाने के लिए किया जा सकता है.” जी हां, जलकुंभी फ्री फ्लोटिंग यानी स्वतंत्र रूप से तैरने वाला जलीय पौधा है, जिस का उपयोग अपशिष्ट जल के उपचार और भारी धातुओं को हटाने के लिए किया जा सकता है.

यह तेजी से बढ़ने वाला पौधा है, जो पानी से भारी धातुओं को अपनी जड़ों से ग्रहण कर सकता है. भारी धातुएं जलकुंभी पौधों की पत्तियों और तनों में आसानी से जमा हो जाती हैं.

जलकुंभी से जल का उपचार करने के लिए अपशिष्ट जल को पहले एक टैंक या तालाब में पंप किया जाता है, जहां जलकुंभी बढ़ रही होती है. ऐसी जगहों में जलकुंभी पानी से भारी धातुओं को सोख लेगी. पानी से जब जलकुंभी भारी धातुओं को सोख लेती है, तब कुछ समय के बाद जलकुंभी को काटा जा सकता है और पौधे से भारी धातुओं को हटाया जा सकता है.

भारी धातुओं को हटाने में जलकुंभी की दक्षता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिस में भारी धातु का प्रकार, पानी में भारी धातु की घुलनशीलता और जलकुंभी की वृद्धि दर शामिल है. सामान्य तौर पर जलकुंभी सीसा, जस्ता, तांबा और कैडमियम सहित विभिन्न प्रकार की भारी धातुओं को हटाने में प्रभावी हो सकती है.

जलकुंभी अपशिष्ट जल के उपचार और भारी धातुओं को हटाने के लिए कम लागत वाली और टिकाऊ विधि है. यह एक तकनीक है, जिस का उपयोग दुनिया के कई हिस्सों में पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जा सकता है.

धातुओं को हटाने और पानी के उपचार का तरीका

सब से पहले प्रदूषित या अपशिष्ट जल एकत्र करें, फिर तालाब में जलकुंभी उगाएं. इस के उपरांत अपशिष्ट या प्रदूषित जल को टैंक या तालाब में पंप करें, जहां जलकुंभी बढ़ रही हो. जिस जगह प्रदूषित पानी को जलकुभी के साथ इकट्ठा किया गया है, वहां जलकुंभी को कुछ समय के लिए पानी से भारी धातुओं को अवशोषित करने दें. जब लगे कि पानी से जलकुंभी ने भारी धातुओं को सोख लिया है, तो जलकुंभी की कटाई करें.
जब भारी धातुओं को यह सोख चुकी होती है, तब जलकुंभी से भारी धातुओं को हटा दें. इस जलकुंभी से उपचारित किए गए पानी का उपयोग सिंचाई, औद्योगिक प्रक्रियाओं या अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है.

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जलकुंभी अपशिष्ट जल उपचार का पूरी तरह समाधान नहीं है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि पानी मानव उपयोग के लिए सुरक्षित है, जलकुंभी उपचार को अन्य तरीकों जैसे निस्पंदन और क्लोरीनीकरण के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है.

– डा. ज्योत्सना मिश्रा, महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, दुर्ग,

कैंप कार्यालयः कृषक सभागार, इं.गां.कृ.वि.वि. परिसर, लाभांडी, रायपुर (छ.ग.) 492012)

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